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मैं एक पेड़ हूँ

तनहा खड़ा 

एक पेड़ हूँ मैं 

बरसों पहले 

नन्हा सा प्यारा बच्चा

पास के जंगल से …

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 1, 2012 at 4:00pm — 20 Comments

सत्य का प्रहार

अभेद्य है ये दुर्ग अभी न सेंध से प्रहार कर I

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

धन की बहुत लालसा  बिके हुए जमीर हैं.

तन के महाराज सभी  मन के ये फ़कीर हैं.

विवश  अब नहीं है तू , देख तो पुकार कर

बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II

                                     प्रहार कर प्रहार कर........

                   

कौम अब पुकारती  न और इन्तजार कर,

रक्त से बलिदान के सींचित इस…

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Added by Ashok Kumar Raktale on March 25, 2012 at 4:25pm — 10 Comments

बेबसी

रात्रि का अंतिम प्रहर घूम रहा तनहा कहाँ

थी ये वो जगह आना न चाहे कोई यहाँ

हर तरफ छाया मौत का अजीब सा मंजर हुआ

घनघोर तम देख साँसे थमी हर तरफ था फैला धुआं

नजर पड़ी देखा पड़ा मासूम शिशु शव था

हुआ जो अब पराया वो अपना कब था

कौंधती बिजलियाँ सावन सी थी लगी झड़ी

कौन है किसका लाल है देख लूं दिल की धड़कन बढ़ी

देखा तनहा उसे सर झुकाए समझ गया कि उसकी दुनिया लुटी

जल रही थी चिताएं आस पास ले रही थी वो सिसकियाँ घुटी घुटी

देती कफ़न क्या कैसे…

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Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 17, 2012 at 10:00pm — 26 Comments

निजत्व की खातिर

निजत्व की खातिर

कर्तव्यो की बलिवेदी से

कब तक भागेगा इन्सान

ऋण कई हैं

कर्म कई हैं

इस मानव -जीवन के

धर्म कई हैं

अचुत्य होकर इन सबसे

क्या कर सकेगा

कोई अनुसन्धान

कई सपने हैं

कई इच्छाये हैं

पूरी होने की आशाये हैं

पर विषयों के उद्दाम वेग से

कब तक बच सकेगा इन्सान

भीड़-भाड़ है

भेड़-चाल है

दाव-पेंच के

झोल -झाल है

इनसे बच कर अकेला

कब तक चलेगा…

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Added by MAHIMA SHREE on March 15, 2012 at 4:30pm — 60 Comments

कविता : - स्नेह अटल है !

कविता : - स्नेह अटल है !
 …

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Added by Abhinav Arun on March 13, 2012 at 9:58am — 23 Comments

सनम मैं क्या लिखूं.....

सनम मैं क्या लिखूँ .............

नयनों से बहते हुए नीर को,

या दिल में चुभते तीर को.

दिखे चेहरा तेरा जिसमे, उस दर्पण को,

या, प्यार में सब कुछ समर्पण को .

या फिर लिखें अपनी फूटी तकदीर को.

नयनों से बहते हुए नीर को,

या दिल में चुभते हुए तीर को.

सनम मैं क्या लिखूँ .............



लिखूँ तुम्हारे रेशमी बालों को,

या उनमे उलझे सारे सवालों को.

लिखूँ अपने दिल की पुकार को,

या तुम जैसे संगदिल यार को.

बंध गई जिसमे मुहब्बत, लिखूँ उस…

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Added by praveen singh "sagar" on March 11, 2012 at 4:00pm — 10 Comments

गुफ़्तगू पत्रिका का आनलाईन विमोचन व मुशायरा धूमधाम से सम्पन्न

इलाहाबाद। एक पुलिसकर्मी हमेशा डंडा ही नहीं चलाता बल्कि कलम उठाकर अपनी अभिव्यक्ति भी खूबसूरती से व्यक्त कर सकता है। इश्क सुल्तानपुरी ने इस को बेहतरीन ढंग से करके दिखाया है। इन्होंने अपनी काव्य सृजन की क्षमता से लोगों को अवगत करा दिया है। यह बात डीआईजी कार्मिक श्री लाल जी शुक्ल ने ‘गुफ्तगू’ के इश्क सुल्तानपुरी अंक के विमोचन के अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि इश्क साहब की शायरी को लोगों तक लाने में गुफ्तगू पत्रिका ने महत्वपूर्ण भूमिका…

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Added by वीनस केसरी on March 3, 2012 at 9:30pm — 7 Comments

"मुद्दतें" - ग़ज़ल

हुईं थीं मुद्दतें फिर, वक़्त कुछ ख़ाली सा गुज़रा है;

कोई बीता हुआ मंज़र, ज़हन में आके ठहरा है;



कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,

मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;…

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Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 29, 2012 at 2:51pm — 37 Comments

दस फागुनी दोहे -

दस फागुनी दोहे -

मन में संशय न रहे खुले खुले हों बंध ,

नेह छोह के पुष्प से निकले मादक गंध |

 

हुलस उलस इतरा रहे गोरी तेरे अंग ,

मेरे मन बजने लगे ढोल मजीरा चंग |

 

गोरी फागुन रच रहा ये कैसा षडयन्त्र ,

तू कानो में फूंकती आज मिलन के मन्त्र |

 

रंग लगाने के लिए तू बैठी थी ओट ,

मेरा मन…

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Added by Abhinav Arun on February 29, 2012 at 7:30am — 26 Comments

कुछ हाइकु

कुछ हाइकु 


(१)
मंदिर द्वारे 
 जीवन अभिशाप 
 देव दासी का
 (२)…
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Added by asha pandey ojha on February 22, 2012 at 1:00pm — 10 Comments

मानसरोवर - 8

         

रे मानव क्या सोच रहा, इस मरघट में क्या खोज रहा ?
यथार्थ नहीं - यह धोखा है, सार नहीं यह थोथा है.
               यह जग माया का है बाज़ार.
               जहाँ रिश्ता का होता व्यापार.
कोई मातु - पिता, कोई भाई है, कोई बेटी और जमाई है.
कोई प्यारा सुत बन आया है, कोई बहन और कोई जाया है.
                    ये रिश्ते हैं छल के प्राकार.
                    ये हैं माया के ही प्रकार.
इस माया को ही…
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Added by satish mapatpuri on February 24, 2012 at 2:05am — 7 Comments

आरोग्य दोहावली

आरोग्य दोहावली 

दही मथें माखन मिले, केसर संग मिलाय.

होठों पर लेपित करें, रंग गुलाबी आय..

बहती यदि जो नाक हो, बहुत बुरा हो हाल.…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on February 18, 2012 at 2:30pm — 11 Comments

आंखें

इन आंखों की गहराई में,

डूबा दिल दीवाना है.

मस्ती को छलकाती आंखें,

मय से भरा पैमाना हैं.



ये आंखें केवल आंख नहीं हैं ,

ये तो मन का दर्पण हैं .

दिल में उमड़ी भावनाओं का,

करती हर पल वर्णन हैं.



ये आंखे जगमग दीपशिखा सी ,

जीवन में ज्योति भरती हैं.

भटके मन को राह दिखाती,

पथ आलोकित करती हैं.



इन आंखों में डूब के प्यारे,

कौन भला निकलना चाहे.

ये आंखे तो वो आंखे हैं ,

जिनमें हर कोई बसना चाहे.

.…

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Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 15, 2012 at 5:00pm — 8 Comments

वैलेंटाईन दिवस पर कुछ दोहे......

प्रेम तो है परमात्मा, पावन अमर विचार.
इसको तुम समझो नहीं , महज देह व्यापार.

प्रेम गली कंटक भरी, रखो संभलकर पांव.
जीवन भर भरते नहीं, मिलते ऐसे घाव.

'दर्पण' हमसे लीजिए, बड़े काम की सीख.
दे दो, पर मांगो नहीं, कभी प्यार की भीख.

मन से मन का हो मिलन, तो ही सच्चा प्यार.
मन के बिना जो तन मिले, बड़ा अधम व्यवहार . ... दर्पण

Added by Pradeep Bahuguna Darpan on February 13, 2012 at 5:08pm — 8 Comments

दो जन्म

( दो जन्म )

हाँ , आज  हुआ है मेरा 

जन्म , 
एक शानदार हस्पताल में ....
कमरे में टीवी है ...
बाथरूम है ...फ़ोन है ....
तीन वक्त का खाना 
आता है .....
जब मेरा जन्म हुआ 
तो मेरे पास ...
डाक्टरों और नर्सों 
का झुरमट ....
मेरी माँ मुझे देखकर 
अपनी पीड़ा को 
कम करने की कोशिश 
कर रही है .....
हर तरफ ख़ुशी…
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Added by राज लाली बटाला on February 6, 2012 at 10:30pm — 21 Comments

पुरुष और प्रकृति

जब उठाया घूंघट तुमने,

दिखाया मुखड़ा अपना

चाँद भी भरमाया

जब बिखरी तुम्हारे रूप की छटा

चाँदनी भी शरमायी

तुम्हारी चितवन पर

आवारा बादल ने सीटी बजाई ।

तुमने ली अगंड़ाई, अम्बर की बन आई

तुमसे मिलन की चाह में फैला दी बाहें,

क्षितिज तक उसने

भर लिया अंक में तुम्हें, प्रकृति, उसने

तुम्हारे…

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Added by mohinichordia on February 7, 2012 at 6:30am — 10 Comments

''नाशाद मेरा मिहिर''

नाशाद मेरा मिहिर तो जिंदगी वफात है  

साँसों के गिर्दाब में इस रूह की निजात है l  

 

साहिर है तेरी कलम में कुछ कमाल का

जैसे खून में भरा हो कुछ रंग गुलाल का l

 

हर्फों में छुपा रखी है सदियों की बेबसी 

तेरे चेहरे पे अब देखती हूँ ना कोई हँसी l

 

बातों में बेरुखाई अब होती है इस कदर   

बेजार सी जिंदगी जैसे बन गई हो जहर l

 

तासीर न कम होती है होंठों को भींचकर

या बेसाख्ता बहते हुये अश्कों से सींचकर…

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Added by Shanno Aggarwal on January 24, 2012 at 7:50pm — 9 Comments

तुमनें पूछा ...

मैं कौन हूँ ?

ये ही पूछा हैं न ?

ये मेरी ही दस्तक है

जो फैलाती हैं सुगंध

बनती है मकरंद.

जो काफी है

भौरों को मतवाला बनाने को

और कर देती है लाचार

बंद होने को पंखुड़ियों में ही

तुम नहीं देख पाए मुझको

उन परवानों के दीवानेपन में

जो झोंक देते हैं प्राण शमा पर

क्या मैं नहीं होता हूँ

उन ओस की बूंदों में

जो गुदगुदाती हैं

प्रेमियों को

रिमझिम फुहार में

बस…

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Added by Dr Ajay Kumar Sharma on January 18, 2012 at 4:00pm — 12 Comments

ग़ज़ल

सामान उठाते हैं

अब लौट के जाते हैं

दिल मेरा दुखाने को

अहबाब भी आते हैं

ये चाँद-सितारे भी

रातों को रुलाते हैं

जो टूट के मिलते थे

वो रूठ के जाते हैं

मैं उनका निशाना हूँ

वो तीर चलाते हैं

हम अपनी उदासी को

हँस-हँस के छुपाते हैं

की ख़ूब अदाकारी

पर्दा भी गिराते हैं

.......दीपक कुमार

Added by दीपक कुमार on January 10, 2012 at 12:25am — 10 Comments

कविता -नव युग की कामना

 ***********************************       
      नव युग की कामना 
**********************************

बीते कल का फ़साना                                          

नहीं दोहराना है जनाब 
नये युग का तराना 
अब गुनगुनाना है जनाब…
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Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on January 4, 2012 at 2:00pm — 10 Comments

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