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समीक्षक : अशोक कुमार रक्ताले.

 

      आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी कविताई तो लम्बे समय से कर रहे हैं किन्तु उन्होंने छंद रचनाएं करना पिछले कुछ वर्षों से ही प्रारंभ किया है और कुछ ही वर्षों में उन्होंने अपनी रचनाओं को इतना परिष्कृत कर लिया है की आज उनकी कुण्डलिया छंद की पुस्तक “लक्ष्मण की कुण्डलियाँ” हमारे हाथ में है.

      कुण्डलिया छंद के नाम से सहज ही कवि गिरधर का नाम याद हो आता है. किन्तु जब उनके अतिरिक्त नाम की बारी आती है तब सभी खामोश नजर आते हैं, क्योंकि लम्बे समय तक इस छंद का कोई रचनाकार नहीं हुआ. आजकल कुण्डलिया छंद पर बहुत काम हो रहा है और कई रचनाकार उत्तम कुण्डलिया छंद रच रहे हैं. उनमें प्रमुख हैं कविवर त्रिलोक सिंह ठकुरेला, गाफिल स्वामी, डॉ. राम सनेहीलाल शर्मा ‘यायावर’, राजेश प्रभाकर, श्रीमती वैशाली चतुर्वेदी, तोताराम ‘सरस’ आदि. कई रचनाकारों की पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं.

      कुण्डलिया छंद छह चरणी छंद है जिनकी प्रथम दो पंक्तियाँ दोहा छंद और बाद की चार पंक्तियाँ रोला छंद होता है. दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण बनता है. छंद जिस शब्द या शब्द समूह से प्रारम्भ किया जाता है, वही छंद का अंतिम शब्द बनता है.

 

      माँ शारदे से कृपा की आशा लिए “लक्ष्मण की कुण्डलिया” माता को समर्पित करते हुए कविवर लक्ष्मण जी ने कहा है -

माता के ही स्नेह से, निखरा है संसार /

ओम विश्व में गूंजता, ह्रदय प्यार संचार //

ह्रदय प्यार संचार, सदा खुश्बू ही देता,

प्रेम समर्पित भाव, बना सौभाग्य प्रणेता,

कह लक्ष्मण कविराय, अमर है माँ से नाता,

नत-मस्तक हूँ आज , कृपा ही रखना माता //

 

पुस्तक की विशेषता है की एक पृष्ठ पर तीन छंद रखे गये है और गिनती के क्रम में कुल २३४ छंद हैं. लक्ष्मण जी को रिश्तों का कितना ध्यान है यह पुस्तक के प्रथम पृष्ठ पर पिता के सम्मान में लिखे छंद से सहज प्रतीत होता है.

पापा से हमो मिला, जोभी थोड़ा ज्ञान /

हमको तो है आज भी, उसपर ही अभिमान //

उसपर ही अभिमान ,धैर्य का पाठ पढ़ाया,

संतो से लो सीख, यही हमको समझाया,

कह लक्ष्मण कविराय, समय को किसने नापा,

आती सबकी साँझ, मार्ग दिखलाते पापा //

 

लक्ष्मण जी ने जिस वय में यह छंद लिखकर पुस्तक प्रकाशित करवायी है वह युवा रचनाकारों के लिए प्रेरणा का विषय है, क्योंकि पुस्तक प्रकाशित होने के वक्त वे जीवन के बहत्तर वें वर्ष में पहुँच चुके हैं और अभी भी उनका लेखन निर्बाध चल रहा है, इसके पीछे की उनकी भावना उनके इस छंद में दिखती है -/ अविनासी सुख कामना, अपने हित को छोड़ / भौतिक सुख को छोड़कर, अपने मन को मोड़ // अपने मन को मोड़, कर्म करने को आया, कर अपना उद्धार, मनुज जीवन है पाया, लक्ष्मण ले प्रभु नाम, स्वर्ग का तब बन वासी, नाशवान सुख छोड़, मिले तब सुख अविनासी //

 

      इस पुस्तक में रिश्ते नाते ही नहीं वर्तमान दौर में नारी की समानता की कोशिश और आती बाधाओं और भी कई सामयिक विषयों पर छंद रचे हैं. परिस्थितियाँ बदल भी जाएँ,किन्तु  

लक्ष्मण जी के छंद पुस्तक पढने वाले को आज की परिस्थिति को बताने में समर्थ होंगे- / दोषी सब हीं छूटते, बेगुनाह को जेल / जटिल प्रणाली यूँ चले, जैसे लम्बी रेल // जैसे लम्बी रेल, कई स्टेशन पर ठहरे, लंबित होता न्याय,बहुत कानूनी पहरे, कह लक्ष्मण कविराय, दीन को लूटें तब ही, दांव-पेंच का खेल छूटते दोषी सब हीं//

 

      बोधि प्रकाशन,एफ-७७,सेक्टर ९, रोड नं. ११, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाईस गोदाम, जयपुर-३०२००६. राजस्थान से प्रकाशित यह पुस्तक जिसकी पृष्ठ संख्या ८८ है तथा मूल्य रुपये १००/- मात्र है.

      मैं आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला जी को इस पुस्तक के प्रकाशित होने पर इस विश्वास के साथ बधाई देता हूँ कि यह पुस्तक कुण्डलिया छंदों को जन-जन तक पहुंचाने में पूर्णतः सफल होगी.

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Replies to This Discussion

 सम्मानित श्री अशोक रक्ताले जी, मेरी पुस्तक '"लक्ष्मण की कुंडलियाँ" पर आपकी अतीव सुन्दर और सार्थक समीक्षा के लिए आपका हार्दिक आभार | मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि गत 4-5 वर्षों में जो छंद विधा पर इस ओ बी ओ मंच पर वरिष्ठ साहित्य पुरोधाओ विशेषकर प्र. संपादक योगराज प्रभाकर जी द्वारा प्रारम्भिक उत्साह उत्साहवर्धन, और सर्व श्री अम्बरीश श्रीवास्तव जी, सौरभ पाण्डेय जी, बहन डॉ. प्राची सिंह जी, राजेश कुमारी जी, के साथ ही आप जैसे मित्र श्री अशोक रक्ताले, अरुण कुमार निगम आदि के सकारात्मक सहयोग से प्रयास सफल हुए और मेरे द्वारा अक्तूबर, 2016 में प्रकाश्सित प्रथम छंद काव्य संग्रह "करते शब्द प्रहार" के बाद 5 जनवरी, 2017 को विक्रम सम्वत अनुसार विवाह की 50वीं जयंती पर ये कुंडलिया छंद का संग्रह प्रकाशित हुआ | 

दोनों संग्रह का विवरण प्रस्तुत करते हुए ओबीओ से सदस्यों के लिए सहर्ष 30% छूट पर पुस्तक उपलब्ध कराने का नरमी लिया है - 

1. "करते शब्द प्रहार" (दोहें एवं छंद आधारित गीत) - पृष्ठ संख्या 124  मूल्य - 120/- (छूट 33% के साथ उपलब्ध)

२. "लक्ष्मण की कुंडलिया" (236 कुंडलियाँ छंद संग्रह) - पृष्ठ संख्या 92  मूल्य -  100/- (छूट 30% क साथ उपलब्ध)

3 - दोनों पुस्तके एक साथ 150/- में उपलब्ध कराई जायगी | कोई पोस्टेज शुल्क नहीं |

आपका पुनः आभार श्री अशोक रक्ताले साहब |

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी का ओबीओ के पटल पर होना और एकनिष्ठ समर्पण के साथ छंद पर लगातार काम करते जाना, अपने सीखने के क्रम में वयस को बाधा न बनने देना हम सभी के लिए सीख है. आज आपकी पुस्तकों पर हुई बातचीत आपके सोत्साह कार्य का प्रतिफल है.

आपकी पुस्तक पर आदरणीय अशोक भाई जी की संक्षिप्त किन्तु अत्यंत सटीक पाठकीय समीक्षा आयी है. आदरणीय अशोक भाईजी स्वयं कुण्डलिया छंद के गहरे जानकार हैं अतः इस छंद की महीनी और सौंदर्य दोनों समझते हैं. 

छंदकार द्वय को हार्दिक बधाइयाँ और अशेष शुभकामनाएँ 

सादर

 आदरणीय सौरभ जी, मैंने अपनी छंद काव्य संग्रह "करते शब्द प्रहार" और "लक्ष्मण की कुंडलियाँ" अपने आमुख में भी यही लिखा है -

"सेवा-निवृति के बाद गत 5 वर्ष पूर्व सोशल नेटवर्क पर Openbooksonline.com के प्र.सम्पादक श्री योगराज प्रभाकर ने, (मेरी दविपदियों से प्रभावित होकर) और प्रतिमाह आयोजित छंद समारोह में श्री अम्बरीश श्रीवास्तव, सौरभ पाण्डेय, संजीव वर्मा सलिल. डॉ. प्राची सिंह, राजेश कुमारी, सीमा अग्रवाल, अरुण कुमार निगम अशोक रक्ताले जी आदि के सहयोगात्मक रवैये से रूचि बढ़ने से दोहें एवं कुंडलियाँ छंद का अभ्यास हुआ |" 

श्री अशोक रक्ताले जी की संक्षिप्त में सटीक समीक्षा मेरी पुस्तक के सन्दर्भ में किसी सम्मान-पात्र से कम नहीं है | obo मंच और इसके आप सहित सभी सक्रीय सदस्यों का हार्दिक आभार |

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