For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-25 (रजत जयंती)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर गई हैI पिछले 24 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ रचनाओं पर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के रजत जयंती को यादगारी बनाने के लिए इस बार आयोजन से विषय का बंधन हटा दिया गया है ताकि हमारे लघुकथाकार खुलकर अपनी प्रस्तुतियाँ दे सकेंI
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-25 (रजत जयंती)
अवधि : 29-04-2017 से 30-04-2017
विषय मुक्त (अपने मनपसंद विषय पर लिखें)
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी दो हिंदी लघुकथाएँ एक साथ पोस्ट कर सकते हैं
1(अ). दोनों रचनाएँ एक साथ पोस्ट करें
1(ब). आयोजन में शामिल सभी रचनाकारों को एक आकर्षक प्रमाण-पत्र भेंट किया जाएगा।  
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 17633

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

हार्दिक आभार आ० राजेश कुमारी जी. आपने वो बात पकड़ी है जिसे सभी नज़रंदाज़ कर गएI वह महाशय सबको अपनी पत्नी जैसा ही समझ रहे थेI    

सर कोई अपनी पत्नी को इस तरह से सोच सकता है ? हाँ दूसरी महिलाओं के लिये तो हो सकता है इस तरह की सोच । सादर

विजेता

 

बाल-दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस कम्पीटीशन में हमारा आज का सबसे पहला इंवेट है नर्सरी के बच्चों की लैमन-स्पून रेस। ग्राउंड में टंगे बैनर, जिस पर खेलते-कूदते बच्चों के चित्रों के साथ सुनहरे अक्षरों में ‘किंडरगार्टन क्लासेज़ स्पोटर्स कम्पीटिशन’ लिखा हुआ था, को रीझ से निहारते सहसा कानों से टकराई इस उद्घोषणा ने उसकी तंद्रा तोड़ दी।

जैसे ही रेस शुरू हुई चम्मच पर रखे नींबू को बच्चे मुँह में दबाए बड़ी सावधानी से लेकर आगे बढ़ने लगे और अभिभावक अपने-अपने बच्चों का हौंसला बढ़ाने लगे। पर एक बच्चा उल्ट ही दिशा में चलने लगा तो उसकी मम्मी ज़ोर से चिल्लाई ‘ बेटे अंजली ! इस तरफ नहीं, उस तरफ जाओ।’

‘हाँ- हाँ अंजली ! इधर नहीं, उधर जाओ । ’ जिधर दूसरे बच्चे बढ़ रहे थे उस ओर अंगुली से इशारा करता वो भी चिल्लाया।

अंजली के पापा ने अजीब सी निगाहों से उसकी ओर घूरा।

‘शाबास वंश ! शाबास ! बस पहुंचने ही वाले हो, ध्यान से और आराम से चलो।’ फिनिशिंग प्वांइट की ओर तेज़ी से बढ़ते अपने बेटे को देख वंश के मां-बाप उत्साह से लबरेज़ थे।

‘वैल्डन वंश !’ जैसे ही वंश ने फिनशिंग प्वाइंट को छुआ तो वो ज़ोर से तालियां बजाते हुए खुशी से चिल्लाया

‘ये कौन है?’ आंखों के इशारो से वंश के पापा ने पत्नी से पूछा

"पता नहीं!’ मुंह बिदका कर इशारों में ही वंश की मम्मी ने जवाब दिया

इतने में ही के.जी. कक्षा की सैक रेस की उद्घोषणा हो गई और वह उस ओर बढ़ गया।

पैरों में बोरी डाल कर भागते-गिरते बच्चों को देख बाकी अभिभावकों जैसे वो भी बच्चों को उनके नाम से पुकारता हुआ उनका हौंसला बढ़ाने में लग गया।

‘कोई बात नहीं मनन ! उठो और दुबारा कोशिश करो ! शाबास !’

‘पीछे मुड़कर मत देखो गीतू बेटे ! तेज़ और तेज़।’

अपने बच्चों का नाम लेकर पुकारने पर कई माँ-बाप सवालिया नज़रों से उसे देख रहे थे। किन्तु वह सबसे बेखबर भागते-कूदते बच्चों के साथ बच्चा बन उनको लगातार उत्साहित किए जा रहा था ।

‘वो कौन हैं?’ एक अभिभावक ने उसकी ओर इशारा करते हुए पास बैठे टीचर से पूछा ।

‘वो! वो तो अवी के पापा हैं !’

‘अवी कौन?’

‘अवी यू.के.जी. का स्टुडेंट है, बहुत होनहार है बेचारा ! वोऽऽ बैठा है...।’

कई गर्दनें टीचर की अंगुली वाली दिशा में घूम गईं।

ग्राउंड के दूसरी ओर अपनी व्हील-चेयर पर बैठा अवी भी तालियां बजाकर अपने साथीओं का हौंसला बढ़ा रहा था।

(मौलिक व अप्रकाशित)

-------------------------------

महंगी धूप  

‘कम से कम अपने झुमके ही रख लेती’ सुनार की दुकान से बाहर निकल कर राकेश स्‍कूटर को किक मारते हुए शारदा से बोला

‘कोई बात नहीं जी ! ऐसे वक्‍त के लिए ही तो गहने बनवाए जाते हैं। वैसे भी कौन सी उम्र रही है गहने पहनने की, भगवान की दया से अब तो बच्‍चे बराबर के हो गए हैं । अपना  घर बन जाए अब तो !’ पर्स को कस कर पकड़ स्‍कूटर पर बैठती हुई शारदा ने कहा

अब तो हो ही जाएगा । पी.एफ., बेटियों की आरडी और अब ये गहने भी ...! नीतू और मीतू की शादी कैसे करेंगे?’ ठंडी सांस भरता राकेश धीरे से बोला

‘आप चिंता मत करो जी ! अभी उम्र ही क्‍या है बेटियों की ! नीतू अगस्‍त में पंद्रहवें में लगेगी और मीतू दिसंबर में सतारवें में । उनकी शादी तक तो भगवान की कृपा से रोहन इंजीनियरिंग पूरी कर अच्‍छी नौकरी लग चुका होगा और आपकी रिटायरमेंट को तो अभी 11 साल बाकी हैं।’ शारदा अपना हाथ राकेश के कंधे पर रखते हुए आशा भरी आवाज़ में बोली

‘हां...। खैर ! अब तो घर में दम सा घुटने लगा है। तीन ही तो कमरे है और साथ में भाई साहिब की फैमिली। मैं तो किसी दफ्तर वाले को घर तक नहीं बुला सकता।’

‘सही कह रहे हो। दम तो वाकई घुटने लगा है । एक तो घर गली के आखिरी कोने में है जहां न धूप न हवा । कभी छत्‍त पर चले ही जाओ तो जेठानी जी के माथे की त्‍यौरियां और उनके कमेंट्स...उफ्फ... बर्दाश्‍त के बाहर हो जाते हैं। मैं तो तरस गईं हूं खुली धूप में बैठने को।’ राकेश ने मानो उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो।

‘आइए राकेश बाबू ! आपका ही इंतज़ार था ।’ निर्माणाधीन हाऊसिंग कालोनी के गेट पर मज़दूरों को काम समझाता हुआ मैनेजर राकेश को आता देख गर्मजोशी से उनकी ओर लपका। ‘स्‍कूटर उधर खड़ा कर दीजिए। बस कुछ ही दिनों की बात है पार्किंग भी तैयार हो जाएगी।’

‘ओए ! ये सामान हटाओ यहां से’  मज़दूर को इशारा करते हुए मैनेजर बोला ।

‘आइए ऑफिस में बैठ कर फारमेलिटीज़ कंप्‍लीट कर लेते हैं... पेमैंट लाए हैं ना...?’

‘हां हां पेमेंट तो लाया हूं। एक नज़़र फ्लैट तो दिखा दें इसीलिए तो आज श्रीमति जी को साथ लाया हूं।’

‘क्‍यों नहीं... क्यों नहीं ! आइए उधर से चलते हैं । भाभी जी ! ज़रा ध्‍यान से चढ़िएगा ! बस कुछ ही दिनों में रेलिंग भी लग जाएगी।’ सीढ़ीया चढ़ते हुए मैनेजर बेफ्रिकी से बोला

‘फ्लैट्स तो सारे बुक हो चुके हैं जी पर आपके जी.एम. साहिब के कहने पर यह फ्लैट आपके लिए रिज़र्व रख दिया था। आप इत्‍मिनान से देख कर तसल्‍ली कर लें, मैं ठंडा मंगवाता हूँ । ’ दो सीढ़ीया चढ़ कर आए राकेश और शारदा को हांफता देख मैनेजर बोला

‘राकेश! इधर देखें। ये किचन थोड़ा छोटा लग रहा है। ये बेडरूम... इसमें डबल बैड लगने के बाद जगह ही कहां बचेगी और ये आस पास की बिल्‍्डिंगज़ तो लॉबी की सारी धूप और हवा रोक रही हैं।’ मैनेजर के जाते ही थकान भूल कर फ्लैट का मुआयना करती हुई शारदा अधीरता से बोली

‘लीजिए ठंडा पीजिए !’ खाली फ्लैट में मैनेजर की गूंजती आवाज़ से दोनों एकदम चौंक गए

‘भाई साहिब! टैरेस...।’ गिलास पकड़ते हुए शारदा ने पूछा

 ‘भाभी जी ! टैरेस तो कॉमन है सभी फ्लैट्स के लिए।’

‘सभी के लिए कॉमन ! ये तो वही बात हो गई ! राकेश धीरे से शारदा के कान में फुसफुसाया

‘पार्क के पीछे वाली कालोनी हमारी ही कंपनी बना रही है। वहां कारपेट एरिया तो इससे अधिक है ही साथ ही

एंटरी और टैरेस भी इंडीपैंडेंट है । आप वहां देख लीजिए।’ स्‍थिती भांपते हुए मैनेजर ने तीर छोड़ा

‘उसका प्राइस?’ शारदा ने संकुचाते हुए पूछा

‘अजी प्राइस तो बहुत कम है जी। कंपनी तो आपकी सेवा के लिए ही है। बस इस फ्लैट से सिर्फ आठ लाख ही अधिक देने होंगे।’ खीसें निपोरता मैनेजर बोला

‘मैनेजर सॉबऽऽ! गुप्‍ता जी आपको नीचे आफिस में बुला रहे हैं।’ नीचे से कुछ सामान उठाकर आ रहे एक मज़दूर ने मैनेजर को कहा

‘मैं नीचे आफिस में ही हूं, जो भी आपकी सलाह हो बता दीजिएगा।’ बाहर निकलते हुए मैनेजर बोला

‘आठ लाख ! इतना तो हो ही नहीं पाएगा। तो अब क्‍या करें।’ राकेश की आवाज़ मानो बहुत गहरे कुएं से आ रही थी

‘फ्लैट बेशक छोटा है पर अपने घर से छोटा तो नहीं है ना फिर छत्‍त पर जाने से किसी के साथ कोई चखचख भी नहीं। यहां तुम अपने किसी भी दफ्तर वाले को बड़े आराम से बुला सकते हो।’

‘पर तुम्‍हारी वो खुली धूप में बैठने की इच्‍छा...।’

‘अजी मेरा तो आधा दिन स्‍कूल में ही निकल जाता है । उसके बाद सेंटर पर टयूशन । नीतू , मीतू भी मेरे साथ चार बजे के बाद ही घर आती हैं और तुम शाम को छ बजे के बाद। तो समय ही कहां मिलता है धूप में बैठने का।’

दोनों धीरे-धीरे सीढ़ीयां उतर आफिस की तरफ बढ़ने लगे।

.

(मौलिक व अप्रकाशित)

लम्बे अंतराल के बाद मंच पर आपकी उपस्थिति बेहद सुखद लगी।
दोनो कथाएँ, अलग-अलग विषयों के माध्यम से मन को छूती हुई ।
कथाओं में पहली कथा 'विजेता' की बात करें तो कथ्य से लेकर शिल्प तक एक विशिष्ट प्रभाव छोड़ता है।
कथा में आपकी लेखन शैली कुछ इस प्रकार का चित्र बनाती है कि पाठक अपने आप को भी उसी खेल के मैदान में उपस्थित पाता है। कथा की सहजता मोहक है। कथा का अंत, मन को द्रवित और शीर्षक को सार्थक करता हुआ।

दूसरी कथा 'मंहगी धूप' मध्यमवर्गीय परिवार की विषमताओं को उजागर करते कथानक को लेकर बुनी हुई होने के साथ साथ शिल्प के दृष्टिकोण से एक उदाहरण भी है।
बहते हुए कथानक में कितनी सहजता से एक लंबे कालखण्ड को प्रस्तुत किया गया है जो न केवल सराहनीय है बल्कि अनुकरणीय भी है। कथा का शीर्षक भी बहुत कमाल का है।
दोनों रचनाओं के लिए आपको ह्रदय से बधाई एवं धन्यवाद सर।
आदरणीय रवि प्रभाकर जी, दोनों लघु - कथाएं बहुत ही अच्छी हैं, पहली बहुत ही मार्मिक और दूसरी व्यवहारिक। बधाई , सादर।
१- // जैसे ही वंश ने फिनशिंग प्वाइंट को छुआ तो वो ज़ोर से तालियां बजाते हुए खुशी से चिल्लाया//
२-// ‘ये कौन है?’ //
३-// ‘वो कौन हैं?’//
४-// ग्राउंड के दूसरी ओर अपनी व्हील-चेयर पर बैठा अवी भी तालियां बजाकर अपने साथीओं का हौंसला बढ़ा रहा था।//

उपरोक्त पंक्तियों के साथ सकारात्मक दिव्यांग मनोविज्ञान व नकारात्मक दर्शक-मनोविज्ञान को उभारती आपकी पहली बेहतरीन उम्दा लघुकथा रेस के विजेताओं के साथ ही 'बेचारे' माने जा रहे दिव्यांग 'अवि' को भी एक सकारात्मक सोच विचार चिंतन वाले 'विजेता' के रूप में घोषित करते हुए बेहतरीन शीर्षक को चरितार्थ कर रही है। सादर हार्दिक बधाई आदरणीय श्री रवि प्रभाकर जी इस बेहतरीन सृजन हेतु।

कुछ टंकण त्रुटियों की और ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा, जैसे कि --

१- // चम्मच पर रखे नींबू को बच्चे मुँह में दबाए बड़ी सावधानी से लेकर आगे बढ़ने लगे // -- यहां ऐसा आशय हो सकता है कि मुंह से नींबू दबाया गया है, न कि चम्मच !

// चम्मच में नींबू लिए हुए बच्चे मुँह में दबाए बड़ी सावधानी से लेकर आगे बढ़ने लगे // -क्या इस तरह लिखा जा सकता है इस वाक्य को ?

२-//अवी/अवि?//

सादर
"धूप" और "अपने स्वतंत्र टेरेस/छत/छज्जे/मकान" के बेहतरीन बिम्बों में पति-पत्नी के सपनों/अरमानों/हालात/समझौतों ... को बाख़ूबी बुनती बढ़िया विचारोत्तेजक व प्रभावोत्पादक सृजन हेतु बहुत बहुत हार्दिक बधाई आदरणीय श्री रवि प्रभाकर जी। आपकी दूसरी लघुकथा 'महंगी धूप' भी सजीव चित्रण करती हुई पाठकों को अंत तक बांधे रखती है।

इस बार की इन दोनों रचनाओं में पात्र संख्या तीन से अधिक हो जाने के कारण थोड़ा अजीब तो लगता है, कसावट की अपेक्षा होती है, लेकिन लेखक महोदय के मंतव्य/उद्देश्य के मद्देनज़र प्रवाहमय (पेनोरामा)-लघुकथाग्राफी बहुत ही सराहनीय व हमारे लिए लघुकथा-सबक़ है। सादर

शेख़ शहज़ाद उस्मानी
आपकी दोनों कथायें ज़बरदस्त है।विजेता जहाँ बालमनोविज्ञान पर आधारित है,वही अवी दिवयांग है,उसके मातापिता वहाँ मौजूद नही है पर आत्मविश्वासी है।कथा में अवधी का सुंदर चित्रण है ।दूसरी कथा मंहगी धूप में पत्नी के मन की पीड़ा का चित्रण है। मध्यमवर्गीय परिवार में अपना खुद का घर हो एक सपना होता है।ये परिवार परिस्थितियों समझौता करने तैयार है बधाईयां आद० रवि प्रभाकर जी ।
आदरणीय रवि प्रभाकर जी आदाब, दोनों लघुकथाएँ बेहतरीन, जिज्ञासा का भाव जगाती और पाठक को बाँधने का माद्दा रखती हुई । हाँ, दूसरी लघुकथा में कुछ ज़्यादा ही लंबान हो गया । सहभागिता के लिए ढेरों बधाईयाँ।

दोनों कथाएँ मार्केदार हैं भाई रवि प्रभाकर जी, शीर्षक भी उम्दा हैंI दोनों रचनाएँ प्रभावित करती हैंI विजेता लघुकथा पर एक बहुत ही मर्मस्पर्शी लघु टेली-फिल्म भी बनाई जा सकती हैI जहाँ पहली लघुकथा में मार्मिकता कूट कूट कर भरी हुई है वहीँ दूसरी लघुकथा जिये हुए अनुभव से निकली हैI मुझे याद है जब मैं सन 2007 में पुराने शहर वाला घर छोड़ कर नई कोठी में आया था तो एक रात फोन करते करते मैं पिछले लॉन में रखे तख्तपोश पर लेट गयाI अचानक आसमान की तरफ ध्यान गया तो देखा पूरा आकाश तारों से भरा हुआ थाI तब मुझे याद आया कि मैंने आसमान कितने बरसों के बाद देखा हैI यदि पाठक लघुकथा में खुद को जुड़ा हुआ नहीं देखता, तो माना जाना चाहिए कि लघुकथा में कोई कमी अवश्य रह गई हैI मैंने इस लघुकथा में खुद को महसूस किया, जिस कारण यह मुझे बेहद पसंद आईI 

//‘आप चिंता मत करो जी ! अभी उम्र ही क्‍या है बेटियों की ! नीतू अगस्‍त में पंद्रहवें में लगेगी और मीतू दिसंबर में सतारवें में । उनकी शादी तक तो भगवान की कृपा से रोहन इंजीनियरिंग पूरी कर अच्‍छी नौकरी लग चुका होगा//                 

यहाँ "नीतू, मीतू, रोहन" की जगह बेटियाँ और बेटा कर लें ताकि नामों में उलझने का चक्कर ही खत्म हो जाएI बहरहाल, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारेंI आपसे सभी रचनाओं पर विषद टिप्पणियों की भी पुरजोर गुज़ारिश हैI 

आ.रवि सर जी , आपकी पहली कथा बेहद मार्मिक और दिल छू लेने वाली है ।कथा का कथ्य नया और पिता पुत्र के आपसी सम्बंधों की एक बारीक़ परत को पाठकों के समक्ष सुबह की धूप की तरह बेहद कोमलता से उजागार करता है ।ये शानदार कथा पाठक मन को भिगोने के के साथ ही बरसों तक उद्वेलित करने में समर्थ है।दूसरी कथा आजकल के महानगरीय जीवन की झांकी को बख़ूबी दर्शाती है।आपकी दोनों ही कथाएँ लघुकथाएँ लिखने वालीं के लिए पथशलहैंहर्दिक बधाई
जनाब रवि प्रभाकर साहिब आदाब,पहली बार आपकी लघुकथा पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।
आपकी दोनों लघुकथाएं सुब्ह ही पढ़ लीं थीं, आपके क़लम की धार ने बेहद मुतास्सिर किया,दोनों ही रचनाएँ अपने आप में हम नये सीखने वालों के लिये एक स्कूल की हैसियत रखती हैं,मेरी तरफ़ से इन बहतरीन लघुकथाओं के लिये दिल की गहराइयों से मुबारकबाद क़बूल फरमाएं ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service