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डाटा

 

मैमोरी-कार्ड लगाकर हरीश ने गैलरी खोली |परंतु-वहाँ सब कुछ खाली था |कोई पिक्चर-वीडियो-ऑडियो कुछ भी नहीं |शायद कैमरे का सोफ्टवेयर खराब हो ये सोच कर वो पड़ोसी के पास पहुँचा |

पहले पड़ोसी का मोबाईल ,फिर पी.सी. पर नतीजा वही - - - -

वही संदेश –ये फाईल खुल नहीं सकती या खराब हो चुकी है|

उसकी आँखों के सामने शून्य तैर गया |सब कुछ खत्म हो जाने के अहसास से वो टूट गया |कुछ भी नहीं बचा था अब जगजाहिर करने को |बेशक उसके मन में स्मृतियों का अनंत संरक्षित हो पर बाहरी तौर पे तो वो दिवालिया ही हो चुका था |

एक बार तो उसका दिल ठहाके लगाने लगा –अच्छा हुआ,पीछा छूटा |मैं ही क्यों बंदरिया की तरह मृत बच्चे को छाती से लगाए रखूं ?तुमने कौन सा मेरे प्यार,मेरे समपर्ण को उचित सम्मान दिया ?अन्यथा तुम जाते-जाते तो  ये कथन ना कहती –“मेरी मृत्य के पश्चात सारे गहने और 6 माह के अमित को मेरी माँ को सौंप देना और अपनी पसंद से दूसरी शादी कर लेना |”

हरीश को उसकी ये बात पत्थर सी लगी और उसका दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया परंतु वो उसकी बीमारी की स्थिति को समझता था इसलिए बिना चीखे-चिल्लाए उसने झील की तरह इस चोट को पी लिया और प्यार पूर्वक फ़ोन पे डाटा-

“ पागलों सी बात मत करो ,ना तुम्हें कुछ होगा ना मैं अपने बेटे को छोड़ने वाला “

पर वन्दना जीत गई और उसका विश्वास पराजित हो गया |

और वन्दना उसकी प्रथम पत्नी ,उसके प्रेम का सच्चा और पहला बोध ,जीवन की यथार्थ कविता सब एक झटके में समाप्त |शेष रहा तो बस-डाटा |कुछ स्मृतियों में और कुछ स्मृति-कार्ड में |

उसको चुपचाप, टूटा ,खोया-खोया देख ,दिलासा देने वाले समझाते –“वक्त के साथ उसे भुलाना सीखो अब वो अवास्तविक है ,आगे के जीवन की सोचो - - - “ वो हाँ में सिर हिलाता |पर वो जानता था कि स्मृतियाँ ही जीवन की अमूल्य निधि है और उसके पास तो इन स्मृतियों का अमूल्य खजाना था|

उस 16 जीबी के डाटा कार्ड के रूप में |

आज विज्ञान ने मनुष्य को कितना समृद्ध बना दिया है |एक जुगनू जितना चिप-कार्ड और उसमें उसके जीवन के कितने अंधरे-उजाले कैद |क्या पहले ये संभव था ?दादाजी की ब्लेक-व्हाइट फ़ोटो(पासपोर्ट )ही उनके घर में पड़ी थी ,एकाध पहले पूर्वज का नाम और जानता था |अन्यथा पहले का सब मिटता चला आ रहा था |पर शायद भविष्य में ऐसा ना हो - - | नित्य प्रगतिशील तकनीकी ने अब आम इन्सान को भी अपनी पसंद के डाटा को भंडारित करने और भविष्य की पीढियों के लिए संरक्षित करने के उपाय कर दिए हैं |पत्थरों और भोज-पत्रों से प्रारंभ यात्रा अब मैमोरी-चिप जैसे अति-सूक्ष्म और अति-कुशल माध्यमों पर पहुंच चुकी है |डाटा का स्वरूप भी क्रन्तिकारी रूप में बदल चुका है |पहले बहुत जरूरी संदेश और सामूहिक-सूचना साँझा की जाती थी अब व्यक्तिगत तौर पर हर तरह का डाटा साँझा किया जाता है | मनुष्य की प्रगति के साथ डाटा की प्रगति जुड़ी है या कह सकते हैं दोनों परस्पर जुड़े हैं |अपने आदिम ज्ञान से मंगल यान तक ,मनुष्य ने अपने डाटा को ना केवल भंडारित किया अपितु हर बार उसमें नया और अधिक तर्कसंगत ज्ञान जोड़ा जिसके कारण वह पृथ्वी-नरेश बन चुका है |वस्तुतः आज व्यक्तिगत सत्ता से लेकर वैश्विक सत्ता तक डाटा अहम हो चुका है |हमारे पास इतनी मानव-शक्ति है ,हमारे पास ऐसे-ऐसे हथियार बनाने की क़ाबलियत है ,हमारी टी.आर.पी इतनी है ,हमारी जाति के इतने लोग हैं |हर कोई अपने डाटा का मोलभाव कर रहा है |और डाटा का ये खेल भी उतना ही पुराना है जितना की ईन्सान |जो इंसान डाटा का मोल समझता है वो विजयी है अन्यथा - - - -

संसार में कोई भी वस्तु स्थाई नहीं है और ये बात तकनीकी और जीवन पर भी लागू है |कुछ लोग इस सत्य को समझने में देरी करते हैं और फिर पछतावा |समय रहते सही निर्णय ना लेना या आगे के लिए टालने की आदत कई बार ऐसा नुकसान कराती है की उसकी भरपाई संभव नही होती |और आज हरीश भी ऐसे ही भयंकर नुक्सान को झेलने के लिए विवश था |वो कर भी क्या सकता था ?

वैवाहिक जीवन के तीन अमूल्य सालों को उसने अपने डिजिटल कैमरे व मोबाईल में कैद कर रखा था |परंतु ये सभी डिजिटल-डाटा के रूप में था किसी को भी उसने प्रिंट-रूप या सी.डी. के रूप में नहीं बदलवाया |

वन्दना ने कई बार कहा – “ हम दोनों के साथ की एक भी तस्वीर नहीं निकलवाई आपने- -  “

 “अरे!तो क्या हुआ ?मोबाईल चिप में तो है ,निकलवा लेंगे इक्कट्ठे ,वो सस्ता भी पड़ेगा “

 “कहीं सस्ता महंगा ना पड़ जाए ?कभी कैमरा या चिप खराब हो गया तो ? “

“ हम थोड़े खराब हो रहे हैं और मैंने एक कॉपी रजत के कंप्यूटर में बनवा ली है |और अभी तो ज़िन्दगी के कितने सुंदर पल हमारी राह देख रहे हैं | “

इस तरह हर बार वन्दना के आग्रह पे वो टाल-मटोल करता रहा और जीवन के कई पल उस डाटा-कार्ड में कैद होते गए |

फिर वन्दना की मृत्योपरांत अमित के नटखट पल और सहेजने योग्य कितनी और यादें उस चिप में संरक्षित  होती गई |

विवाह के तीन माह बाद एक रोज़ पूर्णिमा बोली – “मेरी, मोहित की और आप की कितनी तस्वीरे इस चिप में हैं |इन्हें निकलवाकर एल्बम बनवा लेते हैं |

“ ‘हाँ ‘ एक एल्बम बनवानी है” जैसे वो तन्द्रा से जागा हो |

फिर उसने 16 जी.बी के उस चिप कार्ड को पहले कैमरे और फिर पी.सी. में लगाई थी |पर वहाँ तो बस अँधेरा ही अँधेरा |तीन दिन पहले ही मोहित ने खेलते हुए उसके मोबाईल को गिरा दिया था उस समय वो चिप में एक पुरानी वीडियों देख रहा था और तब से मोबाईल की गैलरी में कुछ खुल नहीं रहा था |पर वो क्या  जानता था कि ये उसके जीवन की दूसरी बड़ी दुर्घटना साबित होने वाली है |

अब उसकी आँखों के सामने केवल अँधेरा था |पुराने कैमरे के नेगेटिव जैसा ,फ्लैशबैक में धुंधला-धुंधला सा मन ही मन वो बहुत कुछ देख सकता था पर यथार्थ में देखने-दिखाने के लिए कुछ भी ना था | अब सब कुछ खत्म |वो अमित  को बड़ा हो जाने पर क्या जवाब देगा ?क्या वो इतना कृतध्न था, इनता कृपण था कि अपने बच्चे को उसकी माँ से जुड़ी यादें भी सौंप नहीं पाया ?

तो क्या बड़ा होने पर उसका बेटा उसे अपनी जन्मदात्री से छीनने का दोषी नहीं मानेगा ?उसकी लापरवाही को अपराध नहीं घोषित कर देगा ?वो मन ही मन कांपने लगा |

जिस तरह टाल-मटोल से आज ये डाटा शून्य हो गया वैसे ही वन्दना को डाटा में परिणित करने के लिए क्या वो भी जिम्मेवार नहीं है ? ठीक है उसकी लाठी के आगे ईन्सान विवश है पर कर्तव्य-बोध और सामयिक-निर्णय भी कुछ होता है ?

“मुझे डर लगता है |जल्दी से छुट्टी लेकर आ जाओ और मुझे अपने साथ ले चलो  - - -“पीहर में बीमार हताश वन्दना ने उससे कहा था |
 “ एक हफ़्ते की बात है |पैतृक अवकाश स्वीकृत करवाया है |सारी छुट्टी तो पहले ही खत्म हो गई हैं |फिर ईलाज तो हो ही रहा है ना  - - -“उसने डाटा का रोना रोया |छुट्टियाँ शून्य थीं|अवैतनिक छुट्टी मतलब वेतन - -

डाटा-प्रबन्धन का ये लालच उस पर भारी पड़ा और उसके पहुंचने वाले दिन ही वन्दना  - - - -

उसकी आखिरी बोलती वीडियो और जीवित तस्वीर भी उसे साले से डाटा के तौर पर ही प्राप्त हुई |

और अब फिर से सब शून्य |

“आप अपने दोस्त के पास भी तो - - - “पूर्णिमा ने जैसे घने अंधरे में फिर से चाँदनी बिखेरी हो |

उसने तुरंत ही रजत को फ़ोन किया और मायूसी से फ़ोन पटक दिया |

“ क्या हुआ ? ”पूर्णिमा ने धीमी आवाज में हाथ पकड़ते हुए पूछा |

‘उसकी हार्ड-डिस्क खराब हो गई थी और अब कुछ नहीं  - - “ मानों जिस चाँद की कल्पना से वो मन-आंगन का अँधेरा धोने चला था वो कोई जुगनू था जिसे जोरदार हवा ने फिर से जमीनदोज़ कर दिया था |

तभी रजत का फ़ोन आता है – “तुम्हारी चिप का डाटा रिक्वर हो सकता है ,एक डाटा ईन्जीनियर को जानता हूँ |पैसे थोड़े ज़्यादा लग सकते हैं |”

वो पूर्णिमा को देखता है |पूर्णिमा की आँखों की रश्मियाँ उसकी आँखों से छनती हुई उसके हृदय को आलोकित करने लगती है |घायल जुगनू को हाथों में उठा वो संजीवनी की तलाश में निकल पड़ता है |कुछ पल डाटा नहीं होता वे जीवन के जूगनू होते हैं |

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by somesh kumar on December 28, 2014 at 10:48pm

शुक्रिया शिज्ज शकूर भाई जी एवं आदरणीय राजेश दीदी जी ,आप सभी के स्नेह के लिए शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2014 at 10:00pm

आदरणीय सोमेश जी इस प्रयास के लिये बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 11, 2014 at 8:52pm

अच्छी कहानी है बहुत- बहुत बधाई |

Comment by somesh kumar on December 10, 2014 at 8:28pm

sbhi sudhijno ka sukriya ,kosis krunga agrjo ke margdrshn me aage bdhne ka


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 10, 2014 at 8:10pm

आदरणीय सोमेश भाई , कहानी बढ़िया कही है , शिल्प मै नही जानता , सुधी जनों  की बतों का संज्ञान ज़रूर लीजियेगा ।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 2:34pm

भाई सोमेश कुमार जी आपके पास भाव बहुत बढ़िया हैं लेकिन जैसा आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ने फ़रमाया, शिल्प और शैली पर भी ध्यान देना शुरू करें तो रचना मज़बूत व चिरजीवी होगी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 9, 2014 at 1:36pm

सोमेश जी

आपके हौसले और प्रयास की दाद देता हूँ  I मगर शिल्प पर बहुत ध्यान देने  की जरूरत है i  कहानी में घटनाएँ बोलती है i पात्र बोलते है  लेखाक स्वयं कम बोलता है पर आप अपनी कहानी में स्वयं अधिक बोलते है i जिस दिन घटनाएं बोलने लगेंगी आपकी कहानी की संप्रेषणीयता  बढ़ जायेगी i यह एक अग्रज की  सलाह मात्र है i इसे अन्यथा मत लेना i सस्नेह i


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 9, 2014 at 11:37am

कहानी अच्छी है, इस विधा में स्पष्टता का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है, अत: सुधिजनो के कहे का संज्ञान लें भाई सोमेश कुमार जी। इस सद्प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें।

Comment by somesh kumar on December 9, 2014 at 10:57am

सहमत हूँ भाई ,शायद कहानी को थोड़ा और विस्तार और स्पष्टता देने की जरूरत है ,कोशिश करूँगा अगर कुछ हो पाया तो अवश्य एडिट करूँगा| पढ़ने और विवेचना के लिए शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 12:22am

अच्छी कहानी है बधाई 

सम्बन्ध कुछ अस्पष्ट से लगे 

बस वंदना, अमित, पूर्णिमा और मोहित के संबंधों को समझने के लिए पूरी कहानी दुबारा पढनी पड़ी 

कृपया ध्यान दे...

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