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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-63 (विषय: मातृभूमि)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-63 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-63
विषय: मातृभूमि
अवधि : 29-06-2020 से 30-06-2020
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
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5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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मातृभुमि

"तुम कब क्या करोगी इस बात का कोई ठिकाना ही नही रह गया हैं। कल तुमने शराब ही नही पी थी बल्कि उस लड़के के साथ बेहयाई की सारी हद पार कर दी थी। "

रेवा की बात सुन तिलमिलाती हुई काव्या ने उल्टा सवाल दाग दिया,"क्या आप मेरी जासूसी कर रही थी, मैं क्या करती हूं ? क्या नही ? इससे आपको मतलब नही होना चाहिए।"

"क्यों मतलब नही होना चाहिये ? मैं तुम्हारी माँ हूँ।तुम्हे सही गलत बताना मेरी जिम्मेदारी है।"
बेटी को समझाते समझाते रेवा की आँखे छलछला आयी।
प्रखर, बेटी की चाह में दूसरी संतान चाहते थे। जबकी वह अपने करियर की बलि चढ़ाने को तैयार ना थी। अधिक जोर देने पर प्रखर के ना चाहते हुए भी उसने उसे सेरोगेसी के लिए मना लिया था। और यही बात जानने के बाद से काव्या उससे दूर होती चली गयी।वह अब भी बोले जा रही थी।

"आप जानती हो , एक बच्चे के लिए मातृभूमि देश से भी पहले उसकी माँ होती हैं। और जिसका हकदार हर बच्चा होता हैं। लेकिन मुझे तो वह हक्क भी किराये का मिला।"

मौलिक एवं अप्रकाशित

संवेदनशील रचना। बहुत-बहुत बधाई, आदरणीया अर्चना दी। 

 आ. बबिता गुप्ता जी, हार्दिक आभार आपका।

आ. अर्चना बहन, सादर अभिवादन ।प्रदत्त विषय पर सफल कथा कहने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

आ. लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, कथा पर अमूल्य समय देने के लिए हार्दिक आभार आपका।

शुभप्रभात। हार्दिक अभिनंदन इस बढ़िया भावपूर्ण रचना के साथ गोष्ठी का आग़ाज़ करने पर आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी। विषय सरोगेसी पर अधिक केंद्रित होते हुए अपरोक्ष रूप से विषयांतर्गत है मातृभूमि पर ही। सादर।

आ. शेख शहजाद उस्मानी जी, सकारात्मक उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका

    आदरनीय अर्चना जी , बहुत संवेदनशील लघुकथा के लिए बधाई हो 

आ.मोहन बेगोवाल जी , हार्दिक आभार आपका।

जनने से ज्यादा महान कार्य है पालन करना।दिल को छूती कथा भूमि सराहनीय है, आदरणीया अर्चना जी;बधाइयां प्रेषित हैं। हां,मातृभूमि  कह लें।

हार्दिक धन्यवाद आपका आ. मनन कुमार सिंह जी

धरा के रक्षक
सायंकाल घर में  रामू अपने बावा-दादी, मम्मी-पापा और बड़ी बहिन के साथ दूरदर्शन पर धारावाहिक तारक मेहता का चश्मा का आनंद उठा रहे था।
विश्राम काल में रामू के बावाजी ने समाचार चैनल लगाया,तो खबर सुन-देख सभी के चेहरे पर शोक छा गया।आतंकवादियों ने बसों में सवार हमारे देश की सरहदों के रक्षकों के काफिलो में से एक बस पर बारूद से भरी गाड़ी से टक्कर मार कर हमला कर दिया।पल भर में ही बस सहित रक्षकों के चिथङे-चिथङे उङ गये।
कायरनामा हरकत की कड़ी आलोचना की जा रही थी।तभी रामू के पापा गुस्से में कहने लगें, 'हमें  भी ईट का जवाब पत्थर से देना होगा।'
सभी अपनी अपनी तरह से आतंकवादियों को कोस रहें थे।तभी चार वर्षीय रामू पूरे जोश के साथ कहने लगा, 'हम बच्चे भी इसका बदला लेकर रहेगे।'
और छब्बीस जनवरी पर घर पर फहराये झंडे को अपने कमरे से उठाया और सीना तानकर,साहस भरे कदमों से दृढ संकल्प के साथ हाथ में झंडा पकडे सडक पर निकल पङा ।उसके जोशभरे बढते कदम दुश्मनों को ललकारते हुये आगाह कर रहो, कि -
कद छोटा हैं, पर इरादे हैं बड़े
बढे हुये कदम,पीछे नही हटेंगे 
दुश्मनों के नापाक इरादों को धूमिल करेंगे
मर मिटेंगे तिरंगे की आन-वान-शान में।

स्वरचित व अप्रकाशित हैं। 

बबीता गुप्ता 

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