दीदार का बस तेरे अरमान रहा अक्सर
इस प्यार से तू मेरे अनजान रहा अक्सर
बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती है
तेरे हबीबों में भी धनवान रहा अक्सर
जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा
उस वक्त भी रौशन ये श्मशान रहा अक्सर
हर ओर इन गलियों में इक शोर सा मचता है
हाकिम का ही तो यह भी एहसान रहा अक्सर
मेरी मुरादों ने अपना रूप बदल डाला
ईमान के चक्कर में नुकसान रहा अक्सर
- बृजेश नीरज
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वंदना जी आपका आभार!
आदरणीय लक्ष्मण जी आपका आभार!
आदरणीय स्वर्ण जी आपका आभार!
आदरणीय अशोक जी आपका आभार!
उम्दा गजल, बहुत खूब, बधाई श्री ब्रिजेश कुमार सिंह जी
बहुत बढ़िया जी
"जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा
उस वक्त भी रौशन ये श्मशान रहा अक्सर..."
शेयर शेयर करने के लिए धन्यवाद!
आदरणीय ब्रजेश 'नीरज' जी बढ़िया गजल दाद कुबुलें.
आदरणीय राम शिरोमणि जी आपका आभार!
आदरणीय राजेश भाई आपका आभार!
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