For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बृजेश नीरज's Blog (89)

डमरू घनाक्षरी

नियम : ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में .

 

प्रणय पवन बह, रस मन बरसत

बढ़त लहर जस, तन मन गद गद

चमक दमक बस, चलत नगर घर

पग पग हर पल, रहत मदन मद

 

मन भ्रमर चलत, उड़त गगन तक

इत उत भटकत, उठत बहत रह

प्रणय ललक वश, बहकत सम्हरत

चरफर महकत, चटक मटक रह

                 - बृजेश नीरज

Added by बृजेश नीरज on April 26, 2013 at 10:25am — 10 Comments

नवगीत/ सांस अभी बाकी है

बस आस तुम्हारी बाकी है

इस आंख में आंसू बाकी है

 

जब जब झरनों सी तरूणाई

आ आकर फिर लौटी है

तुम बन करके शीत चुभन

याद तुम्हारी लौटी है

 

मीत मिले दिन…

Continue

Added by बृजेश नीरज on April 23, 2013 at 5:14pm — 19 Comments

घनाक्षरी

तोहरे दुआरे मात, खड़े दोउ कर जोरे,

अब तो आप आइके, दरस दिखाइए |

तोहरी शरण आया, तेरा ये कपूत मात,

सेवक को मां अपनी, शरण लगाइए |

इक आस तोरी मात, दूजा को सहाई मोर,

अइसे न आप मोरी, सुधि बिसराइए |…

Continue

Added by बृजेश नीरज on April 17, 2013 at 10:30pm — 14 Comments

वह सड़क बंद है

हर तरफ खौफनाक सन्नाटा

कहीं कोई आवाज नहीं

हालांकि दर्द हदों को छू गया।

 

जिंदगी

दरकने लगी है

तप रही है जमीन,

पानी की बूंद

गायब हो जाती…

Continue

Added by बृजेश नीरज on April 13, 2013 at 6:00pm — 26 Comments

गद्य काव्य

आधुनिक नई धारा हिन्दी साहित्य में कई नई विधाएं अपने साथ लेकर आयी। कई तरह के अभिनव प्रयोग हुए। इन्हीं विधाओं में से एक विधा है गद्य काव्य। इस विधा में त्रिलोचन शास्त्री ने बहुत काम किया।

मैंने एक गद्य काव्य लिखने का प्रयास किया है। मैं नहीं जानता कि मैं कितना सफल या असफल हुआ हूं। अपना यह प्रयास इस मंच पर इस आशय से प्रस्तुत कर रहा हूं कि इसके माध्यम से इस विधा पर कुछ चर्चा हो सके और मेरे साथ साथ सबको इस विधा के बारे में जानने का एक अवसर प्राप्त हो सके।

आशा है सुधी जन मुझे मार्गदर्शन… Continue

Added by बृजेश नीरज on April 9, 2013 at 6:59pm — 12 Comments

गज़ल/ एक प्रयास

2122,       2122,      2122,   2

भूख से बिल्ली परेशां जो रही होगी

रोटियां बासी तभी तो खा गयी होगी

 

हौसले परिंदों के भी तो पस्त होते हैं

लाख उड़ने की कला उनमें रही होगी

 

कोयलों की कूक गायब…

Continue

Added by बृजेश नीरज on April 5, 2013 at 6:20pm — 10 Comments

जागोगे तुम?

कुम्हार सो गया

थक गया होगा शायद

 

मिट़टी रौंदी जा रही है

रंग बदल गया

स्याह पड़ गयी

 

चाक घूम रहा है

समय चक्र की तरह…

Continue

Added by बृजेश नीरज on April 1, 2013 at 5:17pm — 26 Comments

गज़ल/ देह जलती है

शाम सी जिंदगी गुजरती है

रात कितनी करीब लगती है

 

याद नित पैरहन बदलती है

ये शमा बूंद बन पिघलती है

 

आंत महसूस अब नहीं करती

भूख पर आंख से झलकती है…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 28, 2013 at 7:19pm — 14 Comments

लघुकथा ­- चमेली

मंच के सामने आठ दस लोग कुर्सियों पर बैठे थे। सफेद झक कुर्ता पायजामा पहने छरहरे बदन का एक युवक मंच पर खड़ा भाषण दे रहा था, ‘आज हमारे देश को भगत सिंह के आदर्शों की जरूरत है……..।‘ भाषण खत्म होने पर संचालक ने घोषणा की, ‘थोड़ी ही देर में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारम्भ होंगे।‘

कुछ देर बाद एक युवती रंग बिरंगी वेशभूषा में मंच पर आयी और उसने एक गीत पर नृत्य आरंभ कर दिया ‘……चिकनी चमेली……’

भीड़ धीरे…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 25, 2013 at 10:00am — 32 Comments

गज़ल/ अनजान रहा अक्सर

दीदार का बस तेरे अरमान रहा अक्सर

इस प्यार से तू मेरे अनजान रहा अक्सर

 

बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती है

तेरे हबीबों में भी धनवान रहा अक्सर

 

जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा

उस…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 22, 2013 at 11:29am — 12 Comments

हाइकू/ बसंत

1

ऋतु बसंत

उत्सव व उल्लास

मन अनंत।

 

2

अबीर मला

क्लेष की आहुति हो

गुलाल उड़ा।…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:30pm — 10 Comments

ग़जल/ पिघल गया होगा

जब जिक्र मेरा हुआ होगा

वो कुछ पिघल तो गया होगा

 

जी भर तुझे देख ही लेता

ओझल कहीं हो गया होगा

 

अब सांस भर जी नहीं सकते

इस शहर में कुछ धुंआ होगा…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 19, 2013 at 8:02pm — 12 Comments

राज गहरे कई

ये फिजाएं खोलती हैं राज गहरे कई

इस कली में बंद हैं नादान भौंरे कई

 

हम तो आशिक हैं हमारा क्या बहल जाएंगे

आपके दामन पे हैं ये दाग गहरे कई

 

देर तक खामोश सी रोती रही जिंदगी

छूटते हैं जो यहां…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 14, 2013 at 10:00pm — 6 Comments

नज़्म/ कुछ आराम हो

धीरे धीरे शाम उतर आयी

धरती पर

मेरा इंतजार अभी भी बरकरार है

कि कब तेरा दीदार हो

और मेरी सुब्ह हो

 

तेरा जज्ब ए अमजद

या चाहत का असर

ओढ़ता बिछाता हूं…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 11:15pm — 5 Comments

अटक गया विचार

माथे पर सलवटें;

 

आसमान पर जैसे

बादल का टुकड़ा थम गया हो;

समुद्र में

लहरें चलते रूक गयीं हों,

 

कोई ख्याल आकर अटक गया।

 …

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 7:17am — 18 Comments

याद तेरी

ये बहारें ये फिजा सौगात तेरी आ गयी है

चांद ने घूंघट उतारा बात तेरी आ गयी है

 

याद आई, तू न आया, क्या गिला करना किसी से

रात भर आंसू बहाएं बात तेरी आ गयी है

 

इन घटाओं ने न जाने कौन सा जादू किया जो…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 11, 2013 at 10:18pm — 11 Comments

क्षणिकाएं

कुम्हार

 

रूप दे दो

इधर उधर बिखरी हुई है

ये मिट्टी

रौंद रहे हैं लोग

रंग काला पड़ने लगा

कुछ कीड़े भी पनपने लगे

 …

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 7, 2013 at 8:10pm — 18 Comments

हाइकु कविता

पथ के कांटे

तेरी एक छुअन

नया साहस।

   -----

 

ओस की बूंदें

हवा की शीतलता

तेरी छुअन।

   -----

 …

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 6:32pm — 18 Comments

चौपाई

जय अम्बे जय मातु भवानी

जय जननी जय जगकल्यानी

जय बगुला जय विन्ध्यवासिनी

जय वैष्णव जय सिंहवाहिनी

 

कण कण में है वास तिहारा

तुम जग की हो पालनहारा

करूणा की हो सागर माता…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 10:32am — 13 Comments

दोहे

देख धनी बलवान के, चिकने चिकने पात।

दुखिया दीन गरीब के, खुरदुर चिटके पात।।

दुखिया सब संसार है, सुख ढूंढन को जाय।

दूजों का जो दुख हरे, सुख खुद चल के आय।।

अपना कष्ट बिसारि के, औरों की सुधि लेय।

नहीं रीति ऐसी रही, अपनी अपनी खेय।।…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 9:00am — 17 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service