For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- हज़रत-ए-'मीर' की ज़मीन में

फाइलातुन मफाइलुन फेलुन / फइलुन / फेलान

चैन इस दिल को कब नहीं आता
बाम पर चाँद जब नहीं आता

ख़ुश मिज़ाजी हमारा शैवा है
हमको गैज़-ओ-ग़ज़ब नहीं आता

सब हैं सैराब आपके दर से
एक भी तिश्ना लब नहीं आता

नामा उनका लिये हुए क़ासिद
पहले आता था अब नहीं आता

तल्ख़ लहजा मिरा मुआफ़ करें
बे अदब हूँ अदब नहीं आता

'मीर' साहिब,ग़ज़ल कही लेकिन
शैर कहने का ढब नहीं आता

ज़िक्र तेरा "समर" करेंगें वो
नाम भी ज़ेर-ए-लब नहीं आता

समर कबीर
मौलिक / अप्रकाशित

Views: 1537

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 9, 2016 at 9:09pm
लाजवाब ग़ज़ल के लिए दाद क़ुबूल फरमाएं जनाब समर कबीर साहब।।
Comment by Rahila on February 9, 2016 at 4:33pm
वाह...आदरणीय समर सर जी! बहुत शानदार ग़ज़ल हुई।आपको इस प्रस्तुति के लिये ढेरों बधाई ।सादर
Comment by Samar kabeer on February 9, 2016 at 2:51pm
जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये शुक्र गुज़ार हूँ !
Comment by Samar kabeer on February 9, 2016 at 2:48pm
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये शुक्र गुज़ार हूँ !
Comment by Samar kabeer on February 9, 2016 at 2:45pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये शुक्र गुज़ार हूँ !
आपके और नादिर ख़ान साहिब के मार्गदर्शन के बाद त्रुटियाँ दुरुस्त कर ली हैं,धन्यवाद !
Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 9, 2016 at 8:43am

पहले आता था...अब नहीं आता...वाह वाह वाह और वाह ..क्या बात है..बहुत बहुत बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 9, 2016 at 2:23am
आदरणीय समर कबीर साहब, नमस्कार , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल प्रस्तुत हुयी है , बहुत बहुत बधाई , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 9, 2016 at 1:37am

वाह वाह वाह... आदरणीय समर कबीर जी, कमाल की ग़ज़ल कही है आपने. दिल खुश हो गया पढ़कर. इस शानदार और लाजवाब ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.

देवनागरी अनुसार इन शब्दों की वर्तनी सम्बन्धी निवेदन है - 

ऐक-एक 

बै अदब- बे अदब 

Comment by Samar kabeer on February 8, 2016 at 9:59pm
जनाब नादिर ख़ान जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ,कहाँ कहाँ टाइपिंग मिस्टेक हुई है,कृपया बताने का कष्ट करें ताकि मैं उसे दुरुस्त कर सकूँ ।
Comment by नादिर ख़ान on February 8, 2016 at 6:39pm

आदरणीय समीर साहब, हमेशा की तरह खूबसूरत ग़ज़ल से आपने मंच को नवाज़ा है, बहुत मुबारकबाद आपको
कुछ जगह टाइपिंग मिस्टेक दिखाई पड़ रही है कृपया देख लिजिएगा। ....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service