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चाह भी जिद भी इस प्यार को रुसवा कराया है ,
लोग कहते हैं अब जीवन नाम उसका कराया हैं ,
कसम से वो जो बात कही वो सत्य नहीं है ,
मगर दो घूँट हर पल उसके नाम का कराया हैं ,
दिल में बैठे थे वो कसम से मालिक बन कर ,
और छोड़ गए मुझको अब ये जीवन तन्हा कराया है ,
उन्हें पता हैं की मैं क्यों पिए जा रहा हूँ ,
वो आयेंगे ये सोच बस मेरे दिल का कराया हैं ,
वो मिले ना मिले मगर ये दिल चाहता है उन्हें ,
अब संभल जा वो तुम्हे ना कही का कराया हैं ,
बंट गई दो दिलें हम अलग -अलग रास्ते पे चले ,
जरा सी भूल ने इस दिल में बटवारा कराया हैं ,
:)
नहीं अब मेघदूतों या कबूतर का ज़माना है.
कलम-कासिद को मोबाइल ने नाकारा कराया है..
क्या बात है आचार्य जी.....सलाम है आपके लिखने की क्षमता को...बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने...
बेहतरीन कहन का नमूना है सभी शे'र , सभी शे'र खुबसूरत बन पड़े है , एक दो मिसरा पढ़ने में अटकाव जैसा लग रहा है, आचार्य जी से नम्र निवेदन है कि जरा मीटर को देखना चाहेंगे |
वो मिसरे है ....
हुआ मधुमेह जबसे डॉक्टर ने लगाई बंदिश
इन्हीं ने पसीना-माटी मिला गारा कराया है.
आचार्य जी, बेहतरीन मुक्तिका पर बधाई स्वीकार करे |
//कटे जंगल, खुदे पर्वत, सरोवर पूर डाले हैं.
'सलिल' बिन तप रही धरती को अंगारा कराया है..//
इस शेअर में बहुत दर्द है - बधाई स्वीकार करें आचार्य जी !
आदरणीय आचार्यश्री संजीव वर्मा सलिल जी
प्रणाम !
आपकी एक एक मुक्तिका तीन दिनों से देख रहा हूं , और आपकी ऊर्जा को नमन कर रहा हूं ।
कटे जंगल, खुदे पर्वत, सरोवर पूर डाले हैं
'सलिल' बिन तप रही धरती को अंगारा कराया है…
किया क्या जाए अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने वाली इस नासमझ प्रजाति का ?!:(
पूरी रचना के लिए साधुवाद !
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