सच कहता है शख्स वो ,भले बोलता कम है
बहुत सोचता है , भले वो लब खोलता कम है
कितनी भी हावी सियासत हो गयी हो आज भी
वो वादे निभाता तो नहीं , मगर तोड़ता कम है
कहीं जज़बात के रस्ते में कोई दुश्वारियां न हों
वो ख़त भी रखता है , तो लिफाफा मोड़ता कम है
मशीनी हो गयी है , रफ़्तार-ए -ज़िन्दगी , अब
आदमी हाँफता ज़िआदा , मगर दौड़ता कम है
फुटपाथों पे वो नंगे ज़िस्म सो रहा है , "अजय"
चीथड़े पहनता तो है वो , मगर ओढ़ता कम…
Added by ajay sharma on January 23, 2014 at 11:30pm — 5 Comments
हाथों से पता चल जायेगा होठों से खबर लग जायेगी
आँखों से नज़र आ जायेगा ,
सावन का मौसम आया है ऄ
कुछ बातें ऐसी वैसी होंगी , होंगीं जिनकी कुछ वज़ह नहीं
कुछ फूल खिलेंगे ऐसे जिनकी , होगी बागों में जगह नहीं
ख़ुश्बू , सबको बतलायेगी
सावन का मौसम आया है
झूलों पे बैठे हम और तुम , धरती से नभ तक हो आयेंगे
मिलन के बरसेंगे घन घोर , विरह के ताप हवन हो जायेंगे
दुनिया सारी जल जायेगी
सावन का मौसम आया…
Added by ajay sharma on January 16, 2014 at 11:30pm — 8 Comments
बस न पाया , क्या हुआ , कुछ वक़्त वो , ठहरा तो था
वो था मेरा , जितना भी था , जैसा भी था , मेरा तो था
साथ उसके हाथ का , मुझको न मिल पाया कभी
मेरे दिल में उम्र भर , उसका मगर , चेहरा तो था
आँसुओं की , आँख में मेरे , खड़ी इक भीड़ थी
बंद पलकों का लगा , लेकिन कड़ा , पहरा तो था
हाँ ! सियासत में , वो बन्दा , था बहुत कमतर "अजय"
ख़ासियत थी इस मगर , कैसा भी था , बहरा तो था
उम्र भर , इस फ़िक्र में , डूबा रहा मैं ,…
ContinueAdded by ajay sharma on January 10, 2014 at 10:30pm — 12 Comments
जब कभी भी भोर के मालिक अँधेरे हो गए
क़ाफ़िलें लुटते रहे , रहबर लुटेरे हो गए
कुछ हुयी इंसान में भी इस तरह तब्दीलियाँ
क़द बढ़े लेकिन , वो बौरे हो गए
हो गयी खुशबू ज़हर इस दौर में
बाग़ में , साँपों के डेरे हो गए
ग़र बँटी धरती कहाँ तेरा चमन रह जायेगा
भूल है तेरी अलग तेरे बसेरे हो गए
झूठ तो देखो इधर किस क़दर धनवान है
और उधर नीलाम सच के घर बसेरे हो गए
आदमी डरता था पहले , रात में ही "अजय" …
Added by ajay sharma on January 7, 2014 at 11:00pm — 7 Comments
जो ज़िंदगी का भी समर , जीत कर रुका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(१)
जो ज़िंदगी जिया कि
जैसे हो किराए का मकान
रहा तैयार हर समय
जो साँस का लिए सामान
सुखों की कोई चाह नहीं
दुखों में कोई आह नहीं
डगर डगर मिली थकन वो , मगर कभी थका नहीं
उसे डरा सकी न मौत , वो कभी मरा नहीं
(२)
जो चल दिया तो चल दिया
जिसे नहीं सबर है कुछ
नदी है क्या पहाड़ क्या ,
नहीं जिसे ख़बर है कुछ
जो नींद से बिका नहीं
थकन…
Added by ajay sharma on January 4, 2014 at 12:00am — 13 Comments
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