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प्रेम पचीसी --भाग 2 (प्रीत-पगे दोहे)

प्रेम-पचीसी--भाग 2 (प्रीत-पगे दोहे)
कौन रसायन बह रहा, रग-रग फैली आग ।
स्त्राव हुआ किस ग्रन्थि से, धड़कन गाए राग ।। ...1

दर्पण देखूँ सौ दफ़ा, फिर-फिर बाँछूँ बाल ।
सूरत अपनी देखकर, गाल हुए हैं लाल ।। ...2

मैं मछली सी हो गयी, सागर तेरा ध्यान ।
बाहर निकसूँ तो चली, जाए मेरी जान ।। ... 3

जित देखूँ उत साँवरे, दिखे तिहारा रूप ।
अंधी होकर प्रेम में, पाए नैन अनूप ।। ...4

लज़्ज़त तेरी दीद की, याद मुझे है यार ।
दीदों से आँसू नहीं, टपक रही है लार । । ...5

एक सरीखा हो गया, तेरा-मेरा हाल ।
रोगी दोनों हो गए, कैसे करें सँभाल ।। ...6

बैर करूँ किस से भला, किस से ठानूँ रार ।
प्यार हुआ जब से मुझे, आवे सब पर प्यार ।। ...7

पागल मुझको जग कहे, कहता है क्या झूठ ।
जबसे रूठे साजना, अक़्ल गई है रूठ ।। ... 8

दुनिया के नाते सभी, लगते हैं बदरंग ।
रंग चढ़ाकर श्याम का, श्याम हुआ हर अंग ।। ...9

तन की सुध-बुध खो गई, मन का गया करार ।
डोलूँ बनकर बावरी, पाकर तेरा प्यार ।। ...10

मन मेरा लेकर गया, जबसे एक फ़क़ीर ।
माटी का तब से हुआ, कंचन जात शरीर ।। ...11

पाकर दर्शन पीव के, मन है आज मलंग ।
जी करता है रात-भर, नाचूँ पीकर भंग ।। ...12

खेल अनोखा हो गई, जोगी तेरी प्रीत ।
जीतूँ तो हारूँ पिया, हारूँ तो हो जीत ।। ...13

मैं भी दानिशमंद थी, तबसे हूँ नादान ।
जबसे मैंने पढ़ लिया, ढाई आखर ज्ञान ।। ...14

पीव मिलन की आस तो, दूर छितिज की रेख ।
दिखती है, मिलती नहीं, क़िस्मत का है लेख ।। ...15

रहने दे रे जोगिया, नहीं मिलन का जोग ।
मिलना अगली जूण में, जूण मिली सो भोग ।। ...16

जाकर अपने देस में, भूल न जाना प्यार ।
ख़ाबों में परदेसिया, आना कभी कभार ।। ... 17

जोगी तेरे कारणे, छोड़ा है घर-बार ।
इक तेरे विश्वास पर, त्याग दिया संसार ।। ... 18

प्रेम न देखे उम्र को, प्रेम न देखे जात ।
भीगे जिसमें जग सकल, प्रेम वही बरसात ।। ... 19

साजन मैं हूँ कोयला, तुम हीरा अनमोल ।
तुमरी लागे बोलियाँ, मेरा कौड़ी तोल ।। ... 20

याद तुम्हें आती नहीं, बड़-पीपल की छाँव ।
मौज करो तुम शह्र में, बिलखे मन का गाँव ।। ...21

तुम भी जाओ साजना, तोड़ हमारी प्रीत ।
छल सीधों के साथ में, इस दुनिया की रीत ।। ...22

चलते-चलते एक दिन, मुड़ जायेंगे पाँव ।
परदेसी की बाट में, नैन बिछाए गाँव ।। ...23

प्रीत लगाकर साँवरे, छोड़ न जाना हाथ ।
जन्म-जन्म का क़ौल है, तेरा-मेरा साथ ।। ...24

साजन तुम उजले बड़े, मैं काजल की भीत ।
रहना मुझसे दूर ही, पास न आना मीत ।। ... 25
मौलिक और अप्रकाशित
©'खुरशीद' खैराड़ी जोधपुर 9413408422

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Comment by vijay nikore on September 6, 2017 at 7:00am

बहुत ही सुन्दर दोहे।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 5, 2017 at 3:12pm

प्रवणता के जिस विन्दु पर इन भावों का शब्दांकन हुआ है, वह बहुत कुछ कहने के लिए प्रेरित कर रहा है. कई ऐसे दोहे हैं जिनके कथ्य रोचक तो हैं ही, अभिनव भी हैं. पहला दोहा ही इस कड़ी का सर्वोत्तम दोहा बन पड़ा है. 

लेकिन जिस तथ्य की ओर मेरी दृष्टि विशेष रूप से केन्द्रित हुई है, वे हैं दोहा संख्या 11, 13 और 18.

जोगी या फ़कीर के साथ मन आना कई विन्दु समेटे हुए है. भाव निवेदन के क्रम में देह मन सोच सबकी दशा शाब्दिक हुई है. लेकिन उपर्युक्त दोहे हठात उस दौर तक ले जाते हैं जब वज्रयान की शाखा-उपशाखाओं का घोरतम प्रभाव समाज पर था और तंत्र-मंत्र की सिद्धियाँ अपने क्रूरतम स्वरूप में हुआ करती थीं. नाथपंथियों, सिद्धों और सूफ़ियों का बोलबाला होने लगा था जो कई बार तो स्वयं वज्रयानियों के प्रभाव के कारण अत्यंत विकृत रूप में जब-तब समाज के सामने आया जाया करते थे. लेकिन नाथपंथी जो जोगी कहलाते थे, अपने दोहों और पदों के गायन से तबके समाज को उन घृणित व्यवहार आचरण से सचेत करते थे.

लेकिन इन सिद्धों और जोगियों में अनुसंधानकर्ताओं का बहुत बड़ा वर्ग ’पंचमकार’ का अनुयायी हुआ करता था. और समाज की कई अकुलीन स्त्रियाँ इनके पीछे उद्वेग में हुआ करती थीं. यहीं से जोगी और जोगिन का स्वरूप आम होना शुरु हुआ. 

प्रेम के इस स्वरूप को उद्धृत कर आपने संकेत में ही सही बहुत कुछा उड़ेल डाला है.

इस प्रस्तुति हेतु साधुवाद.. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 3, 2017 at 6:44pm
खूबसूरत दोहे हार्दिक बधाई ।
Comment by Samar kabeer on September 2, 2017 at 6:10pm
जनाब ख़ुर्शीद खैराड़ी साहिब आदाब,सभी दोहे अच्छे लगे,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Gajendra shrotriya on September 2, 2017 at 1:36pm
बहुत अच्छे दोहे रचे हैँ आदरणीय आपने। प्रेम की अनुभूति हर शब्द से झलक रही है। ये दोहे कुछ खास पसंद आए।
//एक सरीखा हो गया, तेरा-मेरा हाल ।
रोगी दोनों हो गए, कैसे करें सँभाल //

//बैर करूँ किस से भला, किस से ठानूँ रार ।
प्यार हुआ जब से मुझे, आवे सब पर प्यार //

//तन की सुध-बुध खो गई, मन का गया करार ।
डोलूँ बनकर बावरी, पाकर तेरा प्यार //

//खेल अनोखा हो गई, जोगी तेरी प्रीत ।
जीतूँ तो हारूँ पिया, हारूँ तो हो जीत //

//चलते-चलते एक दिन, मुड़ जायेंगे पाँव ।
परदेसी की बाट में, नैन बिछाए गाँव//

बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको।
Comment by Mohammed Arif on September 2, 2017 at 11:39am
आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी आदाब, बहुत ख़ूब!लाजवाब, बेजोड़ प्रेम के साग़र में गोते लगाते दोहे । जितनी प्रशंसा की जाय कम है । ढाई आखर प्रेम का सर्वश्रेष्ठ बखान । दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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