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Sanjiv verma 'salil''s Blog (225)

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना का भावानुवाद: ---संजीव 'सलिल'

कवीन्द्र रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना का भावानुवाद:

संजीव 'सलिल'

*

*

रुद्ध अगर पाओ कभी, प्रभु! तोड़ो हृद -द्वार.

कभी लौटना तुम नहीं, विनय करो स्वीकार..

*

मन-वीणा-झंकार में, अगर न हो तव नाम.

कभी लौटना हरि! नहीं, लेना वीणा थाम..

*

सुन न सकूँ आवाज़ तव, गर मैं निद्रा-ग्रस्त.

कभी लौटना प्रभु! नहीं, रहे शीश पर हस्त..

*

हृद-आसन पर गर मिले, अन्य कभी आसीन.

कभी लौटना प्रिय! नहीं, करना निज-आधीन..



Acharya Sanjiv Salil… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 13, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

मुक्तिका: ...चलो प्रिय. ---संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
...चलो प्रिय.
संजीव 'सलिल'
*
लिये हाथ में हाथ चलो प्रिय.
कदम-कदम रख साथ चलो प्रिय.

मैं-तुम गुम हो, हम रह जाएँ.
बन अनाथ के नाथ चलो प्रिय.

तुम हो मेरे सिर-आँखों पर.
मुझे बनाकर माथ चलो प्रिय.

पनघट, चौपालें, अमराई
सूने- कंडे पाठ चलो प्रिय.

शत्रु साँप तो हम शंकर हों
नाच, नाग को नाथ चलो प्रिय.

'सलिल' न भाती नेह-नर्मदा.
फैशन करने 'बाथ' चलो प्रिय.

***********************

Added by sanjiv verma 'salil' on June 9, 2010 at 11:58am — 7 Comments

त्रिपदिक नवगीत : नेह नर्मदा तीर पर ---संजीव 'सलिल'

अभिनव सारस्वत प्रयोग:



त्रिपदिक नवगीत :



नेह नर्मदा तीर पर



संजीव 'सलिल'



*

नेह नर्मदा तीर पर,

अवगाहन का धीर धर,

पल-पल उठ-गिरती लहर...

*

कौन उदासी-विरागी,

विकल किनारे पर खड़ा?

किसका पथ चुप जोहता?



निष्क्रिय, मौन, हताश है.

या दिलजला निराश है?

जलती आग पलाश है.



जब पीड़ा बनती भँवर,

खींचे तुझको केंद्र पर,

रुक मत घेरा पार कर...

*

नेह नर्मदा तीर पर,

अवगाहन का धीर… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 9, 2010 at 11:32am — 4 Comments

गीत : भाग्य निज पल-पल सराहूँ..... संजीव 'सलिल'

गीत :



भाग्य निज पल-पल सराहूँ.....



संजीव 'सलिल'



*



भाग्य निज पल-पल सराहूँ,



जीत तुमसे, मीत हारूँ.



अंक में सर धर तुम्हारे,



एक टक तुमको निहारूँ.....





नयन उन्मीलित, अधर कम्पित,



कहें अनकही गाथा.



तप्त अधरों की छुअन ने,



किया मन को सरगमाथा.



दीप-शिख बन मैं प्रिये!



नीराजना तेरी उतारूँ...







हुआ किंशुक-कुसुम सा तन,



मदिर महुआ मन हुआ… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 8, 2010 at 1:00am — 8 Comments

बाल कविता : गुड्डो-दादी --संजीव 'सलिल'

बाल कविता :

गुड्डो-दादी

संजीव 'सलिल'

*



गुड्डो नन्हीं खेल कूदती.

खुशियाँ रोज लुटाती है.

मुस्काये तो फूल बरसते-

सबके मन को भाती है.

बात करे जब भी तुतलाकर

बोले कोयल सी बोली.

ठुमक-ठुमक चलती सब रीझें

बाल परी कितनी भोली.



दादी खों-खों करतीं, रोकें-

टोंकें सबको : 'जल्द उठो.

हुआ सवेरा अब मत सोओ-

काम बहुत हैं, मिलो-जुटो.

काँटें रुकते नहीं घड़ी के

आगे बढ़ते जायेंगे.

जो न करेंगे काम समय पर

जीवन भर… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on June 7, 2010 at 9:45am — 5 Comments

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