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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 88 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :


"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-89

विषय - "खेत और खलिहान "

आयोजन की अवधि- 9 मार्च 2018, दिन शुक्रवार से 10 मार्च 2018, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)


बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --



तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू

सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 9 मार्च 2018, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ


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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय आरिफ साहब आपकी रचना बहुत अच्छी है यथार्थ भावों को प्रदर्षित करती आपकी रचना अनमोल है बहुत बहुत बधाई 

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय छोटे लाल जी ।

प्रदत्त विषय पर धारदार और विचारोत्तोजक कटाक्षिकाएँ। हार्दिक बधाई आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी

रचना के अनुमोदन और उनके उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीया प्रतिभा पांडे जी ।

उत्तम क्षणिकाएं , आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी। खेत और खलिहान का पोषक किसान अब अस्तित्वहीन होता जा रहा है , किसान की चिंता को प्रकाशित करती सुन्दर रचना।

रचना के अनुमोदन, निरपेक्ष टिप्पणी और उत्साहवर्धन का बहुत-बहुत आभार आदरणीय टी.आर.सुकुल जी ।

प्रभावशाली कटाक्षिकाएँ आदरणीय,बधाई आपको।

बहुत-बहुत आभार आदरणीय मनन कुमार जी ।

गजल

*****

फस्ल थी कल लहलहाती खेत औ' खलिहान में
चल रही  है  आज भट्टी  खेत  औ' खलिहान में।१।


आज मजदूरी  है  करता  हाट  में  वो  शहर की
कट रही थी खूब जिसकी खेत औ' खलिहान में।२।


योजनाएँ अब विकासों की  विनाशों का सबब
क्यों इमारत रोज उठती खेत औ' खलिहान में।३।


भाव  ऊँचे  कर के  देता  रोज  ही  गोदाम तो
बोलियाँ लगती हैं सस्ती खेत औ' खलिहान में।४।


लूट लेता हर महाजन ब्याज कहकर फस्ल तो
बोरियाँ बाकी हैं खाली खेत औ' खलिहान में।५।


बाढ़  सूखा  छीन  लेता  है  किसानो  की  खुशी
बस नियामत हो खुदा की खेत औ' खलिहान में।६।


मौलिक अप्रकाशित

बहुत भावभीनी ग़ज़ल।

प्रासांगिक और विचारों को उद्वेलित करती रचना।

आ. भाई अजय जी, गजल को मान देने के लिए आभार ।

जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । शेर3 में शतुरगुरबा का दोष आ रहा है ,उठती -उठतीं ।  शेर6 सानी में नियामत की जगह इनायत सही रहेगा ।शेर3 सानी यूँ करसकते हैं "हैं इमारत ऊंची ऊंची खेत औ खलिहान में ।

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