For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 159 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |

इस बार का मिसरा जनाब 'क़ैसर-उल-जाफ़री'साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'जब उँगलियाँ जलीं तो ग़ज़ल आ गई मुझे'

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन
221 2121 1221 212

मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मक़्फ़ूफ़ महज़ूफ़

रदीफ़ --गई मुझे

क़ाफ़िया:-अलिफ़ का (आ स्वर) भा,बहला, समझा,पा,महकाआदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी । मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 सितंबर दिन बुधवार को हो जाएगी और दिनांक 28 सितंबर दिन गुरुवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 सितंबर दिन बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

जनाब समर कबीर 

(वरिष्ठ सदस्य)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2525

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ, जनाब अमित जी ने अच्छी इस्लाह की है।  मतले लिए सुझाव - 

मंतर चला के अपना वो बहला गई मुझे 

कंठी तिलस्मी इश्क़ की पहना गई मुझे।।

221 2121 1221 212


मस्ती भरी कहानिया बहका गई मुझे
बदनामियाँ थकान दे बिखरा गई मुझे

परिवार ने कहा तो मुझे सोचना पड़ा
आबाद घर किया तो फिज़ा भा गई मुझे

सारी थकान खींच ली उसने गले लगा
उस यार की अदा तो नशा पिला गई मुझे

उसने तो फर्ज अपना निभाया भली तरह
उपकार मानता हूँ कि महका गई मुझे

काग़ज़ क़लम बिगाडे़ गजल लिखने के लिए
जब उँगलियाँ जलीं तो ग़ज़ल आ गई मुझे
- दयाराम मेठानी

आदरणीय Dayaram Methani जी आदाब।

ग़ज़ल अभी वक़्त और मश्क़ चाहती है।

मस्ती भरी कहानियांँ बहका गई मुझे

बदनामियाँ थकान दे बिखरा गई मुझे

कहानियाँ और बदनामियाँ के साथ रदीफ़ बहुवचन हो जाएगी।

"गई मुझे" की जगह "गईं मुझे" जो ग़ज़ल की ज़मीन ही बदल देगी।  

परिवार ने कहा तो मुझे सोचना पड़ा

आबाद घर किया तो फ़ज़ा भा गई मुझे

सारी थकान खींच ली उसने गले लगा

उस यार// की अदा तो// नशा पिला ग//ई मुझे 

सानी बह्र से ख़ारिज है कृपया देख लें 

उसने तो फ़र्ज़ अपना निभाया भली तरह

उपकार मानता हूँ कि महका गई मुझे

काग़ज़ क़लम बिगाडे़ ग़ज़ल लिखने के लिए

जब उँगलियाँ जलीं तो ग़ज़ल आ गई मुझे

//शुभकामनाएँ//

आदरणीय अमित जी, पोस्ट की समीक्षा कर सुझाव देने के लिए हार्दिक आभार। आपके सुझाव याद रखूंगा। प्रयास कर रहा हूँ और करता रहूंगा। सादर।

आदरणीय दयाराम मेठानी जी ग़ज़ल के इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई आपको। 

/उस यार की अदा... / यह मिसरा से बह्र से बाहर जा रहा है, देख लीजियेगा

आदरणीय दयाराम  जी तरही  मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है  मुशायरे में सहभागिता के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें

आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की इस्लाह पर ग़ौर कीजियेगा।

उस को खुशी  है  खूब  कि  वो पा गई मुझे
लेकिन सितम कि जाल सा उलझा गई मुझे।१।
*
बहती नदी था यार मैं कमसिन हसीन इक
शदियों  पुरानी  झील  सा  ठहरा गई मुझे।२।
*
अनुनय हजार करके वो दिल ले गयी मगर
मन भर  गया  तो  दर्प  से  लौटा  गई मुझे।३।
*
आजन्म यूँ तो लोक में रैफलेसिया सा मैं
किसकी छुअन सुबास से महका गई मुझे।४।
*
आगत के सुख की नीव थी उसमें छिपी तभी
सब से  बिछोही  रात  भी  रास  आ गई मुझे।५।
*
दिन भर की भूख पेट को सुलगा रही थी पर
माँ की  सुनायी  लोरी  से  नींद आ गई  मुझे।६।
*
जलना न आया दीप सा फिर भी ये जिन्दगी
क्योंकर  किरण  सा  राह  में  फैला गई मुझे।७।
*

गिरह-
छूने गया था दर्प से चिलमन में चाँद को
जब उँगलियाँ जलीं तो ग़ज़ल आ गई मुझे।।
***
मौलिक/अप्रकाशित

आ. भाई दण्डपाणि जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मुशायरे में इस ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ

इ. भाई शिज्जू शकूर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मुशायरे में पेश इस ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ शदियों , सुबास  की टंकण त्रुटियां हो गई है देख लीजियेगा सादर 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आ. भाई शेख शहजाद जी, अभिवादन।अच्छी लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आ. भाई मनन जी, अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आ. बबीता बहन सादर अभिवादन।अच्छी कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदाब। दोस्ती और दुश्मनी भी जीवन के साथी होते हैं बारी-बारी से।‌ सच्चे दोस्त ही साथी होते हैं।…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब तेजवीर सिंह साहिब प्रोत्साहन और मार्गदर्शन हेतु।"
18 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"मौके नीकू भाई और भीखू दा फिर से दोस्त हुए।उनकी राजनीति की धाराएं अब  सामनधर्मा हो गईं।बेचारे…"
19 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।आपकी चिर परिचित शैली में एक नये विषय में वर्तमान जीवन…"
20 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी। बहुत खूबसूरत लघुकथा ।"
20 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी। आपके सुझाव एवं सलाह उत्तम हैं और गौर करने योग्य हैं।मै…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"साथ थी! (लघुकथा): उनके दोनों बच्चे विदेश में अपने -अपने परिवारों के साथ वहां की जीवन शैली में…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"आदाब। विषयांतर्गत देशभक्ति और राष्ट्रसेवा की महानता और मार्मिकता का कथ्य समेटते हुए सच्चे प्रेम की…"
yesterday
babitagupta replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-113
"अमर प्रेम सहोदरी अपने ऑफिस के साथी कर्मचारी को शादी की बधाई देते हुये उसकी शादी का कार्ड खोलकर…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service