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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-143

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 143वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा जनाब हसरत मोहानी साहब की गजल से लिया गया है|

" शम्अ जब रौशन हुई घर में उजाला कर दिया "

    2122                  2122                2122                 212        

 

     फ़ाइलातुन          फ़ाइलातुन           फ़ाइलातुन            फ़ाइलुन

बह्र: रमल मुसमन महज़ूफ़

 

रदीफ़ :-  कर दिया

काफिया :- आ(उजाला, सहारा, तमाशा,  हमारा, अपना, आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 27 मई दिन शुक्रवार  को हो जाएगी और दिनांक 28 मई  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

उसने क्या कल को मुझे मिलने का वादा कर दिया
हाय मेरा आज का दिन कितना लंबा कर दिया

मैने बोला चाय में मीठा नहीं है चख के देख
उसने चख कर चाय तो क्या कप भी मीठा कर दिया

रात जब तन्हा था दिल और हर तरफ सुनसान थी
देख कर मौका तेरी यादों ने हमला कर दिया

उम्र की गुल्लक में सोने चांदी के सिक्के मिले
और मैंने हर क़मर हर शम्स ज़ाया कर दिया

रब को अर्ज़ी लिख के में मैने मांगी किस्मत में वफ़ा
और सनम संगदिल को उसका इक उतारा कर दिया

जिंदगी तो जिंदगी भर नोचती रहती मगर
मौत का अहसान है इक ही निवाला कर दिया

उसने अपनी आंखों से अम्मृत छिड़क कर दोस्तो
मेरे दिल में मर चुकी चाहत को ज़िंदा कर दिया

धीरे धीरे इक दुल्हन के चहरे से घूंघट उठा
'शम्अ जब रौशन हुई घर में उजाला कर दिया'

(मौलिक व अप्रकाशित)

गुरप्रीत सिंह जी, तरही मिसरे पर सुन्दर गजल के लिए बधाई।

शुक्रिया आदरणीय दयाराम मेथानी जी

आ. गुरप्रीतजी

बढ़िया गजल कही आपने, बधाई  स्वीकार करें।

शुक्रिया आदरणीय अमित स्वप्निल जी

आदरणीय गुरमीत जी ,नमस्कार

ख़ूब हुई है ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजिये

3 ,6बहतर हो सकता है

सादर

बहुत शुक्रिया आदरणीय रिचा यादव जी। जी ग़ज़ल में कमियां हैं। शुक्रिया आपने उनकी तरफ इशारा किया। बेहतरी की लिए कोई सुझाव हो तो जरूर बताइएगा जी

आदरणीय गुरप्रीत सिंह जी नमस्कार!बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

बहुत शुक्रिया आदरणीय dandpani nahak जी

आ. भाई गुरप्रीत जी, सादर अभिवादन। तरही मिसरे पर बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय गुरप्रीत सिंह जम्मू साहिब आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें। तीसरे शे'र का ऊला देख लें। 

 मुझसे मिलकर उसने, मुझे और तन्हा कर दिया,
दर्द से उसने मिलाया,ये भी अच्छा कर दिया ।


रोशनी में तुम महब्बत की रहोगे इसलिए,
हमने अपना दिल जलाकर,दिल तुम्हारा कर दिया।


पेड़ को पानी दिया, फिर मुस्कुराया अपने आप,
इस तरह उसने अंधेरे में उजाला कर दिया।


वायदा तो था, नज़र भी हम मिलाएंगे नहीं,
सामने आते ही शरमा कर तमाशा कर दिया।


देखते ही देखते दिन की थकावट उड़ गई,
शम्आ जब रोशन हुई घर में उजाला कर दिया।


कई दिनों से भूलने उसको लगा था मैं "सुजान",
आज उसने जाते जाते फिर इशारा कर दिया।

मौलिक व अप्रकाशित

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