For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जय हिंद! दोस्तों !

अंक -११ की अपार सफलता के बाद 'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक -१२ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है!  

मानवता के लिए मर-मिटने वालों में सबसे पहला नाम ‘हिन्दुस्तान’ का है | देश- प्रेम के साथ-साथ यहाँ के नौजवानों में सभी के प्रति सहृदयता व आपसी-सहयोग की भावना अद्वितीय है जिसके लिए  ये अपनी जान तक दांव पर लगा देते हैं | यही नौजवान जब हमारी सेना में आते हैं तो हमारी सेना इनके इस जज्बे को किस हद तक निखार देती है ! इसका एक नमूना इस बार के चित्र के माध्यम से आपके समक्ष है !

जरा एक नजर तो डालिए इस बार के चित्र पर !  क्या यह स्वयं परिभाषित नहीं है !

 

 मन न्यौछावर देश पर, तन की क्या परवाह.

ऐसा जज्बा है कहीं ? मुँह से निकले वाह..


आइये तो उठा लें आज अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण !  

और हाँ! पुनः आपको स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि

यह प्रतियोगिता सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगी  

साथ-साथ इस प्रतियोगिता के तीनों विजेताओं हेतु नकद पुरस्कार व प्रमाण पत्र  की भी व्यवस्था की गयी है ....जिसका विवरण निम्नलिखित है :-


"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता हेतु कुल तीन पुरस्कार 
प्रथम पुरस्कार रूपये १००१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company 

 

द्वितीय पुरस्कार रुपये ५०१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali

A leading software development Company

 

तृतीय पुरस्कार रुपये २५१
प्रायोजक :-Rahul Computers, Patiala

A leading publishing House

नोट :-

(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८  से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे | 

(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-११ के प्रथम व द्वितीय स्थान के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और नियमानुसार उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी |  प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा | 


सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें | 

विशेष :-यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|  

अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता  अंक-१२ , दिनांक १८  मार्च  से २० मार्च की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य   अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि  नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |

 

  • मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव

Views: 15577

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

ज्ञान बढाया आपने, नमन करें स्वीकार.
रचना को है बल मिला, सपना भी साकार.
****
रक्षा में होती सदा, हैं मात्राएँ चार.
इसीलिए लय भंग है, मेरा यही विचार.
***
बात अगर यह सही है,गुरुजन दें समझाय.
सौरभ सर का साथ यह, मन को बहुत रिझाय.
                                                           सादर

सही पंक्ति = शिशु रक्षा कर सौंपा पितु को ,
सर क्या यह  सही है ,

वह शैलेन्द्र शिंह जी वाह !

खूबसूरत आल्हा रचा है आपने बहुत-बहुत बधाई मित्र ! कृपया भाई सौरभ जी के सुझाव को संज्ञान में लें !

 "रण में बबर सिंह बन जाते," में 'बबर' की जगह 'बब्बर' कैसा रहेगा ?

अम्बरीश सर प्रतिक्रिया  और उत्साह वर्धन के लिए नमन स्वीकार करें ,
सर क्या बब्बर में तीन मत्राए ही होंगी अगर ऐसा है तो बब्बर ही सबसे सटीक शब्द है . कृपया उचित मार्गदर्शन दीजिये .
                                                                                                                              सादर

रण में बबर सिंह बन जाते,

११  २   १११  ११   ११   २२       =१५

रण में  बब्बर  सिंह बन जाते,

११  २    २११     ११   ११  २२    =१६

सादर प्रणाम सर आपका मार्ग दर्शन मिला, मुझे भी लगा वांछित सुधार की आवश्यकता है. कृपया हो सके तो सुधार कर दीजिये .
सादर 

(सुधार हो गया है : मंच संचालक )

//आज निभाई फिर परिपाटी ,

करता मैं तुम पर अभिमान.

शिशु रक्षा कर सौंपा पिता को,

सभी  पिता  देते  हैं    मान .//

.

अति सुन्दर शैलेन्द्र कुमार सिंह 'मृदु' जी. हार्दिक साधुवाद.

सर उत्साह वर्धन के लिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद
आदरणीय प्रभाकर सर ओ बी ओ मंच पर आप सुधी जन की प्रतिक्रिया मिलती है तो कलम में एक नया जोश आ जाता है
                                                                                                                                                                       सादर

एडमिन सर कृपया बबर की जगह बब्बर और पिता की जगह पितु शब्द परिवर्तित करने की कृपा करें .
                                                                                                 सादर

(सुधार हो गया है : मंच संचालक )

बहुत सुन्दर आल्हा रचा है आपने मृदु जी... वाह! 
हार्दिक बधाई स्वीकारें.

कुछ दोहे.. 

प्रस्तुत चित्र को देखने के पश्चात मन के भावों को कुछ दोहों के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयास कर रहा हूँ.. सुधि जन गुण दोष विचार कर दीक्षित करें.. 
१.विपदा जैसी भी रहे, कर्मवीर तैयार |
    मानव की सेवा करै, दुश्मन का संहार ||
२. थर थर काँपे धारिणी, नदिया छोड़े तीर |
    राहत और बचाव में, सदा अग्रणी वीर ||
३. अरिमर्दन को हैं डटे, भारत माँ के पूत |
    मन साहस की खान है, तन में शक्ति अकूत ||
४. दीवाली होली गई, सीमा पर ही बीत |
    क्रिसमस राखी ईद की, वहीँ निभाई रीत ||
५. हिम आच्छादित श्रृंग या, मरु की तपती रेत |
    प्रहरी ये प्राचीर के, रहते सदा सचेत ||  

"विपदा आए जैसी भी" में एक मात्रा अधिक है ! इसे "विपदा जैसी भी रहे " कर दिया जाए तो कैसा हो ?

साथ ही-

भूल गये रंग होली के, दीवाली बिसराए |

    क्रिसमस, राखी, ईद भी, घर से दूर मनाए ||     
हिम आच्छादित श्रृंग या, मरु की तपती रेत |
    प्रहरी ये प्राचीर के, रहते सदा सचेत ||..................इसे भी देखें ! क्षमासाहित !
(मैं स्वयं इस तरह की गणना पहली बार कर रहा हूँ हो सकता है गलती हुई हो तो क्षमा चाहूँगा )
 

आदरणीय अरुण भाई, क्या "ए" को दो मात्र माना जाता है.. मार्गदर्शन करें .. यदि हाँ तो इसमें दोष है उसका निवारण करने का प्रयत्न करता हूँ 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"जी शुक्रिया आ और गुणीजनों की टिप्पणी भी देखते हैं"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ। छठा और…"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय आज़ी तमाम साहिब आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, ग़ज़ल अभी…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 अनजान कब समन्दर जो तेरे कहर से हम रहते हैं बचके आज भी मौजों के घर से हम कब डूब…"
3 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 तूफ़ान देखते हैं गुजरता इधर से हम निकले नहीं तभी तो कहीं अपने घर से हम 1 कब अपने…"
3 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"निकले न थे कभी जो किनारों के डर से हमकिश्ती बचा रहे हैं अभी इक भँवर से हम । 1 इस इश्क़ में जले थे…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, मुशायरे का आग़ाज़ करने के लिए और दिये गये मिसरे पर ग़ज़ल के उम्दा…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"चार बोनस शेर * अब तक न काम एक भी जग में हुआ भला दिखते भले हैं खूब  यूँ  लोगो फिगर से हम।।…"
6 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"221 2121 1221 212 अब और दर्द शे'र में लाएँ किधर से हम काग़ज़ तो लाल कर चुके ख़ून-ए-जिगर से…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"सपने दिखा के आये थे सबको ही घर से हम लेकिन न लौट पाये हैं अब तक नगर से हम।१। कोशिश जहाँ ने …"
9 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-168
"वाक़िफ़ हैं नाज़नीनों की नीची-नज़र से हम दामन जला के बैठे हैं रक़्स-ए-शरर से हम सीना-सिपर हैं…"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service