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Nemichandpuniyachandan's Blog (14)

Tarhee Mushaira-15

सर कल्म के वास्ते तैयार होना चाहिये।

इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये।।

जश्न में शामिल होने वाले दोस्तों

रंजो-गमों मे भी हमवार होना चाहिये।।

घोडा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या।

बिन निस्बतों-लिहाज व्यापार होना चाहिये।।

अन्ना की तमन्ना के मुताबिक मुल्क से।

नौ दौग्यारह भ्रष्टाचार होना चाहिये।।

ईमानदारों से सजा दरबार होना चाहिये।

बेईमान बिल्कुल दरकिनार होना चाहिये।।

वजन से ज्यादा किसी पे ना भार होना चाहिये।

सीधा सरल व्यवहार होना… Continue

Added by nemichandpuniyachandan on September 28, 2011 at 11:08pm — 1 Comment

ग़ज़ल - अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई

अश्कों से चश्में-तर कर गया कोई।
वीरान सारा शहर कर गया कोई।।

सारा जहाँ मुसाफिर है तो फिर क्या मलाल।
गर किनारा बीच सफर कर गया कोई।।

नावाकिफ थे जो राहे-खुलूस से।
उन्हें इल्म पेशे-नजर कर गया कोई।।

जिनकी जुबाँ से नफरत की बू आती थी।
उन्हें उलफत से मुअतर कर गया कोई।।

जिंदगी का सफर काटे नहीं कटता चंदन।
तन्हा जिसे हमसफर कर गया कोई।।

नेमीचंद पूनिया चंदन

Added by nemichandpuniyachandan on August 1, 2011 at 5:00pm — 3 Comments

गजल-सोच समझकर कदम उठाना।

गजल-

सोच समझकर कदम उठाना।

कहीं ऐसा न हो पडे पछताना।।



यह दुनियां इतनी गोल है दोस्तों।

कोई न यहां अटल ठहराना।।



जिसने गम को खा लिया।

उसे क्या खाना औ खिलाना।।



जिनको कोई समझ नहीं हैं।

मुश्किल हैं उनको समझाना।।



हुक्म देना आसाँ होता हैं लेकिन।

मुश्किल हैं करना औ करवाना।।



अभी आज कल या बरसो बाद।

आखिर इक दिन सबको जाना।।



नसीब में लिखा ही मिलता हैं।

सबको यहां पे आबो-दाना।।



हम तो तेरे हो…

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Added by nemichandpuniyachandan on June 4, 2011 at 12:30pm — No Comments

गजल-आंखों में उल्फत का अंजन लगाईए

गजल

आंखों में उल्फत का अंजन लगाईए।
टूटते हुए रिश्तों पे बंधन लगाईए।।


गर जज्बातो में नफरत की बू आये तो।
ऐसे सवालातों पे मंजन लगाईए।।


जब कभी जुल्मो-सितम हद से गुजर जाये।
तब अम्न के लिये जानो-तन लगाईए।।


लेने के बदले कुछ देना भी सिखिये।
हर जगह मुफ्त का ना चंदन लगाईए।।


जब रंजों-गम से दिल चंदन बेकरार हो जाये।
तब अंतस में धुन अलख निरंजन लगाईए।।

Added by nemichandpuniyachandan on June 2, 2011 at 12:00pm — 3 Comments

गजल-मुफलिसी बेबाक हो गई

गजल

 

मुफलिसी बेबाक हो गई।
भूख ही खुराक हो गई।।

 

जिसने किया खुदी को बुलंद
जहाँ में उसकी धाक हो गई।।

 

जो पल में छीन लेते थे जिंदगी।
वो हस्तियां भीं खाक हो गई।।

 

किसी को गरज नहीं यहां जहाँ की।
सबको अपनी प्यारी नाक हो गई।।

 

जिसने इंकलाब का बिगुल बजाया।
उसकी बात "चंदन" मजाक हो गई।।

Added by nemichandpuniyachandan on May 15, 2011 at 5:30pm — 1 Comment

ऐ काश! मेरे भी माँ होती

ऐ काश! मेरे भी माँ होती ।

जब-जब मेरी अखियाँ रोती ।

लापरवाहियां दुख देती।

सिर पे मेरे हाथ फिरोती।

ऐ काश मेरे भी माँ होती।

 

ममतामयी जवानी खोती।

सीने पर ज्यूं चले करोती।

अंखियां बरसे जैसे…

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Added by nemichandpuniyachandan on May 8, 2011 at 11:30pm — 5 Comments

Ghazal-Dil mein chand pal rab ko reejhanaa bhee hotaa thaa.

दिल में चंद पल तन्मय रब रीझाना भी होता था।

हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था।।

ि

तश्नगी से सहरा में तूं पी करते मर जाना भी होता था ।

हैरतअंगेज गजाला-गजाली सा याराना भी होता था ।।

वादाफर्मा को वादा निभाना भी होता था ।

दिले-नाशाद को जाके मनाना भी होता था ।।

आजकल गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं लोग ।

पहले अपना मजहबीं इक बाना  भी होता था।।

अब तो अजीजों का हमें सही पत्ता नहीं मिलता।

किसी जमाने में दुश्मन का भी ठिकाना भी होता था ।।

अब न…

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Added by nemichandpuniyachandan on April 23, 2011 at 3:30pm — No Comments

गजल-खुदी को खुदी से छुपाते रहें हैं हम

गजल-खुदी को खुदी से छुपाते रहें हैं हम ।

गैरो को मोहरा बनाते रहें हैं हम।।

भ्रष्टाचार को सबने अपना लिया हैं।

शिष्टता की बातें बनाते रहें हैं हम।।

रोशनी से चैंधिया जाती है आंखें ।

अंधेरे में खुशियां मनाते रहें हैं हम।।

जेब कतरों का पेट नहीं भरता।

मेहनत की अपनी खिलाते रहें हैं हम।।

लाखों भूखे पेट सोते हैं यहां।

बज्मों में रातें बिताते रहें हैं हम।।

अन्नाजी आपका बहुत आभार ।

अब तक सूखी खाते रहें हैं हम।।

दोस्तों नेकी कुछ करलो अभी…

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Added by nemichandpuniyachandan on April 19, 2011 at 10:30am — 1 Comment

गजल-दौरे-जहाँ में बन गया

गजल

 

दौरे-जहाँ में बन गया कुफ्तार आदमी।

सरे-बाजार में बिकने को हैं तैयार आदमी।।

धर्म-औ-ईमाँ को जो बेच के खा गये।

मौजूद है जहाँ में ऐसे कुफ्फार आदमी।।

कातिल दिन-दहाडे जुल्मो-सितम ढा रहे हैं।

वक्त के हाथों हैं बेबस-औ-लाचार आदमी।।

इसे दुनियां का आंठवा अजूबा ही समझना।

दर्जा-ए-जानवर में हो गया शुमार आदमी।।

कानून-औ-कायदो को करके दरकिनार।

बेखौफ कर रहा आदमी का शिकार आदमी।।

नमकपाश तो बेशुमार मिल जायेंगे मगर।

बडी मुश्किल से…

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Added by nemichandpuniyachandan on April 17, 2011 at 9:30am — 1 Comment

माँ

दुनियां के सभी रिश्तों में प्रमुख रिश्ता हैं माँ

सचमुच में हर प्राणी के लिए फरिश्ता हैं माँ।।

 

घने कोहरे में गर मंजिल नजर न आयें।

बंद हो सब रास्ते तो इक रास्ता हैं माँ।।

 

दुनियां के इस खौफनाक बियाबां में दोस्तों।

वहशियों से काबिले-हिफाजत पिता हैं माँ



सगे-संबंधी मित्र-बंधु सभी सुख के साथी।

लेकिन दु़ख में साथ निभाने वाली सहभागिता हैं…

Continue

Added by nemichandpuniyachandan on April 11, 2011 at 10:00am — 3 Comments

गजल

हर लम्हें में निहाँ हैं अक्स जिंदगी का।
ढूंढते रह जाओगे नक्श जिंदगी का ।।

 

रुठों को मनाने में लग जाते हैं जमाने।
ता-उम्र चलता रहता हैं रक्स जिंदगी का।।

 

रंजो-गम में जो साथ न छोडे।
सबसे बेहतर है वो शख्स जिंदगी का।।

 

राहें-मंजिल में जो कदम न लडखडाए।
हासिल कर ही लेते हैं वो लक्ष जिंदगी का।।

 

बनी पे लाखों निसार हो जाते है चंदन।
कोई नहीं होता बरअक्स जिंदगी का।।

 

नेमीचन्द पूनिया चंदन े  

Added by nemichandpuniyachandan on April 10, 2011 at 12:00pm — 1 Comment

भ्रष्टाचार.....नेमीचन्द पूनिया "चन्दन"

भ्रष्टाचार-

हाकिम से लेकर अर्दली तक नौेकर से लेेेकर व्यौपारी तक।।

भ्रष्टाचार फैला देश में।मेरे गाॅव से दिल्ली तक।।

गाय से लेकर हाथी तक।कुते चूहे से लेकर बिल्ली तक।।

पेशोपेश में हैं पशु-पक्षी।बाज से लेकर तित्ल्ली तक।।

भ्रष्टाचार फैला देश…

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Added by nemichandpuniyachandan on March 27, 2011 at 8:30pm — 2 Comments

गजल

गजल



हमें धर जमाने में जमाने लगे ।

मिटाने में उन्हें चंद बहाने लगे ।।



मसीहा उस वक्त वो बन गये मेरे ।

जहाॅ के गम जब भी सताने लगे ।।



बचपन की यादें ताजा हो गई ।

जब छत पे पतंग उडाने लगे ।।



होश उस दम फाख्ता हो गए मेरे ।

वो जब मुझको मुझसे चुराने लगे ।।



जिनको अपने दर रहने को जा दी।

अफसोस वो हमें दरबदर कराने लगे।।



जिनको हमने जीने के लिए जिया दी।

अफसोस वो अंधेरे में घुमाने… Continue

Added by nemichandpuniyachandan on March 23, 2011 at 1:30pm — 1 Comment

Gazal

                  गजल

ईमानदार मैदाॅं में, बाजी मार जाते हैं।     

बेईमानों के घोडे, आखिरी हार जाते हैं।।

परस्तिश करती है, उनकी सल्तनत दोस्तों।

वतन की राह में,जो जांॅ निसार जाते हैं।।

हथियारों पे कायम है, कायनात जिनकी।…

Continue

Added by nemichandpuniyachandan on March 13, 2011 at 7:26pm — 1 Comment

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