भूमिका(कविता)
अश्रु-पूरित चन्दन से भी
अगर टीकूँ|
है असम्भव अब तुम्हारा
लौट आना||
मैं इस मंच पर अभी कुछ
और खेलूँगा|
तुमकों जो अभिनय जँचे
तो मुस्काना ||
था टिका सम्बन्ध जिस पर
घुना वो आलम्ब|
हो सके तो उसपे कुछ
रेह लगाना||
हो सघन तिमिर जब कोई
राह ना सूझे|
तुम करना मेरा पथ-प्रशस्त
टिमटिमाना |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by somesh kumar on January 11, 2015 at 1:23am — 6 Comments
पूर्ण नहीं हूँ मैं
मुझे उपमा ना बना
प्यार को प्यार रहने दे
इसे रिश्ता ना बना |
आदमी मैं भी हूँ
जज्बात समझता हूँ
हिकार ना कर उसकी
मुझे देवता ना बना |
एक फ़ासले के बाद
लौटना ठीक नहीं
मुझे मंजिल ना समझ
उसे रस्ता ना बना |
किनारे मैं हूँ खड़ा
मझदार में तू
कोई तो फैसला कर
उसे उलझा ना बना |
.
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अमुद्रित )
Added by somesh kumar on January 10, 2015 at 3:00pm — 7 Comments
तू देव रूप है मेरे लिए ---
मुझे तराशा है तेरे प्यार ने
मुझपे ऐतबार कर
तू देव रूप है मेरे लिए,मेरी
पूजा स्वीकर कर
मैं तो दलदल था,कमल पुष्प
खिलाए तुमने मुझमें
मृत था मेरा ये उर
एहसास पुनः जगाए तमने मुझमें
उठ,खड़ी हो,मजबूत बन
अपनी कोशिश ना निराधार कर
तू देव रूप है मेरे लिए -----------
जब सारे ज़माने ने
मुझ से मुँह फेर लिया
जब सघन तिमिर ने
मुझ को घेर लिया
तुम आई मेरी ज़िन्दगी…
ContinueAdded by somesh kumar on January 6, 2015 at 11:00am — 8 Comments
बिना तुम्हें बताए
अजीब प्रश्न हैं तुम्हारे
यूँ जैसेकि चक्रव्यूह
दिल-दिमाग भिड़ गए
बोलो किस माध्यम से उत्तर दूँ|
सच है! तुम्हारा जाना खलेगा
क्योंकि तुम्हारे जाने से बनेगा
एक शून्य |
जिसे सिर्फ़ तुम भर सकती हो
और मेरे आस-पास जो उदासी है
उसमें कलरव कर सकती हो||
पर तुम्हारा जाना भी बुरा नही है
क्योंकि मैं इससे व्यर्थ के सपने
देखने से बच सकता हूँ
अपनी दुनिया नए ढंग से रच सकता…
ContinueAdded by somesh kumar on January 1, 2015 at 11:30pm — 4 Comments
मन बहुत अकेला है - - - -
आँखे तुमने बंद करीं
सब संज्ञाए बदल गई
बाद तुम्हारें कितनी ठेलम-ठेला है !
मन बहुत अकेला है - - - -
रिश्ते नए क्रम में आए
प्रतिबद्धताएँ बदल गईं
मनोभाव से सबने मेरी खेला है !
मन बहुत अकेला है - - - -
बैठ अकेले में कैसे संताप करूँ
अब बीते का क्या आलाप करूँ
आगत-आज में हुआ झमेला है
मन बहुत अकेला है - - - -
तुमसे निजता का उपहार सम्भाले हूँ
खुले हाट में अपना भाव सम्भाले…
ContinueAdded by somesh kumar on December 30, 2014 at 10:20am — 6 Comments
तुम आए नहीं
तुम आए नहीं-आएगें कहकर
और एक हम थे चले आए कुछ नही कहकर
इसी उम्मीद से की तुम आओगे ज़रूर
चाहे हो जितना मज़बूर |
वक्त जाता रहा,निगाह ठहरी रही
दिल धड़कता रहा ,सोच ठहरी रही
तुम आ गए लगा यूँ ही रह –रहकर
तुम आए नहीं –आएगें कहकर,
कॉल बजती रही नाद आया नही
प्रश्न उठते रहे ,जवाब आया नही
मायुस होता रह मन सितम सह-सहकर
तुम आए नहीं-आएगें कहकर |
शाम जाती रही ,यकीं जाता रहा
क्यों किया यकीं ,अफ़सोस आता…
ContinueAdded by somesh kumar on December 29, 2014 at 12:28am — 7 Comments
सुन लो नयन अबोले मेरे
सुन लो नयन अबोले मेरे
कितना कुछ कहने को आकुल
चिर-प्रतिक्षित हृदय-द्वार की
खड़काते हैं कब से सांकल !
सुनो खड़कती उर की पीड़ा
क्रन्दन करता रहा वियोगी
तुम संजीवन सुषेण तुम्हीं हो
में अमोध का मारा रोगी |
जहाँ-जहाँ पे पट में भिती
तहाँ-तहाँ से किरने खोजूँ
अवचेतन को चेतन करने
के उपाय निरंतर सोचूँ |
सोच रहा हूँ क्या मैं गाऊँ
तू भी भीतर से अकुलाए
पट हृदय के खोल…
ContinueAdded by somesh kumar on December 28, 2014 at 12:12am — 3 Comments
यूँ मुझको याद करके
हिय में ना धार उठाओ
शांत-शीतल मन ताल है
छेड़कर,ना भंवरे उठाओ |
स्मृतियाँ आषाढ़ी नदी सी
वेग-दासी हो रही हैं
तुलना प्रस्तुत की पुरा से
मन-उदासी हो रही है |
मुश्किलों से बाँधा है मन
और गाठें मत बढाओ |
यूँ मुझको याद करके
हिय में ना धार उठाओ
जब तक रहता अधूरा
प्रेम की ही पूर्णंता है
वासनारत देव हरदम
भक्त नए ढूंढता है |
मुक्त मधुप मकरंद पा
कब कलि की टोह…
ContinueAdded by somesh kumar on December 27, 2014 at 1:30am — 3 Comments
स्पर्श
कभी-कभी तुम्हारे स्पर्श मात्र से
जो सिहरन होती है वो उस
चरम से बड़ी है जो शायद
तुम्हें पूर्ण पाने से मिले |
बीच सागर में ,तपती दोपहरी में
अकेले बेड़े पर भटकते…
ContinueAdded by somesh kumar on December 26, 2014 at 12:00am — 9 Comments
भंडारा
मास्टर जी ,आप भी चलिए ना भंडारे में - - - “ साथियों ने आग्रह किया|
‘” भाई तुम तो जानते ही हो ,मुझे लाईनों में लगना और याचकों की तरह मांगना पसंद नहीं है “ मा.भोलेराम ने सपाट सा जवाब दिया |
“ अरे!आप भी,भाईसाहब,भंडारे की लाईनों में लगने में कौन सी ईज्जत घट जाती है बल्कि ये तो आपकी भक्ति-भावना की परीक्षा होती है ,प्रसाद के लिए आप जितना ईंतज़ार कर सकते हैं उतना ही पुण्य बढ़ता है “`राजीव बोल पड़ा |
“भाई मैं ऐसी भक्ति-परीक्षा नहीं देना चाहता…
ContinueAdded by somesh kumar on December 25, 2014 at 10:57pm — 5 Comments
“ मास्टर जी ,अपने दोस्त से पूछिए अगर मेरे लिए कोई जगह हो तो थोड़ी सिफारिश कर दे |” जब विजय मुझसे ये बात कहता है तो मेरे मन में उसके लिए नैसर्गिक साहनभूति फूटती है |मैं पहले से उसकी नौकरी को लेकर फिक्रमंद हूँ और पहले ही कई दोस्तों से उसके बारे में बात कर चुका हूँ |
कुछ लोग होते हैं जो चुम्बक की तरह अपनी तरफ खींचते हैं |विजय में मुझे वही चुम्बकत्व महसूस होता है | गोरा वर्ण ,5”6’ का कद सुघड़ अंडाकार चेहरा ,घुंघराले काले बालों के बीच में कहीं-कहीं सफ़ेद हो गए बाल ,आत्मीयता और उचित मिठास से…
ContinueAdded by somesh kumar on December 24, 2014 at 11:30am — 4 Comments
प्रभाव-क्षेत्र
अलग होना ही पर्याप्त नहीं है
मुखर होना भी जरूरी है
प्रखर होना और भी जरूरी है
इसी से बनती है पहचान
लोग यूँ ही नहीं सौपते अपनी कमान |
तीर सिर्फ विरोध के…
ContinueAdded by somesh kumar on December 22, 2014 at 11:00pm — 11 Comments
मत लिखना आने की बात
मत लिखना आने की बात
आने से पहले
जो ना आए, नियत वक्त पे
झल्लाएगा मन
उठेंगे सौ-सौ प्रश्न
तुम्हारे बारे में
लपटें उठ जाएंगी
राख ढके अंगारे में
अच्छा है बिन बतलाए आओ
बिना कोई उम्मीद जगाए
आ जाओ जो ऐसे एक दिन
दिल होली, दिवाली, ईद मनाए |
सोमेश कुमार(08/08/2014) (मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by somesh kumar on December 20, 2014 at 11:54am — 19 Comments
उसके हज़ारों रूप लगे
किसी को सायाँ किसी को धूप लगे
वो एक ही है मगर उसके हज़ारों रूप लगे
मेघ बनते है ,उमड़ते है ,बरसते हैं
किसी को प्यास ,किसी को कैनवास
किसी का विश्वास ,किसी को मीत…
ContinueAdded by somesh kumar on December 16, 2014 at 11:00pm — 7 Comments
डाटा
मैमोरी-कार्ड लगाकर हरीश ने गैलरी खोली |परंतु-वहाँ सब कुछ खाली था |कोई पिक्चर-वीडियो-ऑडियो कुछ भी नहीं |शायद कैमरे का सोफ्टवेयर खराब हो ये सोच कर वो पड़ोसी के पास पहुँचा |
पहले पड़ोसी का मोबाईल ,फिर पी.सी. पर नतीजा वही - - - -
वही संदेश –ये फाईल खुल नहीं सकती या खराब हो चुकी है|
उसकी आँखों के सामने शून्य तैर गया |सब कुछ खत्म हो जाने के अहसास से वो टूट गया |कुछ भी नहीं बचा था अब जगजाहिर करने को |बेशक उसके मन में स्मृतियों का अनंत संरक्षित हो पर बाहरी तौर…
ContinueAdded by somesh kumar on December 8, 2014 at 11:19am — 10 Comments
आज से 2 साल पहले ज़िन्दगी की सबसे काली रात मेरी प्रतीक्षा कर रही थी |काला नाग अपना फन फैलाए ,घात लगाए बैठा था ,मेरा सब कुछ छीन लेने के लिए |नहीं जानता था की जीवन के सबसे सुंदर सपने का आज अंत हो जाएगा | 12 दिसम्बर 2009 को जब प्रणय-सूत्र में तुमसे बंधा था तो उसी रोज़ से एक सपने में खो गया था |तुम्हारे सपने में |–जैसा की तुम्हारा नाम था –‘सपना | जगती हुई आँखे में तुम और सोते हुए भी बस तुम्हारा ही सपना |अपने नाम के मुताबिक जीवन में कितनी रंगीनिया भर दी तुमने |कहने को तो मैं एक सपने में था…
ContinueAdded by somesh kumar on December 4, 2014 at 11:30am — 12 Comments
बस इतना मेरा जीवन
मैं बच्चों में बच्चे मुझमें
बस इतना मेरा जीवन
वो ही मेरा सोना-चाँदी
उनसे मेरा तन-मन-धन
आने वाले कल की सूरत
जिनकी रेखा खींच रहा
कल पक के धन्य-धान करेंगी
मैं वो फसलें सींच रहा
मैं बच्चों में बच्चे मुझमें
बस इतना मेरा जीवन
सुबह मिल अभिवादन करते
मन हो जाता बहुत प्रसन्न
होड़ लगाए बढ़-चढ़ आते
सर बजा दें टन-टन-टन |
मैं बच्चों में बच्चे मुझमें
बस इतना मेरा…
ContinueAdded by somesh kumar on November 30, 2014 at 11:50pm — 7 Comments
सहेजना
बिखराव में समझ आता है
सहेजे का मोल
मनचाही चीज़ जब
आसानी से नहीं मिलती तो
याद आती है माँ/पत्नी//बहन
सुबह-सुबह खाना पकाती
सेकेण्ड-सुई से रेस लगाती
हर पुकार पे प्रकट हो जाती
मुराद पूर्ण कर फिर जाती
कितना आसान बना देती है
ज़िन्दगी को,माँ/पत्नी/बहन
सहेजना एक कौशल है
पर रोज़-रोज़ एक जैसे
को सहेजना बिना आपा खोये
समर्पण है प्यार है त्याग है
औरतें रोज़ इन्हें सहेजती हैं
और एक…
ContinueAdded by somesh kumar on November 30, 2014 at 9:33am — 9 Comments
दो मित्र थे, |शेरबहादुर और श्रवणकुमार | नाम के अनुसार शेरबहादुर बहुत वीर और निर्भीक थे ,अन्धविश्वास से अछूते ,बिना विश्लेषण किसी घटना पर यकीन नहीं करते |दुसरे शब्दों में पुरे जासूस थे |बाल की खाल निकालना और अपनी और दूसरों की फजीहत करना उनका शगल था |श्रवणकुमार नाम के अनुसार सुनने की विशेष योग्यता रखते थे |एक तरह से पत्रकार थे ,मजाल है गाँव की कोई कानाफूसी उनके कानों से गुजरे बिना आगे बढ़ जाए |तीन में तेरह जोड़ना उनकी आदत थी इसलिए नारदमुनि का उपनाम उन्हें मिला हुआ था |पक्के अन्धविश्वासी और डरपोक…
ContinueAdded by somesh kumar on November 27, 2014 at 10:00am — 7 Comments
तुम मेरे कौन हो?
तुम मेरे कौन हो ?
उषा सिंदूरी या चाँदनी रात
उषा जिससे ज़िन्दगी का अन्धेरा जाता है
जिसके स्पर्श से जीवन लहराता है
खिल उठते हैं जिसके दर्शन से बेल-बूटे…
ContinueAdded by somesh kumar on November 25, 2014 at 7:30pm — 10 Comments
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