हाथों से पता चल जायेगा होठों से खबर लग जायेगी
आँखों से नज़र आ जायेगा ,
सावन का मौसम आया है ऄ
कुछ बातें ऐसी वैसी होंगी , होंगीं जिनकी कुछ वज़ह नहीं
कुछ फूल खिलेंगे ऐसे जिनकी , होगी बागों में जगह नहीं
ख़ुश्बू , सबको बतलायेगी
सावन का मौसम आया है
झूलों पे बैठे हम और तुम , धरती से नभ तक हो आयेंगे
मिलन के बरसेंगे घन घोर , विरह के ताप हवन हो जायेंगे
दुनिया सारी जल जायेगी
सावन का मौसम आया…
Added by ajay sharma on January 16, 2014 at 11:30pm — 8 Comments
बस न पाया , क्या हुआ , कुछ वक़्त वो , ठहरा तो था
वो था मेरा , जितना भी था , जैसा भी था , मेरा तो था
साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था
आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी
बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था
हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय"
ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था
उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं ,…
ContinueAdded by ajay sharma on January 10, 2014 at 10:30pm — 12 Comments
जब कभी भी भोर के मालिक अँधेरे हो गए
क़ाफ़िलें लुटते रहे , रहबर लुटेरे हो गए
कुछ हुयी इंसान में भी इस तरह तब्दीलियाँ
क़द बढ़े लेकिन , वो बौरे हो गए
हो गयी खुशबू ज़हर इस दौर में
बाग़ में , साँपों के डेरे हो गए
ग़र बँटी धरती कहाँ तेरा चमन रह जायेगा
भूल है तेरी अलग तेरे बसेरे हो गए
झूठ तो देखो इधर किस क़दर धनवान है
और उधर नीलाम सच के घर बसेरे हो गए
आदमी डरता था पहले , रात में ही "अजय" …
Added by ajay sharma on January 7, 2014 at 11:00pm — 7 Comments
जो ज़िंदगी का भी समर , जीत कर रुका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(१)
जो ज़िंदगी जिया कि
जैसे हो किराए का मकान
रहा तैयार हर समय
जो साँस का लिए सामान
सुखों की कोई चाह नहीं
दुखों में कोई आह नहीं
डगर डगर मिली थकन वो , मगर कभी थका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(२)
जो चल दिया तो चल दिया
जिसे नहीं सबर है कुछ
नदी है क्या पहाड़ क्या ,
नहीं जिसे ख़बर है कुछ
जो नींद से बिका नहीं
थकन…
Added by ajay sharma on January 4, 2014 at 12:00am — 13 Comments
इन आँखो में , पलते सपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
दुनिया सबकी ,फिर अपने , तेरे - मेरे , अलग अलग हैं क्या
खुशी , प्यार , अपनापन , और सुक़ून की चाह बराबर
अपनो से तक़रार और फिर मनुहार भरी इक आह बराबर
हंसता है जब - जब तू , जिन जिन बातों पे हंसता हूँ मैं भी
तूँ रोए जबभी , तो मैं भी रो दूँ ,
आँसू के रंग , तेरे - मेरे , अलग अलग है क्या
तू पत्थर को तोड़ें या मैं फिरूउँ तराशता संगमरमर को
मैं क़लम से तोड़ूं तलवारें , या तू जीत ले…
Added by ajay sharma on December 31, 2013 at 1:00am — 11 Comments
वो भी इक , अगर बे-ईमान हो जाए
ये बस्ती उम्मीद की , वीरान हो जाए
इबादतगाह बन जाए , ये दुनिया सारी
हर इक आदमी अगर इंसान हो जाए
झुग्गियों की क़िस्मत भी जगमगा उठे
इक खिड़की भी अगर , रोशनदान हो जाए
फ़िज़ायों में इबादतपसंद है , कोई ज़रूर
वरना ऐसे ही नहीं , कोई अज़ान हो जाए
साल-ये-नौ पर , दुआ है मेरी , ये…
Added by ajay sharma on December 26, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
अब तक तेरे पास रहा है
नतीज़तन वो ख़ास रहा है
हिचकी , हिचकी केवल हिचकी
वोआज मौन उपवास रहा है
छुयन का उसकी असर ये देखो
पतझड़ में मधुमास रहा है
मेरा ख्वाब है उसके दिल में
मुझको ये अहसास रहा है
कभी है गहना हया ये उसकी
कभी "अजय" लिबास रहा है
मौलिक व अप्रकाशित
अजय कुमार शर्मा
Added by ajay sharma on December 25, 2013 at 11:00pm — 11 Comments
ख्वाबों में मेरे आकर खुद ही तो बताते हो
है मुझसे मोहब्बत ये ज़माने से छुपाते हो
बढ़ जाती है क्यूँ धड़कन कभी दिल से ये पूछा है
रुक जाते हो क्यूँ मिलकर कभी दिल से ये सोचा है
फिर भी मेरा ये इश्क क्यूँ किताबी बताते हो
ये दिल का मसअला है , दिल से ही ये सुलझेगा
ज़ज़्बात की बातों से , ये और भी उलझेगा
उलफत भी है मुझसे और मुझको ही सताते हो
महफ़िल में हज़ारों की , तन्हाई में रहते हो
कहते हो नही फिर भी क्या-क्या…
Added by ajay sharma on December 19, 2013 at 11:24pm — 9 Comments
साँसें लम्हों का क़र्ज़ मुझे बाँटती रहीं
ज़ख़्मों पे ख्वाहिशों के दर्द टाँकती रहीं
सोचा था कोशिशों को मिलेगी तो कहीं छाँव
क़िस्मत की मुठ्थियाँ ये जलन बाँटती रहीं
बच्चों की तरह बिल्कुल मिट्टी की स्लेट पर
हाथों की लकीरें भी वक़्त काटती…
Added by ajay sharma on December 13, 2013 at 10:34pm — 5 Comments
ग़म ए दौरा से बेख़बर हूँ मैं
निरंतर बह रहा हूँ समंदर हूँ मैं
सफ़र का बोझ उठाए हुए परिंदों की
थकन जो बाँट ले वो खंडहर हूँ मैं
ले ले इम्तहाँ मेरा कोई तूफ़ा भी अगर चाहे
ज़ॅमी पे सब्र की ज़िद का इक घर हूँ मैं
गमों के काफिलों की राह मैं "अजय"
उम्मीद का इक पत्थर हूँ मैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by ajay sharma on December 13, 2013 at 9:30pm — 6 Comments
कुछ तो बात रही होगी ही ,वरना तुमसे रूठा क्यूँ है
हाथों में हर दम रहता था , वही खिलौना टूटा क्यूँ है
तुमने तो लिखा था मुझको सारी कसमें हैं उससे ही
अब वो कसमें कोरी कैसे , अब वो बोलो झूंटा क्यूँ है
हर पन्ने पर नाम लिखा था हर पंक्ति मे ज़िक्र था उसका
ज़िल्द बची क्यूँ उस क़िताब की , आख़िर वो ही छूटा क्यूँ है
जिसका मन मंदिर था तेरा , मूरत थी आराधन वंदन
जिसकी ख़ातिर व्रत रखे थे , वही प्रसाद अब जूठा क्यूँ है
जिससे ही…
ContinueAdded by ajay sharma on December 3, 2013 at 10:30pm — 2 Comments
कभी जब तुम नही रहते ,
तुम्हारा कोई "अहसास" रहता है
कि जैसे बंद कमरे मे
कोई आहट गुजरती हो
कि जैसे हवा के साथ कोई
ख़ुशनुमा ठंडा झोंका
मेरे कमरे में आता , जाता
पर
ठहरता नहीं है
कि जैसे किसी बंद क़िताब के पन्ने
कोई सदा देते हों
कि जैसे पुराने खतों की खुश्बू
गुदगुदाती हो
कोई पुरानी तस्वीर
जैसे बोलने को बे-करार हो
कि जैसे वक़्त का टुकड़ा कोई ,
गुज़र कर भी नहीं गुज़रता है
कभी जब तुम नहीं रहते ,…
Added by ajay sharma on November 16, 2013 at 11:00pm — 12 Comments
जो रख हाथ तू माथे पे मेरे
मैं रोना भूल जाऊँगा
जो दे दे हाथ तू हाथों में मेरे
मैं उठ कर खिल खिलाऊँगा
ना जाने दे मुझे उस पर तक
ना फिर मैं लौट पाऊँगा
ये क्या ज़िद है मेरी बच्चों के तरह
कि मैं फिर से लड़खड़ाऊँगा
तू झिड़क दे हाथ मेरा
मैं फिर अंगुली बढ़ाऊँगा
मैं बैठा याद करने अंगुलियों पर
मैं किसको भूल जाऊँगा
रही है मेरी हमसफ़र मेरी ये ज़िंदगी
मैं कैसे भूल जाऊँगा
अप्रकाशित अमुद्रित
अजय कुमार…
Added by ajay sharma on November 13, 2013 at 9:30pm — 12 Comments
घरों मे वो दादी औ नानी हैं कहाँ अब
बच्चों के सपनों में राजा-रानी हैं कहाँ अब
उम्र से ज़्यादा , क़द बड़े हो गये हैं उनके
कि बच्चों में बच्चों की निशानी हैं कहाँ अब
बुज़ुर्गों की याद भी आए , तो आए कैसे
घरों में कोई भी चीज़ें पुरानी हैं कहाँ अब
नहीं मिलता है , कृष्ण सा क़िरदार कोई
भला दिखती भी मीरा दीवानी हैं कहाँ अब
घर , छतें , घरोंदें हैं , पंछी भी हैं "अजय"
बर्तन में उनके दानें और पानी हैं कहाँ…
Added by ajay sharma on October 18, 2013 at 10:30pm — 15 Comments
केवल एक मिठाई ...माँ...............
रिश्ते नाते संबंधो की होती नरम चटाई .......माँ
शीत लहर मे विषमताओं की , लगती गरम रज़ाई ...माँ
हर रिश्ते को परखा जाना , तब जाना व्यापार है ये
मूँह में राम बगल में छूरी , दुनिया का व्योहार है ये
दुनिया के सब प्रतिफल हैं कड़ुए, केवल एक मिठाई ...माँ
कोई कितना ही रोता हो सच ही जानो चुप…
ContinueAdded by ajay sharma on September 30, 2013 at 10:30pm — 12 Comments
नाम ही बस नाम बाकी रह गया है
कहाँ अब इंसान बाकी रह गया है
क्यों नही करता वो मुझको अब क़ुबूल
कौन का इम्तिहान बाकी रह गया है
बस तसल्ली है जो मेरे पास है
कौन सा सामान बाकी रह गया है
दिल मेरा कहता है वापस आएगा वो
क्या कोई तूफान बाकी रह गया है
अब कहाँ खुद्दारियों का है ज़माना
अब कहाँ ईमान बाकी रह गया है
अजय कुमार शर्मा
मौलिक अप्रकाशित
Added by ajay sharma on July 17, 2013 at 11:00pm — 10 Comments
Added by ajay sharma on July 9, 2013 at 12:00am — 4 Comments
जगह जगह मधुशाला देखी , नल का पानी बंद मिला
अंधी नगरी चौपट राजा , किससे शिकायत किससे गिला
दिया दाखिला सब बच्चों को ,
मिली पढ़ाई मात्र नाम की ,
कंप्यूटर मिल रहे खास को ,
बिजली पानी नही आम की ,
आँखो पर पट्टी है या फिर सबको दी है भंग पिला
गूंगे गाये गीत मान के
बहरे सुन सुन कर इतराएँ
अंधों भी उत्सुक हैं ऐसे
महज इशारों मे बौराएँ
बंदर सारे खेल कर रहे ""अजय" मदारी रहा खिला
मौलिक और…
ContinueAdded by ajay sharma on July 7, 2013 at 11:30pm — 9 Comments
(1)
चाय-औ-नाश्ते पे "इस" त्रासदी की चर्चा करेंगे
सदन मे बैठ कर वो लफ्ज़ का खर्चा करेंगे
"" बहुत गमगीन हैं हम" , सारे नेता कह रहे हैं
बने जो गर विधायक "इस" हानि का हरज़ा भरेंगे
(2).
तेरे बर्फ से दोस्ती थी तेरी दरिया से खेलते थे वो
अब घूँट भर पीने को उनको नही मयस्सर पानी
ये क्या कर दिया तूने पल भर मे तोड़ दी यारी
ये कैसी दुस्मनी अपनो से ये कैसी बद-गुमानी
(3).
सभी ये चाहते है अब ज़िंदगी की सूरत बदल…
ContinueAdded by ajay sharma on July 4, 2013 at 10:00pm — 20 Comments
मुझे लिखना है
Added by ajay sharma on April 25, 2013 at 10:00pm — 4 Comments
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