आज फिर याद कई, ज़ख्म पुराने आये
धड़कने बंद करो, शोर मचाने आये//१
.
लेके मरहम न सही, हाथ में गर खंजर हो
हक़ उसी को है, मेरा दर्द बढ़ाने आये//२
.
इश्क़ में आह की दौलत के, बदौलत हम हैं
कोई तो हो जो मेरा, ज़ख्म चुराने आये//३
.
रोते-रोते ही कहा, मुझको मुआफ़ी दे दो
अश्क़ अपना जो, समंदर में छुपाने आये//४
.
कम चरागें न जलाई थी, तेरी यादों की
जल रहा दिल है, उसे कोई बुझाने आये//५
.
आशिक़ी मौत से…
ContinueAdded by रामनाथ 'शोधार्थी' on September 21, 2013 at 4:00pm — 27 Comments
हाँ
मैं पिघला दूँगा अपने शस्त्र
तुम्हारी पायल के लिए
और धरती का सौभाग्य रहे तुम्हारे पाँव
शोभा बनेंगे
किसी आक्रमणकारी राजा के दरबार की
फर्श पर एक विद्रोही कवि का खून बिखरा होगा !
हाँ
मैं लिखूंगा प्रेम कविताएँ
किन्तु ठहरो तनिक
पहले लिख लूँ एक मातमी गीत
अपने अजन्मे बच्चे के लिए
तुम्हारी हिचकियों की लय पर
बहुत छोटी होती है सिसकारियों की उम्र
हाँ
मैं बुनूँगा…
ContinueAdded by Arun Sri on September 21, 2013 at 11:00am — 15 Comments
सुनो
क्या कहती हैं
माताएं , बहने , सखी सहेलियाँ
वक्त बदल चुका है
सुनना , समझना और विमर्श कंरना
सीख लो
स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब
तुम होगे
हमारे पाँव जमीं पर हैं
और इरादे मजबूत
सोच लो ?
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 8:02pm — 14 Comments
छंद त्रिभंगी : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता, प्रति पद १०,८,८,६ पर यति, प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान, जगण निषिद्ध
रज कण-कण नर्तन, पग आलिंगन, धरती तृण-तृण, अर्श छुए
कर तन मन चंचल, फर-फर आँचल, मुक्त उऋण सी, पवन बहे
सुन क्षण-क्षण सरगम, अन्तर पुर नम, विलयन संगम, भाव बिंधे
सुन्दरतम नियमन, श्रुति अवलोकन, लय आलंबन, सृजन सुधे
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr.Prachi Singh on September 20, 2013 at 8:00pm — 25 Comments
Added by Meena Pathak on September 20, 2013 at 7:18pm — 22 Comments
ऐसा नही है
कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा
ऐसा नही है
कि वहां सरसराते हैं सर्प
ऐसा नही है
कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं
ऐसा नही है
कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े
ऐसा भी नही है
कि मौत के खौफ का बसेरा है
फिर क्यों
वहाँ जाने से डरते हैं हम
फिर क्यों
वहाँ की बातें भी हम नहीं करना चाहते
फिर क्यों
अपने लोगों को
बचाने की जुगत लागाते हैं हम
फिर क्यों
उस आतंक को घूँट-घूँट पीते हैं…
Added by anwar suhail on September 20, 2013 at 7:00pm — 7 Comments
Added by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 6:21pm — 34 Comments
मुझको दीवाना बना देंगे ये तेरे जल्वे
आग सी दिल में लगा देंगे ये तेरे जल्वे
नींद में डूबा हुआ जाने हुआ मेरा दिल
उसको लगता है जगा देंगे ये तेरे जल्वे
जैसे परवाना जले कोई शमा जलते ही
बैसे ही मुझ को जला देंगे ये तेरे जल्वे
हमने इस दिल को बचाया था बड़ी मुश्किल से
दिल को अब लगता मिटा देंगे ये तेरे जल्वे
क्या तेरे दिल में…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2013 at 4:00pm — 14 Comments
Added by Parveen Malik on September 20, 2013 at 3:30pm — 15 Comments
उमा दादी ने जब बड़े प्यार से सभी कन्याओं को चरण धो धो कर जमीन पर बिछे आसन पर बैठाया और रोली कुमकुम का टीका लगा कर सभी कन्याओं को चुनरी ओढ़ाई और भोजन परोस कर वही बगल मे हाथ जोड़ कर बैठ गईं - “भोजन जिमों मेरी माता रानी ।"
अचानक उनके बीच मे बैठी उमा दादी की पोती उठ खड़ी हुई - “ आप गंदी हो दादी ! आज कितने प्यार से खिला रही हो रोज तो माँ को कहती हो बेटी पैदा करके रख दी । अब बताओ अगर बेटियाँ नहीं पैदा होती तो तुम कन्या कहाँ से लाती और किसको खिलाती, कैसे कन्या पूजन करती…
ContinueAdded by annapurna bajpai on September 20, 2013 at 1:00pm — 29 Comments
Added by Poonam Shukla on September 20, 2013 at 1:00pm — 20 Comments
हिन्दी हिन्द की बेटी, ढूंढ रही सम्मान ।
घर गली हर नगर नगर, सारा हिन्दूस्तान ।।
सारा हिन्दूस्तान, दासत्व छोड़े कैसे ।
उड़ रहे आसमान, धरती पग धरे कैसे ।।
‘रमेश‘ कह समझाय, अपनत्व माथे बिन्दी ।
स्वाभीमान जगाय, ममतामयी है हिन्दी ।।
.....................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 20, 2013 at 11:30am — 9 Comments
1 2 2 2 1 2 2 2
कभी यूँ पास आ जाना
किया वादा निभा जाना /
गजब की यह फकीरी है
इसे तुम अब हटा जाना /
गरीबी हो अमीरी हो
कसम अपनी निभा जाना /
तुम्हारी आस आने की
जरा दिल में जगा जाना /
तुम्हारे ही भरोसे हूँ
भरोसा यह बढ़ा जाना /
दिलों को खोल कर अपने
गिले शिकवे मिटा जाना /
नहीं तकरार करना अब
हमें झट से मना जाना /
तुम्हें हम कह नहीं सकते
दिलों को अब मिला जाना…
Added by Sarita Bhatia on September 20, 2013 at 9:42am — 20 Comments
१ २ २ २ / १ २ २ २ /१ २ २ २
न मिलने का नया, उसका बहाना है.
उसे हर हाल बस, मेरा दिल दुखाना है .
कहाँ तक सुनें, कभी तो खत्म हो जाएँ,
नए किस्से नया, उसका हर फ़साना है.
जिसे देखो, वो संग ले हाथ में, दौड़े,
जहाँ में मुझ पागल का, क्या ठिकाना है .…
ContinueAdded by shalini rastogi on September 19, 2013 at 11:12pm — 16 Comments
हे विधि! क्यों आस पल में तूने तोड़ दी,
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
एक ममता की आस,कुछ स्वप्नों के छोर,
नवजीवन का संचार,एक श्वांसों की डोर।
हाय ! पल में तूने क्यों तोड़ दी?
हे नियति! क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
एक 'माँ' का संबोधन,सुनने को व्याकुल मन,
एक नन्हा-सा जीवन,एक नवल शिशु-तन।
आह ! तूने नन्हीं देह मरोड़ दी।
हे नियति!क्यों वेदना तूने मुझे कठोर दी?
गर्भ धारण की समस्त पीड़ा,जो मैंने सही,
हृदय की वो वेदना,जो अंतरतम में…
Added by Savitri Rathore on September 19, 2013 at 8:15pm — 18 Comments
कर लो सब से दोस्ती, छोड़ो अब तकरार
जिंदगानी दो दिन की बांटो थोड़ा प्यार //
बांटो थोड़ा प्यार, यही है दौलत असली
प्यार स्नेह को मान ,बाकी सभी है नकली
धन दौलत सब छोड़ ,जीवन में प्यार भर लो
रहे कोई न गैर ,सब से दोस्ती कर लो //
................मौलिक व अप्रकाशित..........
Added by Sarita Bhatia on September 19, 2013 at 7:00pm — 13 Comments
तेरी हर बात का कायल मै रहता हूँ
क्यूँ तुझसे मुहब्बत इतनी करता हूँ
सितारों संग अकेले बैठता मै जब
खुले दिल से तुम्हारी बात करता हूँ
नहीं मुमकिन अगर इस दौर में मिलना
ख्यालों में तुम्हे अपने मै मिलता हूँ
बहुत सी बात करता में हमेशा जब
क्यूँ अब भी मुहब्बत इतनी करता हूँ
मौलिक व…
ContinueAdded by Himanshu Jeena on September 19, 2013 at 1:00pm — 11 Comments
Added by Admin on September 19, 2013 at 9:00am — 3 Comments
तब के दंगे और थे, अब के दंगे और |
हुड़दंगी सिरमौर तब, अब नेता सिरमौर |
अब नेता सिरमौर, गौर आ-जम कर करलें |
ये दंगे के दौर, वोट से थैली भर लें |
मरते हैं मर जाँय, कुचल कर बन्दे रब के |
दंगाई महफूज, मार के निचले-तबके ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 19, 2013 at 8:42am — 9 Comments
ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
तुझसे मिलने की इल्तिज़ा की है ,
माफ़ करना अगर खता की है |
राज़ पूछो न मुस्कुराने का ,
चोट खायी तो ये दवा की है |
अब मुझे हिचकियाँ नहीं आतीं ,
मेरे हक़ में ये क्या दुआ की है |
फूल तो सौ मिले हैं गुलशन में ,
खुशबुओं की तलाश बाकी है |
तुम इसे शाइरी समझते हो ,
मैंने बस राख में हवा की है |
एक पत्थर ख़ुशी से पागल था ,
आईनों ने ये इत्तिला…
ContinueAdded by Abhinav Arun on September 19, 2013 at 4:30am — 46 Comments
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