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तीन लोगों के बीच (कविता )

पूर्ण नहीं हूँ मैं

मुझे उपमा ना बना

प्यार को प्यार रहने दे

इसे रिश्ता ना बना |

आदमी मैं भी हूँ

जज्बात समझता हूँ

हिकार ना कर उसकी

मुझे देवता ना बना |

एक फ़ासले के बाद

लौटना ठीक नहीं

मुझे मंजिल ना समझ

उसे रस्ता ना बना |

किनारे मैं हूँ खड़ा

मझदार में तू

कोई तो फैसला कर

उसे उलझा ना बना |

.

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अमुद्रित )

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Comment

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 12, 2015 at 4:15pm

प्यार को प्यार रहने दे

इसे रिश्ता ना बना |

आदमी मैं भी हूँ

जज्बात समझता हूँ

हिकार ना कर उसकी

मुझे देवता ना बना |----वाह  ! बहुत  सुंदर प्रस्तुति  

Comment by somesh kumar on January 11, 2015 at 10:39am

सभी मित्रों और सम्मानीय सदस्यों का आभार ,निवेदित है कि अगर कोई सुधार अपेक्षित लगे तो अवश्य सूचित करें ,यद्यपि मैं एक स्लो-लर्नर हूँ और नियमों की अपेक्षा अभ्यास और सुधार से सीखने में यकीन रखता हूँ परंतु अगर आप लोग त्रुटियों से अवगत नहीं कराएँगे तो सिर्फ आत्म-मुग्धा में लिखता रहूँगा |अधिकांश लोगों की तरह अलग से सम्बोधित टिप्पणी नही देता इसके लिए भी क्षमा करें |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 10, 2015 at 9:59pm

प्रेम त्रिकोण को एक सुलझे नज़रिए से प्रस्तुत करती सुन्दर कविता 

हार्दिक बधाई आ० सोमेश जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 10, 2015 at 9:56pm

सोमेश भाई, आपकी यह प्रस्तुति ध्यान आकर्षित करती है, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2015 at 9:32pm
आदरणीय सोमेश भाई जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 10, 2015 at 8:41pm

आदरणीय सोमेश भाई , बढ़िया बात कही है ,

पूर्ण नहीं हूँ मैं

मुझे उपमा ना बना

प्यार को प्यार रहने दे

इसे रिश्ता ना बना |

आदमी मैं भी हूँ

जज्बात समझता हूँ

हिकार ना कर उसकी

मुझे देवता ना बना |  -- हार्दिक बधाइयाँ आदरणीय सोमेश भाई ।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:05pm

पूर्ण नहीं हूँ मैं

मुझे उपमा ना बना

प्यार को प्यार रहने दे

इसे रिश्ता ना बना |.......सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई , सोमेश भाई !

कृपया ध्यान दे...

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