जिसे उम्र भर मैं सुना किया ,
जिसे चुपके-चुपके पढा किया ,
मैं समझ सका न जिसे कभी ,
मेरी हाथ की वो किताब हो ।।
एक बाल था मिरी पलक का ,
जो छुपा रहा मिरी आँख में ,
मुझे जिसकी फिक्र न थी कभी ,
मेरी जिन्दगी का वो ख्वाब हो ।।
जो ठहर गयी मेरी फिक्र थी ,
जो सॅवर गया तेरा ख्याल था ,
जो उतर गयी मेरे दिल के आँगन में ,
वो ठण्डी छॉव हो ।।
तेरे इन्तजार का सिलसिला ,
कभी टूूटता तो मैं जानता ,
मुझे मिला…
Added by ajay sharma on December 23, 2014 at 10:30pm — 9 Comments
शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |
शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||
सूरज की आँखों में कोहरे की चुभन रही
धुप के पैरो में मेहंदी की थूपन रही
शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को
समझ गए रिक्शे भी भीड़ के इशारों को …
Added by ajay sharma on December 15, 2014 at 11:10pm — 7 Comments
माँ होती तो ऐसा होता
माँ होती तो वैसा होता
खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको
जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से
कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?
पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको
कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता
माँ तुम ही हो एक सहारा
तब तुम कहते अच्छा होता
माँ होती तो ऐसा होता
माँ…
Added by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:12pm — 9 Comments
मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I
मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I
मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I
तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I
मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I…
ContinueAdded by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:00pm — 14 Comments
पीर पैरों की खड़ा होने नही देती मुझे
मेरी देहरी ही बड़ा होने नहीं देती मुझे
फिर वही आँगन की परिधि में बँट गया
किंतु सीमाएँ मेरी खोने नहीं देती मुझे
उधर पाबंदी ज़माने की हैं हँसनें पे मेरे
इधर दीवारें मेरी रोने नहीं देती मुझे
कर्म के ही हल…
ContinueAdded by ajay sharma on December 9, 2014 at 11:00pm — 8 Comments
साथ मेरे चलों , तो चलों उम्र भर ,
दो कदम साथ चलना गॅवारा नहीं।
तुम अधूरे इधर , मैं हूँ अधूरा उधर ,
दोनों आधे जिये , ये गॅवारा नहीं ।
तुम जो कह दो शुरू, तो शुरूआत हो
तुम जो कह दो खतम , सॉस थम जोयगी ।
पंथ कांटों का हो या कि फूलों भरा
तुम नहीं साथ में , ये गॅवारा नहीं ।
लाख नजरों में दिलकश नजारे रहे
किंतु आँखों की देहरी को न छू सके
मेरे सपनों के घर में सिवाय तेरे ,
चित्र हो और कोई , ये गॅवारा नहीं
मैं अकेला रहूँ या रहूँ भीड…
ContinueAdded by ajay sharma on December 1, 2014 at 11:00pm — 11 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |