For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts – August 2010 Archive (45)

जिंदगी एक खुली किताब !!!

जिंदगी एक खुली किताब है,
फिर भी ये किताब खुद के पास हो,
बेहतर
जो जाने कीमत इसकी,
जो जाने इज्जत इसकी,
जो इसके पन्नो का मोल समझे,
ये किताब हो तो उसके पास हो,

जो सर से लगाये यू ,
सरस्वती का वास हो,
भला हो या बुरा हो ,
अपना समझ कर जो माफ़ करे,
कुछ सीख नयी हो सीखलाने की,
दे वो सीख मृदुल मुस्कान से ,
जिंदगी की वो खुली किताब,
हो तो उसके पास हो |

Added by Dr Nutan on August 31, 2010 at 8:00pm — 13 Comments

उसने जो नाम ले के इक बार क्या पुकार लिया

उन्हें खबर नहीं के दर्द कब उभरता है --

किसकी यादों की रहगुजर से कब गुजरता है --

जख्म भरने की कोशिशों में उम्र बीत गई --

एक भरता है तो फिर दूसरा उभरता है --|





इक अजनबी चुपके से मन के द्वार आ गया --

पागल हुआ मन और उनपे प्यार आ गया

उसने जो नाम ले के इक बार क्या पुकार लिया

हमको लगा के मिलन का त्यौहार आ गया |





जो शौक से पाले जाते हैं वो दर्द नहीं कहलाते हैं --

जो दर्द हबीब से मिलते हैं वो दर्द ही पाले जाते हैं

जब टूट जाये उम्मीद… Continue

Added by jagdishtapish on August 29, 2010 at 8:12pm — 2 Comments

कुछ तो हूँ कुछ नहीं हूँ मैं

कुछ तो हूँ कुछ नहीं हूँ मैं
चंद लम्हों कि रुत नहीं हूँ मैं


मुझको सजदा करो ना पूजो तुम
संगमरमर का बुत नहीं हूँ मैं |


मेरे नीचे है अँधेरे का वजूद
शाम से पहले कुछ नहीं हूँ मैं |


यूँ ना तेवर बदल के देख मुझे
जिंदगी तेरा हक नहीं हूँ मैं |


बेखुदी में तपिश ये आलम है
वो खुदा है तो खुद नहीं हूँ मैं |

मेरे काव्य संग्रह ---कनक ---से

Added by jagdishtapish on August 28, 2010 at 10:17am — 3 Comments

अंकुरण



▬► Photography by : Jogendrs Singh ©



::::: अंकुरण ::::: Copyright © (मेरी नयी कविता)

जोगेंद्र सिंह Jogendra Singh ( 10 अगस्त 2010 )



(सामान्य जीवन में अच्छे या बुरे का चरम बहुधा नहीं हुआ करता है.. परन्तु यह भी तो देखिये कि यहाँ मानव मन को अभिव्यक्त किया गया है, जिसकी सोचों का कोई पारावार नहीं होता.. जितना सोच जाये वही कम है.. सीमा बंधन सोचों के लिए बने ही नहीं हैं.. फिर लिखते वक्त मेरे मन में अपने मित्र सी हुई बातचीत थी… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on August 26, 2010 at 11:00pm — 10 Comments

रह कर भी साथ तेरे तुझ से अलग रहे हैं

रह कर भी साथ तेरे तुझ से अलग रहे हैं

कुछ वो समझ रहे थे कुछ हम समझ रहे हैं |





एक वक़्त था गुलों से कतरा के हम भी गुजरे

एक वक़्त है काँटों से हम खुद उलझ रहे हैं |





चाहत की धूप में जो कल सर के बल खड़े थे

मखमल की दूब पर भी अब पांव जल रहे हैं |





उठता हुआ जनाजा देखा वफ़ा का जिस दम

दुश्मन तो रोये लेकिन कुछ दोस्त हंस रहे हैं |





मेरा नाम दीवारों पे लिख लिख के मिटाते हैं

बच्चों की तरह बूढे ये चाल चल रहे हैं… Continue

Added by jagdishtapish on August 26, 2010 at 9:35am — 5 Comments

निर्झर

निर्झर
----
पर्वत के शिखर की
उतुन्गता से उपजे
शुभ्र,धवल
निर्झर से तुम
कटीली उलझी राहों
अवरोधों को अनदेखा कर
कल कल करते
गुनगुनाते
सम गति से चलते
अपनी राह बनाते जाना
गतिशीलता धर्म तुम्हारा
रुकने झुकना
नहीं कर्म तुम्हारा
प्रशस्त राहों के रही
बनाना है तुम्हे
अंधियारे मैं
दीप सा
जलते रहना
रजनी छाबरा

Added by rajni chhabra on August 26, 2010 at 12:30am — 4 Comments

रक्तबीज

चंडी रूप धारण किए

आँखों में दहकते शोले लिए

मुख से ज्वालामुखी का लावा उगलती

बीच सड़क में

ना जाने वह किसे और क्यों

लगातार कोसे जा रही थी

सड़क पर आने जाने वाले सभी

उस अग्निकुंड की तपिश से

दामन बचा बचा कर निकल रहे थे

ना जाने क्यों सहसा ही .....

मुझ में साहस का संचार हुआ

मैंने पूछ ही लिया

बहना....,

क्या माजरा है ?

क्यों बीच सड़क में धधक रही हो ?

उसकी ज्वाला भरी आँखों से

गंगा यमुना की धार बह निकली

रुंधे गले से उसका दर्द… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on August 23, 2010 at 2:30pm — 15 Comments

अपने दामन में छुपा लूँगा तुम आओ

अपने दामन में छुपा लूँगा तुम चले आओ
चराग दिल के जला लूँगा तुम चले आओ


तुम गया वक्त नहीं लौट के जो आ ना सके
फिर कलेजे से लगा लूँगा तुम चले आओ

में सनमसाज हूँ मर मर के तराशूंगा तुम्हें
काबायें दिल में लगा लूँगा तुम चले आओ


वफ़ा के नगमे लिखूंगा मै किताबे दिल पर
उम्र के साज पे गा लूँगा तुम चले आओ


सुकूने जिंदगी है ख़त का हर एक लफ्ज़ तपिश
पुर्जे-पुर्जे को उठा लूँगा तुम चले आओ
मेरे काव्य संग्रह ---कनक से ----

Added by jagdishtapish on August 23, 2010 at 12:00pm — 5 Comments

वीर --पथ और मंजिल

गिरने से क्यों डर रहा

चलना तो तुझी को वीर |

डूबने से क्यों डर रहा

तबियत से लहरें तो चीर |



मार्ग तो प्रशस्त है

तो काहे की बिडम्बना

आए अगर विषमता

दिखा दे अपनी आकुलता

बेचैनी और व्याकुलता



याद कर अपनी मकसद को

झोंक दे उसमे खुद को

जलने से क्यों डर रहा

बहा दे उस अनल पे नीर



सुर तू ही शोर्य है

तू ही वो किरण है

कर्म पथ पे चल जरा

कहा तेरे चरण है

बेधने से क्यों डर रहा

फाड़ दे उस घटा की… Continue

Added by ritesh singh on August 23, 2010 at 4:30am — 2 Comments

मुक्तिका: समझ सका नहीं संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:



समझ सका नहीं



संजीव 'सलिल'

*

*

समझ सका नहीं गहराई वो किनारों से.

न जिसने रिश्ता रखा है नदी की धारों से..



चले गए हैं जो वापिस कभी न आने को.

चलो पैगाम उन्हें भेजें आज तारों से..



वो नासमझ है, उसे नाउम्मीदी मिलनी है.

लगा रहा है जो उम्मीद दोस्त-यारों से..



जो शूल चुभता रहा पाँव में तमाम उमर.

उसे पता ही नहीं, क्या मिला बहारों से..



वो मंदिरों में हुई प्रार्थना नहीं सुनता.

नहीं फुरसत है उसे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 22, 2010 at 3:25pm — 4 Comments

गीत: आपकी सद्भावना में... संजीव 'सलिल'

निवेदन:



आत्मीय !



वन्दे मातरम.



जन्म दिवस पर शताधिक मंगल कामनाएँ भाव विभोर कर गयी. सभी को व्यक्तिगत आभार इस रचना के माध्यम से दे रहा हूँ.



मुझसे आपकी अपेक्षाएँ भी इन संदेशों में अन्तर्निहित हैं. विश्वास रखें मेरी कलम सत्य-शिव-सुन्दर की उअपसना में सतत तत्पर रहेगी. विश्व वाणी हिन्दी के सभी रूपों के संवर्धन हेतु यथाशक्ति उनमें सृजन कर आपकी सेवा में प्रस्तुत करता रहूँगा.



पाँच वर्ष पूर्व हिन्दीभाषियों की संख्या के आधार पर हिन्दी का विश्व में दूसरा… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 21, 2010 at 9:39am — 5 Comments

संग्राहलयो में बंद कागज़ के टुकड़े

वो ताड़ के पत्ते
वो भोज -पत्र
वो कपडे और कागज के टुकड़े
कितने खुशनसीब है ...
जिन्होंने अपने ऊपर
गुदवाया भारत का इतिहास ॥

वो साहिल के पंखों की कलम
वो दावात
और वो स्याही
आप कितने धन्य है ....
कितने ही क्रांतिवीरों ने
स्पर्श किया आपको ॥

छूना चाहता हू , मैं भी आपको
ताकि .....
क्रांतिवीरों का थोडा सा ओज
उनके क्रांतिकारी विचार
स्थानांतरित हो सके हममे
आप सहेज कर रखे गए है
शीशे के अन्दर संग्राहलयो में ॥

Added by baban pandey on August 20, 2010 at 10:57pm — 3 Comments

कौन चीखता है तेरे जुल्मतों भरे हिसारों से।

समझ ना सका मैं तेरे दर पर लगी कतारों से,

रोशनी की उम्मीद कर बैठा गर्दिशमय सितारों से।



हमसफर ही तंग दिल मिला था मुझको,

किस कदर फरीयाद करता मैं इन बहारों से।



कौन रूकेगा इस सरनंगू शजर के नीचे,

जो खुद टिका हो बेजान इन सहारों से।



आंखों के आब को अजान देते रहते हैं जो,

लम्हा-लम्हा मांगता रहा समर इन रेगजारों से।



नामो-निशां भी मिटा चुका हूं तेरा इस दिल से,

तो किस कदर गुजरू तेरे दर के रहगुजारों से।



मेरी चाहत तो खला में खो… Continue

Added by Harsh Vardhan Harsh on August 20, 2010 at 2:06am — 5 Comments

अलबेला राही

चल रहा है पग पर राही
अकेला है ,अलबेला है
मंद कर तू पग रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
कहने को तू मौजी है अल्हड ,बेपरवाह
क्या जल्दी है बोल रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
जरा कर पीछे लोचन रे राही
अकेला है ,अलबेला है |
अपने तेरे छुट गए है
क्यों दोस्त क्या तेरे कोई नहीं है
जीवन रस में पग रे राही
क्यों अकेला है ,क्यों अलबेला है ?

......रीतेश सिंह

Added by ritesh singh on August 19, 2010 at 11:30pm — 3 Comments

हाँ --कहा--- प्यार का इजहार किया था तुमसे

हाँ --कहा--- प्यार का इजहार किया था तुमसे --

हाँ ---कहो --- तुमने भी प्यार किया था हमसे



कसम खुदा की ईमान भी दे देते हम '

कसम खुदा की ये जान भी दे देते हम



उम्र भर अपनी पलकों पे बिठाये रखते '

सारी दुनियां की निगाहों से छुपाये रखते|



मगर अफ़सोस हमारा इरादा टूट गया'

उम्र भर साथ निभाने का वादा टूट गया



अय मेरे दोस्त नया घर तुझे मुबारक हो

नई दुनिया नया शहर तुझे मुबारक हो |



हमारा क्या है दिल पे एक जख्म और सही'

प्यार की… Continue

Added by jagdishtapish on August 19, 2010 at 10:33pm — 7 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
क्या बोलूँ..

क्या बोलूँ अब क्या लगता है..

चाहत में घन-पुरवाई है
किन्तु, पहुँच ना सुनवाई है
मेघ घिरे फिर भी ना बरसे तो मौसम ये लगता है.. क्या बोलूँ अब क्या लगता है?!

आस भरा 'थप-थप' चलता था
’ताता-थइया’ उठ गिरता था
आज पिघलती सड़कों पर निरुपाय खड़ा है, लगता है.. क्या बोलूँ अब क्या लगता है?!

ओढ़ गंध बन-ठन जाने का
शोर बहुत है खिल जाने का
लद गई उन्मन डाली भी यों कि अँदेसा लगता है.. क्या बोलूँ अब क्या लगता है?

Added by Saurabh Pandey on August 18, 2010 at 6:00pm — 5 Comments

दो छोटी कविताएँ

मैं
नदी का बहाव नहीं
ना वक्त
मेरी फितरत है
लौटता हूँ
नमी बन
रिसता हूँ
तुम्ही में

***

इधर कविता
पीर की परिधि पर
साकार हो
शब्दों में
भरती रही भाव;
उधर
एक जिंदगी
मेरी कविता को
आकार देती सी
एक
नवजात कविता
आँचल में संजोये,
एक और
नई कविता का
तलाशती धरातल
माथे पे ले तगारी
उतरती
उस गोल घुमावदार
सीढ़ियों से
किसी मौल के
***

Added by Narendra Vyas on August 18, 2010 at 4:27pm — 6 Comments

सामयिक गीत: आज़ादी की साल-गिरह / संजीव 'सलिल'

सामयिक गीत:



आज़ादी की साल-गिरह



संजीव 'सलिल'

*

*

आयी, आकर चली गयी

आज़ादी की साल-गिरह....

*

चमक-दमक, उल्लास-खुशी,

कुछ चेहरों पर तनिक दिखी.

सत्ता-पद-धनवालों की-

किस्मत किसने कहो लिखी?

आम आदमी पूछ रहा

क्या उसकी है कहीं जगह?

आयी, आकर चली गयी

आज़ादी की साल-गिरह....

*

'पट्टी बाँधे आँखों पर,

अंधा तौल रहा है न्याय.

संसद धृतराष्ट्री दरबार

कौरव मिल करते अन्याय.

दु:शासन… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 17, 2010 at 8:00pm — 5 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
अंदाज़ नया

चल रही हो संग हरदम विडंबना बन सहचरी तो क्यों न देखें ज़िन्दग़ी को एक नया आयाम दे कर ।

स्वप्न बन कर रह गई हो नव उषा की लालिमा जो क्यों न अपने रक्त ही से देख लें अंजाम दे कर ॥



देख कर हँसता रहा है द्वेष औ’ गुमान से

इस जमाने की कहें क्या बाँधता व्यवधान से

बढ़ते कदम का हर फिसलना हो अगर संज्ञान से

दृष्टि हँसती तोड़ती-सी कह उठेगी देख कर फिर - थे सधे कितने कदम वो बढ़ते रहे मुकाम दे कर ॥



खेत की हरियालियों में बारुदों के बीज क्यों

शांति खातिर हैं जगह जो बौखलाती… Continue

Added by Saurabh Pandey on August 15, 2010 at 9:03pm — 2 Comments

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना: गीत भारत माँ को नमन करें.... संजीव 'सलिल'

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:



गीत



भारत माँ को नमन करें....



संजीव 'सलिल'

*



आओ, हम सब एक साथ मिल

भारत माँ को नमन करें.

ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ

इस धरती को चमन करें.....

*

नेह नर्मदा अवगाहन कर

राष्ट्र-देव का आवाहन कर

बलिदानी फागुन पावन कर

अरमानी सावन भावन कर



राग-द्वेष को दूर हटायें

एक-नेक बन, अमन करें.

आओ, हम सब एक साथ मिल

भारत माँ को नमन करें......

*

अंतर में अब रहे न… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on August 14, 2010 at 11:39pm — 5 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service