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अपने दामन में छुपा लूँगा तुम आओ

अपने दामन में छुपा लूँगा तुम चले आओ
चराग दिल के जला लूँगा तुम चले आओ


तुम गया वक्त नहीं लौट के जो आ ना सके
फिर कलेजे से लगा लूँगा तुम चले आओ

में सनमसाज हूँ मर मर के तराशूंगा तुम्हें
काबायें दिल में लगा लूँगा तुम चले आओ


वफ़ा के नगमे लिखूंगा मै किताबे दिल पर
उम्र के साज पे गा लूँगा तुम चले आओ


सुकूने जिंदगी है ख़त का हर एक लफ्ज़ तपिश
पुर्जे-पुर्जे को उठा लूँगा तुम चले आओ
मेरे काव्य संग्रह ---कनक से ----

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Comment

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Comment by jagdishtapish on August 26, 2010 at 9:51am
lot of thanks all of you respected -- vedna ji --navin ji --rana ji--ganesh ji --guru ji
with regards--
Comment by vednaupadhyay on August 25, 2010 at 10:47pm
tapish ji badi sundar rachana ----
tum gaya vakt nahin laut ke jo a n sake .bahut sundar

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 24, 2010 at 1:38pm
बेहतरीन ग़ज़ल| एक एक शे'र कमाल का है|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 23, 2010 at 9:49pm
तुम गया वक्त नहीं लौट के जो आ ना सके
फिर कलेजे से लगा लूँगा तुम चले आओ,
वाह भाई साहब वाह , बहुत खूब, अच्छे शे'र निकाले है , बहुत ही सुंदर ग़ज़ल बनी है , शानदार, बधाई हो ,
Comment by Rash Bihari Ravi on August 23, 2010 at 7:31pm
sandar

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