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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 104 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-105

विषय - "रिमझिम गिरे सावन"

आयोजन की अवधि- 12 जुलाई 2019, दिन शुक्रवार से 13 जुलाई 2019, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 12 जुलाई 2019, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी बहुत सुन्दर गीत 

हार्दिक बधाई ।

आ. प्रतिभा जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर गीत हुआ है। बधाई स्वीकार करें ।

आदाब। मेघ सम्राट की गतिविधियों और प्रभावितों को बढ़िया चित्रित व शाब्दिक करता बेहतरीन गीत। हार्दिक बधाई आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। (बारिष/बारिश)

आदरणीया प्रतिभा दीदी, सादर नमन। प्रदत विषय पर अद्भुत सर्जना हुई है। सादर बधाई।

अपने मन का 

राजा बादल

करता रहता है मनमानी............वाह ! सुंदर मुखड़ा और प्रदत्त विषय पर सार्थक अंतरों से सजा उत्तम गीत रचा है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रतिभा पांडे जी. सादर 

दूसरी प्रस्तुति 

काश कि सावन रिम झिम होता, बगियों में झूला भी होता

झूला पर सखियाँ भी होती, दूर कहीं पर साजन होता.

खिल खिल बच्चे मुस्काते से, सर पे माँ का आँचल होता.

खेतों में कजरी की गूंजें, हर्षित हर घर आँगन होता.

वर्षा रानी रूठ गई है, आशाएं भी टूट गई हैं.

सभी ताकते नभ को ऐसे, आंखों में सपने हों जैसे.

राम कहाँ घन श्याम कहाँ हो, प्रकट करो खुद धरा जहाँ हो.

बारिश बन गर बरसे होते, सुरभित हर घर आँगन होता

काश कि रिम झिम सावन होता.

जंगल काट रहे सब मिलकर, कंक्रीट में रहते छुपकर

वर्षा जल को नहीं बचाते, भू जलस्तर रोज घटाते

अब भी देरी नहीं हुई है, वृक्षारोपण शुरू हुई है.

वर्षा जल को अगर बचाते, जल पूरित घर आँगन होता.

काश कि रिम झिम सावन होता.

(मौलिक व अप्रकाशित) 

आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी बहुत अच्छी प्रस्तुति ।

हार्दिक बधाई ।

जनाब जवाहर लाल सिंह जी आदाब,आपकी ये प्रस्तुति भी अच्छी हुई,लेकिन इसे किसी और विधा में कहते तो बहतर होता,बहरहाल बधाई स्वीकार करें ।

झूला पर सखियाँ भी होती, दूर कहीं पर साजन होता.'

इस पंक्ति में 'होती' को "होतीं" करना उचित होगा,दूसरी बात ये कि लोग साजन को पास रखना चाहते हैं और आप दूर? ये बात समझ नहीं आई?

'वृक्षारोपण शुरू हुई है'

ये वाक्य व्याकरण की दृष्टि से ग़लत है,

'वृक्षारोपण'पुल्लिंग है इसलिए 'हुआ है' लिखना उचित होता,विचार करें ।

विषयांतर्गत हम सबके अरमानों और प्रकृति के आह्वान शाब्दिक करती बहुत सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई जनाब जवाहर लाल सिंह जी।

आदरणीय जवाहर लालजी,दूसरी प्रस्तुति भी उत्तम और सन्देशप्रद बन पड़ी है। बधाई सादर

आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी सादर, प्रदत्त विषय पर सुंदर प्रस्तुति आपकी. हार्दिक बधाई स्वीकारें. बाकी तो आदरणीय समर साहब ने कह ही दिया है. सादर. 

उड़ते कबूतर (अतुकांत) [दूसरी प्रस्तुति] :

रिमझिम गिरते सावन में
अटकते-भटकते भीगे-भागे
बालकनी की खिड़की पर गुटरगूँ करते
दो कबूतर!
फुदकते
आते कभी पास, लिये आसरे की आस
कमरे के दरवाज़े बंद!

कांपते कबूतर!

रिमझिम गिरते सावन में
झूमते-मटकते-इतराते, भीगे-भागे
गुटरगूँ करते दरख़्त के नीचे डालियों के दरमियाँ
कोई जवाँ पुत्री, कोई पुत्तर
निर्लज्ज, अतृप्त, हाँफते
आलिंगनबद्ध!
करते प्यार या भड़ास
निकालते बाहर-भीतर!
तड़पते कबूतर!

पकड़े जाने के भय से
तेज़ हवाओं से डरते
ख़तरे भाँपते
दो कबूतर!

छज्जों-खिड़कियों से घूरते दर्शक
शीशों के पीछे
हँसते, धमकाते, नयन सेंकते, अघाते
मूर्तिबद्ध!

चोंचेंं भिगोते

आसमाँ निहारते
रिमझिम सावन के दरमियाँ
दुम दबाकर
उड़ते कबूतर!

(मौलिक व अप्रकाशित)

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