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September 2013 Blog Posts (279)

ग़ज़ल (१) : आशिक़ी मौत से बदतर है !

आज फिर याद कई, ज़ख्म पुराने आये

धड़कने बंद करो, शोर मचाने आये//१

.

लेके मरहम न सही, हाथ में गर खंजर हो  

हक़ उसी को है, मेरा दर्द बढ़ाने आये//२

.

इश्क़ में आह की दौलत के, बदौलत हम हैं   

कोई तो हो जो मेरा, ज़ख्म चुराने आये//३ 

.

रोते-रोते ही कहा, मुझको मुआफ़ी  दे दो 

अश्क़ अपना जो, समंदर में छुपाने आये//४

.

कम चरागें न जलाई थी, तेरी यादों की  

जल रहा दिल है, उसे कोई बुझाने आये//५

.

आशिक़ी मौत से…

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Added by रामनाथ 'शोधार्थी' on September 21, 2013 at 4:00pm — 27 Comments

अंतिम योद्धा

हाँ

मैं पिघला दूँगा अपने शस्त्र

तुम्हारी पायल के लिए

और धरती का सौभाग्य रहे तुम्हारे पाँव

शोभा बनेंगे

किसी आक्रमणकारी राजा के दरबार की

फर्श पर एक विद्रोही कवि का खून बिखरा होगा !

 

हाँ

मैं लिखूंगा प्रेम कविताएँ

किन्तु ठहरो तनिक

पहले लिख लूँ एक मातमी गीत

अपने अजन्मे बच्चे के लिए

तुम्हारी हिचकियों की लय पर

बहुत छोटी होती है सिसकारियों की उम्र

 

हाँ

मैं बुनूँगा…

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Added by Arun Sri on September 21, 2013 at 11:00am — 15 Comments

चेतावनी …

सुनो
क्या कहती हैं
माताएं , बहने , सखी सहेलियाँ
वक्त बदल चुका है
सुनना , समझना और विमर्श कंरना
सीख लो
स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब 
तुम होगे
हमारे पाँव जमीं पर हैं
और  इरादे मजबूत
सोच लो ?

मौलिक व् अप्रकाशित

Added by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 8:02pm — 14 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
त्रिभंगी छंद ( प्रकृति को समर्पित)............ डॉ० प्राची

छंद त्रिभंगी : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता, प्रति पद १०,८,८,६ पर यति, प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान, जगण निषिद्ध 

रज कण-कण नर्तन, पग आलिंगन, धरती तृण-तृण, अर्श छुए  

कर तन मन चंचल, फर-फर आँचल, मुक्त उऋण सी, पवन बहे

सुन क्षण-क्षण सरगम, अन्तर पुर नम, विलयन संगम, भाव बिंधे

सुन्दरतम नियमन, श्रुति अवलोकन, लय आलंबन,  सृजन सुधे 

मौलिक और अप्रकाशित 

Added by Dr.Prachi Singh on September 20, 2013 at 8:00pm — 25 Comments

माँ तुम्हारा कर्ज चुकाना है

छन्द मुक्त रचना



नौ महीने

अपनी कोख में सम्भाला

पीड़ा सहकर

लायी मुझे दुनिया में

जानती हूँ

बहुत दुःख सह, ताने सुन

जन्म दिया मुझे



मैंने सुना था, माँ!

जब बाबा ने तुम्हें धमकाया था

कोख में ही मारने का

दबाव बनाया था

दादी ने क्या-क्या नही सुनाया!

पर तुम!

न डरी, न झुकी

मुझे जन्म दिया



हमारे होते भी

तुम निपूतनी कहलाई

पर तुम्हारे

प्यार में कमी न आई



तुम्हारे आँसुओं का

मोल चुकाना… Continue

Added by Meena Pathak on September 20, 2013 at 7:18pm — 22 Comments

फिर क्यों ?

ऐसा नही है 

कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा 

ऐसा नही है 

कि वहां सरसराते हैं सर्प 

ऐसा नही है 

कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं 

ऐसा नही है 

कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े 

ऐसा भी नही है 

कि मौत के खौफ का बसेरा है 



फिर क्यों 

वहाँ जाने से डरते हैं हम 

फिर क्यों 

वहाँ की बातें भी हम नहीं करना चाहते 

फिर क्यों 

अपने लोगों को

बचाने की जुगत लागाते हैं हम 

फिर क्यों 

उस आतंक को घूँट-घूँट पीते हैं…

Continue

Added by anwar suhail on September 20, 2013 at 7:00pm — 7 Comments

इसबार नहीं......

एक दिन

तुमने कहा था

मैं सुंदर हूँ

मेरे गेसू काली घटाओं की तरह हैं

मेरे दो नैन जैसे मद के प्याले

चौंक कर शर्मायी

कुछ पल को घबरायी

फिर मुग्ध हो गयी

अपने आप पर

पर जल्द ही उबर गयी

तुम्हारे वागविलास से

फंसना नहीं है मुझे

तुम्हारे जाल में

सदियों से

सजती ,संवरती रही

तुम्हारे मीठे बोल पर

डूबती उतराती रही

पायल की छन छन में

झुमके , कंगन , नथुनी

बिंदी के चमचम में

भुल गयी

प्रकृति के विराट सौन्दर्य… Continue

Added by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 6:21pm — 34 Comments

मुझको दीवाना बना देंगे ये तेरे जल्वे

मुझको दीवाना बना देंगे ये तेरे  जल्वे

आग सी दिल में लगा देंगे ये तेरे जल्वे

नींद में डूबा हुआ जाने हुआ मेरा दिल

उसको लगता है जगा देंगे ये तेरे जल्वे

 

जैसे परवाना जले कोई शमा जलते ही  

बैसे ही मुझ को जला देंगे ये  तेरे जल्वे

 

हमने इस दिल को बचाया था बड़ी मुश्किल से 

दिल को अब लगता मिटा देंगे ये  तेरे जल्वे

 

क्या तेरे दिल में…

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Added by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2013 at 4:00pm — 14 Comments

कौन खेवैया ....

गिरा रुपैया

बढती मँहगाई

कौन खेवैया !..........१



भ्रष्ट समाज

कलुषित है सोच

बेमानी आज. !..........२



शिशु मुस्कान

खिले अन्तकरण

फूल समान !.............३



अक्स तुम्हारा

चमकता चन्द्रमा

सबका प्यारा !............४



भगवा वस्त्र

ठगी है मानवता

उठाओ शस्त्र ! ...........५



विषाक्त मन

निकालो समाधान

व्याकुल हम !.............६



सोचो तो जरा

सुरक्षित कहाँ धी

बेमौत मरा !… Continue

Added by Parveen Malik on September 20, 2013 at 3:30pm — 15 Comments

कन्या पूजन -- लघु कथा

 उमा दादी ने जब बड़े प्यार से सभी कन्याओं को चरण धो धो कर जमीन पर बिछे आसन पर बैठाया और रोली कुमकुम का टीका लगा कर  सभी कन्याओं को चुनरी ओढ़ाई और भोजन परोस कर वही बगल मे हाथ जोड़ कर बैठ गईं - “भोजन जिमों मेरी माता रानी ।"

अचानक उनके बीच मे बैठी उमा दादी की पोती उठ खड़ी हुई  - “ आप गंदी हो दादी ! आज कितने प्यार से खिला रही हो रोज तो माँ को कहती हो बेटी पैदा करके रख दी । अब बताओ अगर बेटियाँ नहीं पैदा होती तो तुम कन्या कहाँ से लाती और किसको खिलाती, कैसे कन्या पूजन करती…

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Added by annapurna bajpai on September 20, 2013 at 1:00pm — 29 Comments

गज़ल - गांधियों के रूप में ढलते गए

बह्र -- रमल मुसद्दस महजूफ

२१२२, २१२२, २१२

हम चले थे आस में चलते गए

और वो सब हाथ ही मलते गए



खूबसूरत रुत न थी औ रहगुज़र

तीरगी की बाढ़ को छलते गए



खूब रोका कंटकों नें राह में

राह में हम फूल सा खिलते गए



कह रहीं थीं आँधियाँ रुक जा जरा

आँधियों सा राह में चलते गए



झूठ आया रूप धर के सामने

गांधियों के रूप में ढ़लते गए



देख सुन कह मत गलत बुनते रहे

वानरों के पेट भी पलते गए



या खुदा तूने न देखा… Continue

Added by Poonam Shukla on September 20, 2013 at 1:00pm — 20 Comments

हिन्दी (कुण्डली)

हिन्दी हिन्द की बेटी, ढूंढ रही सम्मान ।
घर गली हर नगर नगर, सारा हिन्दूस्तान ।।
सारा हिन्दूस्तान, दासत्व छोड़े कैसे ।
उड़ रहे आसमान, धरती पग धरे कैसे ।।
‘रमेश‘ कह समझाय, अपनत्व माथे बिन्दी ।
स्वाभीमान जगाय, ममतामयी है हिन्दी ।।
.....................................
मौलिक अप्रकाशित

Added by रमेश कुमार चौहान on September 20, 2013 at 11:30am — 9 Comments

तुम्हारे ही भरोसे हूँ

 1 2 2 2   1 2 2 2

कभी यूँ पास आ जाना

किया वादा निभा जाना /



गजब की यह फकीरी है

इसे तुम अब हटा जाना /



गरीबी हो अमीरी हो

कसम अपनी निभा जाना /



तुम्हारी आस आने की

जरा दिल में जगा जाना /

तुम्हारे ही भरोसे हूँ

भरोसा यह बढ़ा जाना /



दिलों को खोल कर अपने

गिले शिकवे मिटा जाना /

नहीं तकरार करना अब

हमें झट से मना जाना /



तुम्हें हम कह नहीं सकते

दिलों को अब मिला जाना…

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Added by Sarita Bhatia on September 20, 2013 at 9:42am — 20 Comments

ग़ज़ल ..

१ २ २ २ / १ २ २ २ /१ २ २ २ 

न  मिलने का नया, उसका बहाना है.

उसे हर हाल बस, मेरा दिल दुखाना है .

कहाँ तक सुनें, कभी तो खत्म हो जाएँ,

नए किस्से नया, उसका हर फ़साना है.

जिसे देखो, वो संग ले हाथ में, दौड़े,

जहाँ में मुझ पागल का, क्या ठिकाना है .…

Continue

Added by shalini rastogi on September 19, 2013 at 11:12pm — 16 Comments

हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?

हे विधि! क्यों आस पल में तूने तोड़ दी,

हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?

एक ममता की आस,कुछ स्वप्नों के छोर,

नवजीवन का संचार,एक श्वांसों की डोर।

हाय ! पल में तूने क्यों तोड़ दी?

हे नियति! क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?

एक 'माँ' का संबोधन,सुनने को व्याकुल मन,

एक नन्हा-सा जीवन,एक नवल शिशु-तन।

आह ! तूने नन्हीं देह मरोड़ दी।

हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?

गर्भ धारण की समस्त पीड़ा,जो मैंने सही,

हृदय की वो वेदना,जो अंतरतम में…

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Added by Savitri Rathore on September 19, 2013 at 8:15pm — 18 Comments

कुण्डलिया [ प्यार ]

कर लो सब से दोस्ती, छोड़ो अब तकरार
जिंदगानी दो दिन की बांटो थोड़ा प्यार //
बांटो थोड़ा प्यार, यही है दौलत असली
प्यार स्नेह को मान ,बाकी सभी है नकली
धन दौलत सब छोड़ ,जीवन में प्यार भर लो
रहे कोई न गैर ,सब से दोस्ती कर लो //

................मौलिक व अप्रकाशित..........

Added by Sarita Bhatia on September 19, 2013 at 7:00pm — 13 Comments

क्यूँ तुझसे मुहब्बत इतनी करता हूँ

तेरी हर बात का  कायल मै  रहता हूँ

क्यूँ तुझसे मुहब्बत इतनी करता हूँ



सितारों संग अकेले बैठता  मै  जब

खुले दिल से तुम्हारी बात करता हूँ

नहीं मुमकिन अगर इस दौर में मिलना

ख्यालों में तुम्हे अपने मै  मिलता हूँ



बहुत सी बात करता में हमेशा जब

तेरा जिक्र खुद -ब -खुद जुबान करता हूँ
.
जुदाई का लम्हा बढता गया अब तो

क्यूँ अब भी मुहब्बत इतनी करता हूँ

मौलिक व…

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Added by Himanshu Jeena on September 19, 2013 at 1:00pm — 11 Comments

दंगाई महफूज, मार के निचले-तबके-

तब के दंगे और थे, अब के दंगे और |
हुड़दंगी सिरमौर तब, अब नेता सिरमौर |


अब नेता सिरमौर, गौर आ-जम कर करलें |
ये दंगे के दौर, वोट से थैली भर लें |


मरते हैं मर जाँय, कुचल कर बन्दे रब के |
दंगाई महफूज, मार के निचले-तबके ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 19, 2013 at 8:42am — 9 Comments

मैंने बस राख में हवा की है -अभिनव अरुण ||ग़ज़ल||

ग़ज़ल –

२१२२  १२१२  २२

तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,

माफ़ करना अगर खता  की है |

 

राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,

चोट खायी तो ये दवा की है |

 

अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,

मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |

 

फूल तो सौ मिले हैं गुलशन में ,

खुशबुओं की तलाश बाकी है |

 

तुम इसे शाइरी समझते हो ,

मैंने बस राख में हवा की है |

 

एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,

आईनों ने ये इत्तिला…

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Added by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 4:30am — 46 Comments

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