अगर झूठ को बोलिए, ठोक पीट सौ बार
सच से बढ़कर मानता, उसको भी संसार।१।
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रहा झूठ से कौन है, वंचित कहो अबोध
भले न बोला हो गया, होकर कभी सबोध।२।
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होता मुख पर झूठ के, नहीं तनिक भी नूर
जीवन पाता अल्प ही, पर जीता भरपूर।३।
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जीवन में बोला नहीं, कभी एक भी झूठ
हरा पेड़ तो छोड़िए, मिला न कोई ठूँठ।४।
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होता सच में जो नहीं, वही झूठ का काम
भले न बोला पर लिखा, धर्मराज के नाम।५।
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भोला देता ताव है, करके ऊँची मूँछ
धूर्त…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 8, 2025 at 7:45am — 1 Comment
दोहा दसक -वाणी
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वाणी का विष लोक में, करे बहुत उत्पात
वाणी पर संयम रखो, सच कहते थे तात।१।
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वाणी में संयम नहीं, अब तो संत कुसंत
जग में कैसे हो भला, फिर विवाद का अंत।२।
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वाणी का रहता हरा, भरता तन का घाव
वाणी ही पुल मेल का, वाणी नदी दुराव।३।
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वाणी जो कटुता भरी, विष के तीर समान
वो तो करती नित्य ही, रिश्तों पर संधान।४।
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सुन्दर वाणी रख सदा, भले न सुन्दर देह
देह न मन में नित बसे, वाणी करती…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 10:25pm — 1 Comment
यूँ तो जीवन हर समय, मृगतृष्णा के पास
सच हो जाते स्वप्न पर, करके सत्य प्रयास।१।
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देख दिवस में सप्न जो, करता खूब प्रयत्न
वह उनको साकार कर, पा लेता है रत्न।२।
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जिसने जीवन में किया, सपने को कर्तव्य
टूटा करता वह नहीं, बन जाता है भव्य।३।
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स्वप्न बने उद्देश्य जब, करना पड़ता कर्म
जीवन में सबसे प्रथम, समझ इसे ही धर्म।४।
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निज जीवन के स्वप्न जो, पर हित में दे त्याग
मान उसे सबसे अधिक, सपनों से अनुराग।५।
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सपने …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 6, 2025 at 8:35am — 1 Comment
दोहा पंचक. . . . . शृंगार
रैन स्वप्न की उर्वशी, मौन प्रणय की प्यास ।
नैन ढूँढते नैन में, तृषित हृदय मधुमास ।।
वातायन की ओट से, हुए नैन संवाद ।
अरुणिम नजरों में हुए, लक्षित फिर उन्माद ।
मृग शावक सी चाल है, अरुणोदय से गाल ।
सर्वोत्तम यह सृष्टि की, रचना बड़ी कमाल ।।
गौर वर्ण झीने वसन, मादकता भरपूर ।
जैसे हो यह सृष्टि का, अलबेला दस्तूर ।।
जब-जब दमके दामिनी, उठे मिलन की प्यास।
अन्तस में व्याकुल रहा, बांहों का मधुमास…
Added by Sushil Sarna on February 4, 2025 at 9:56pm — No Comments
दोहा चतुर्दशी (महाकुंभ)
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देवलोक भी जोहता,
चकवे की ज्यों बाट।
संत सनातन संग कब,
सजता संगम घाट।1।
तीर्थराज के घाट पर,
आ पहुँचे वो संत।…
ContinueAdded by सुरेश कुमार 'कल्याण' on February 4, 2025 at 11:00am — No Comments
१२२/१२२/१२२/१२२
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कभी तो स्वयं में उतर ढूँढ लेना
जहाँ ईश रहते वो घर ढूँढ लेना।१।
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हमेशा दवा ही नहीं काम आती
कहीं तो दुआ का असर ढूँढ लेना।२।
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कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में
कि बच्चो बड़ों की उमर ढूँढ लेना।३।
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तलाशे बहुत वट सदा काटने को
कभी छाँव को भी शज़र ढूँढ लेना।४।
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हमेशा लड़ा ले सिकंदर की चाहत
कभी बनके पोरस समर ढूँढ लेना।५।
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मिलेगा नहीं कुछ ये नीदें चुराकर
हमें फर्क किससे क़सर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2025 at 12:02pm — No Comments
कुंडलिया. . .
मन से मन का हो गया, मन ही मन अभिसार ।
मन में मन के प्रेम का, सृजित हुआ संसार ।
सृजित हुआ संसार , हाथ की चूड़ी खनकी ।
मुखर हुआ शृंगार , बात फिर निकली मन की ।
बंध हुए निर्बंध ,भाव सब निकले तन से ।
मन ने दी सौगात , प्रीति को सच्चे मन से ।
सुशील सरना / 2-2-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on February 2, 2025 at 5:05pm — No Comments
दोहा पंचक. . . . संबंध
अर्थ लोभ की रार में, मिटा खून का प्यार ।
रिश्ते सब आहत हुए, शेष रही तकरार ।।
वाणी कर्कश हो गई, मिटी नैन से लाज ।
संबंधों में स्वार्थ की, मुखर हुई आवाज ।।
प्यार मिटा पैदा हुई, रिश्तों में तकरार ।
फीके - फीके हो गए, जीवन के त्योहार ।।
दिखने को ऐसा लगे, जैसे सब हों साथ ।
वक्त पड़े तो छोड़ता, खून, खून का हाथ ।।
आपस में ऐसे मिलें, जैसे हों मजबूर ।
निभा रहे संबंध सब , जैसे हो दस्तूर ।।…
Added by Sushil Sarna on February 1, 2025 at 2:24pm — No Comments
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