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मेरे ही पुत्रों ने,
मुझे,
लूटा है बार-बार!
एक बार नहीं,
हजार बार!
अपनी अंत: पीड़ा से
मैं रोई हूँ, जार जार!
हे, मेरे ईश्वर,
हे मेरे परमात्मा,
दे इन्हें सदबुद्धि,
दे इन्हें आत्मा,
न लड़ें, ये खुद से,
कभी धर्म या भाषा के नाम पर,
कभी क्षेत्रवाद,

जन अभिलाषा के नाम पर.
ये सब हैं तो मैं हूँ,
समृद्ध, शस्य-श्यामला.
रत्नगर्भा, मही मैं,
सरित संग चंचला.
मत उगलो हे पुत्रों,
अनल के अंगारे,
जल जायेंगे,
मनुज,संत सारे.
——————————
हे महादेव, हे नीलग्रीवा,
धरो रूद्र रूप, करो संतसेवा.
करो भस्म तम को, नृत्य तांडव करो तुम,
घट विष का हे शिव, करो अब शमन तुम.
—————————————
हे मेरे राम, कब आओगे काम!
हे मेरे आका बचा लो ‘निज’ धाम.
सिया अब पुकारे, हरण से बचा ले,
ये रावणों की सेना, लेते हैं तेरा नाम.
जरूरत नहीं है, अब लंका दहन की,
अवधपुर जले हैं, जरूरत शमन की.
असुर अब बढ़े हैं, करें नष्ट तपवन.
कहाँ तप करें अब, संत और सज्जन.
लखन औ विभीषण खड़े साथ ही हैं.
अगर है जरूरत, तो पार्थ भी है.
चढ़ाओ प्रत्यंचा, खड्ग को सम्हालो,
माँ काली, हे देवी, रिपु को खंगालो !
माँ काली, हे देवी, रिपु को खंगालो !

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 5, 2012 at 7:04am
आदरणीय राजेश कुमारी  जी, सादर अभिवादन!
आपका आशीर्वाद मेरे लिए अमृत के सामान है!  आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार! 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 3, 2012 at 9:33pm

आज के पथ भ्रमित समाज को दर्पण दिखाती हुई रचना जबरदस्त अंतर्नाद जाग्रत करती हुई हुंकार ....बहुत अच्छी रचना.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 9:23pm

आदरनीय शशिभूषण जी, सादर अभिवादन! आप कहाँ खो गए हैं आजकल कहीं नजर नहीं आ रहे हैं! उत्साहवर्धन के लिए आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 3, 2012 at 9:21pm

आदरनीय विन्ध्येश्वरी प्रसाद जी, अश्विनी कुमार जी, संदीप जी,  सौरभ जी,  आप सबको मेरा हार्दिक आभार! प्रतिक्रिया का जवाब देर से देने के लिए क्षमाप्रार्थी!

Comment by Dr. Shashibhushan on March 17, 2012 at 10:04pm

आदरणीय जवाहर भाई,
सादर !
आपके पीछे-पीछे मैं भी आ गया !
जगह है न ? यहाँ तो बहुत अच्छा
है ! कई पहचाने लोग हैं !
भावपूर्ण रचना ! बधाई !
(ये मेरा पहला कमेन्ट है )

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 17, 2012 at 9:17pm

Thanks Rajeev Jhajee!

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 17, 2012 at 9:00pm

बहुत सुन्दर भाव हैं,आदरणीय जवाहर जी.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 17, 2012 at 7:37am

महिमा जी, नमस्कार!

प्रतिक्रिया के लिए आभार!

Comment by MAHIMA SHREE on March 16, 2012 at 3:22pm
चढ़ाओ प्रत्यंचा, खड्ग को सम्हालो,
माँ काली, हे देवी, रिपु को खंगालो !

आदरणीय जवाहर जी
नमस्कार ...बाप रे बाप आपका अंतर्नाद तो ..एक जबरदस्त हुंकार.....है...सोते हुए को भी जगा दे.....बहुत-२ बधाई...वन्देमातरम
Comment by अश्विनी कुमार on March 16, 2012 at 8:41am

स्नेही जवाहर जी ,सादर अभिवादन .....अति सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ,,,जय भारत

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