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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-138 

विषय - "वक़्त वक़्त की बात"

आयोजन अवधि- 16 अप्रैल 2022, दिन शनिवार से 17 अप्रैल 2022, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 16 अप्रैल 2022, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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Replies to This Discussion

वक़्त पुराना और था

आज वक़्त कुछ और

ढूँढे आज विदेश में

रोज़ी रोटी , ठौर

छोड़ दिया माँ- बाप को

उनको,उनके हाल

चाहें ख़ुद औलाद से

रक्खे उनका ख़्याल

विकसित करते देश नित

नव संहारक अस्त्र

दो मुल्कों के युद्ध में

होता मानव त्रस्त

हुआ विनाश विवेक का

इक दूजे से घात

बदला इन्सां आज का 

वक़्त - वक़्त की बात

मौलिक एवं अप्रकाशित

नमन, आदरणीया, प्रदत्त  विषय  पर दोहा चौका के माध्यम  से  अच्छी  प्रस्तुति हुई  है । किन्तु तीसरे  दोहे के तुकांत  के सम्बन्ध  में , मैं अंतिम रूप से कुछ  नहीं कह सकता  । आदरणीय सौरभ साहब ही सही स्थिति  स्पष्ट  कर सकते  हैं । सादर 

आ0 चेतन प्रकाश जी, नमन। मैंने पटल पर कई बार देखा, इस विषय पर कोई रचना नहीं थी। ज्ञात हुआ, कोई तकनीकी समस्या थी। मैंने उसी 'वक़्त' लिख कर डाला और रचना पटल पर चली भी गई। रचना अच्छी लगने हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका।

भाव से समृद्ध , शिल्प से संयत और प्रदत्त विषय को पूरी तरह संतुष्ट करते दोहों का सृजन हुआ है। बधाई आदरणीया।

आ0 प्रतिभा पाण्डे जी, आपको  रचना भाव, शिल्प तथा प्रदत्त विषय को संतुष्ट करती लगी, जानकर अत्यन्त हर्ष हुआ। हार्दिक आभार आपका,सादर।

आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सार्थक दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई। तीसरे दोहे की तुकांतता सही नहीं है देखिएगा। 

आदरणीय उषा अवस्थी जी, सुंदर दोहा सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें। तीसरे दोहा के सम चरण में अस्त्र एवं त्रस्त का तुकांत नहीं बैठता है। अस्त और त्रस्त का तो तुकांत होता है किंतु अस्त्र का ये तुकांत नहीं होता। सादर।

वाह वाह क्या भाव हैं, वाह वाह जज्बात।

उभर उभर कर आ रही, वक्त वक्त की बात ।।

क्या कहने आदरणीया, बहुत ही सुंदर दोहे और शानदार अभिव्यक्ति, बहुत बहुत बधाई ।

दोहे
-------
समय समय की बात है, समय समय का फेर।
रहे गुलामों  सा  कभी,  वन  का  शासक शेर।१।
*
समय समय पर जो करे, नित्य समय बरबाद।
एक समय करता  वही, उसी  समय को याद।२।
*
एक समय जिसने किया, सहज समय का मान।
एक  समय  जग  दे  गया, समय  उसे  पहचान।३।
*
कभी समय  के  फेर में, हो  जाती है देर।
घर में होती न्याय के, कभी कभी अन्धेर।४।
*
कभी तमस में दिन रहे, कभी चाँदनी रात।
कंचन भी मिट्टी बने, समय समय की बात।५।
*
बदले कैसे है समय, समय-समय पर ढंग।
कभी लिए  रंगीनियाँ, कभी  हुआ बदरंग।६।
*
कभी समय कमजोर सा, कभी समय बलवान।
लेकिन   जैसा  भी  समय, नित  लेता  संज्ञान।७।
*
कभी शूल  भी  पुष्प सा, कभी पुष्प भी शूल।
कभी समय करता शिखर, कभी चटाता धूल।८।
*
पाषाणों में डालता, कभी समय यह प्राण
कभी समय से ना मिले, वाचालों को त्राण।९।
*
कभी मुकुट रख  शीश पर, कभी धूल में शीश।
कभी समय अभिशाप दे, कभी सहज आशीष।१०।
**
मौलिक /अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

नमस्कार,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर , सभी  दोहे  बहुत अर्थवान  और  सटीक  है। इस  पोस्ट को मै उल्लेखनीय मानता  हूँ, और  आपको  निश्चय ही बधाई का  पात्र  ! शुभकामनाओं सहित..

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, सुंदर दोहों के सृजन पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति, सभी दोहे एक से बढ़कर एक हुए हैं । बहुत बहुत बधाई आदरणीय लक्ष्मण भाई ।

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