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आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-100 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार गोष्ठी को विषयमुक्त रखा गया है।तो आइए किसी भी मनपसंद विषय पर एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-100
अवधि : 30-07-2023 से 31-07-2023 
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अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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Replies to This Discussion

वाह...बहुत तन्मयता से आपने कोमल और मार्मिक भावों को बाँधकर एक उत्कृष्ट रचना रखी है पटल पर।रचना का विस्तार कहीं भी खल नहीं रहा है।हार्दिक बधाई आपको

धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। आपको पसन्द आया सार्थक हुआ मेरा प्रयास। 

पुनरुत्थान

14 सितम्बर 2014

"एक पुस्तक को प्रकाशित करवाने में न जाने कितने वृक्षों को काटना पड़ता है इसलिए प्रकाशित करवाने के पहले पुस्तक के उद्देश्य और सार्थकता पर गंभीरतापूर्वक सोचना जरूर चाहिए।" कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ अतिथि लोकार्पणकर्त्ता ने कहा। जो मुझे सुनकर उचित-सही नहीं लगी।
किसी लोकार्पण में यह कहा जाना अशोभनीय था। पुस्तक लोकार्पण को दुल्हन की मुँह दिखाई कहा जा सकता है••• घूँघट उठाकर कहा जाये कि इससे शादी के पहले सोच-विचार करना चाहिए था•••
कटाक्ष को सहजता से नहीं लेकर हताश होकर साहित्य से विमुख हो जाना रेशमा के लिए स्वाभाविक रहा।
"आसान तो नहीं होता होगा! बीज शोधन, बीज का बोरे में अंकुरण, घनघोर घने रूप में बिजड़ा होना तब फसल में परिवर्तित होकर, पुष्ट दानों की सुनहले बालियों के रूप में झूम जाना।" रेशमा को बार-बार याद दिलाते रहना पड़ेगा।

22 जनवरी 2016

रेशमा द्वारा आमंत्रित करने पर वसंतोत्सव में शामिल होना अच्छा लगा। उनका अपनी मंडली के संग उल्लास से सरस्वती पूजा करना और गुलाल लगाना रोमांचित कर रहा था।
"शहर से थोड़ा बाहर है लेकिन शोरगुल से भी दूर होना अच्छा लग रहा है। तुम्हारे लिए विशेष रूप से••" मेरे कहते रेशमा चहकने लगी।
"इसी भवन में सभी तरह की कलाओं के कार्यशाला भी चलते हैं और हम जैसे यहाँ ससम्मान टीक भी सकते हैं•••। यह सरकार से हमें आवंटित किया गया है।"
उनके लिए खुले आकाश के संग घोसले की चाहत पूरी हो जाना बड़ी बात थी।

09 नवम्बर 2019

पुस्तक मेला में घूमते-घूमते प्यास लग गयी थी। चाय-पानी की तलाश हमें एक स्टॉल पर ला खड़ा किया। "आप सभी का स्वागत है! इनसे पैसा नहीं लेना। ये हमारे विशेष अतिथि हैं।"
"घोड़ा घास से यारी करेगा•••।"
"अरे! यह यहाँ अनुकूल नहीं है। आपने ही कहा था जीविका के लिए कुछ ठोस करो। हमने भोजनालय खोल लिया•••!"
"हाँ लेकिन अपने प्राकृतिक गुण को भी नहीं छोड़ना••,"
"मिले एक दराती से काबिलियत का परिचय द्वारा माता ने अपने पुत्र के गुणों को भाप लिया और एक संदेश भी दिया कि किसी की महानता का पता उनके व्यवहार अर्थात जीवन शैली से ही चल जाता हैं। आप मेरे लिए वही माँ हैं।"
"बिना तपे कुन्दन•••!"

23 जुलाई 2023

चार दिनों से रेशमा का अपनी मंडली के संग अपने विशेष अंदाज में ताली बजा-बजाकर 'बेसरा माता'(जिनकी सवारी मुर्गा है) की पूजा की जगह कथकली कुचिपुड़ी ओडिसी सतत्रिया मोहिनीअट्टम नृत्य करती अचंभित कर रही थी। सभी को
शिव तांडव, माँ दुर्गा का भजन, माँ काली का रौद्र नृत्य की जीवंत प्रस्तुति भी पसन्द आए। जीने की चाह का पराकाष्ठा है राख़ से पुन: खिल जाना...!

विभा रानी श्रीवास्तव, पटना
रचना काल : 31 जुलाई 2023
मौलिक एवं अप्रकाशित और अप्रसारित

आदाब। हार्दिक स्वागत.और बधाई इस डायरी शैली की उम्दा रचना हेतु आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी। अभी रचना समझने में मुझे समय.लग सकता है।  मेरे जानकारी अनुसार इस गोष्ठी आयोजन में रचना के अंत लेखक का नाम आदि नहीं लिखना होता है।

100वें अंक हेतु सभी के संग आपको बधाई उस्मानी जी••• आयोजक मंडली को साधुवाद
नाम लिखना गलत है तो क्षमा

अंतिम काल खण्ड में रचना कुछ स्पष्ट हुई।प्रकृति की नाइंसाफी से लड़कर जीने की चाह की पराकाष्ठा इस विशिष्ट टोली के कई लोगों में अब दिखने लगी है।इस उत्कृष्ट लघुकथा के लिये हार्दिक बधाई  आपको।थोड़ी और स्पष्टता रचना को और अधिक संप्रेषणीय बनाती।

ताल मेल - लघुकथा - 

"भाई जी, ये दांव तो उल्टा पड़ गया ।

"क्या मतलब?”

"भाई जी, जिस राज्य में हमने दंगे कराने की साजिश रची थी, वहाँ अपने ही लोग ज्यादा पिट रहे हैं।मरने वाले भी अपने ही लोग ज्यादा हैं ।" 

"अरे ये सब छोड़।यज्ञ पूर्ण करने के लिये आहुति तो देनी ही पड़ती है। तभी अभीष्ट फल मिलता है। तू मुद्दे की बात बता।

"मैं कुछ समझा नहीं भाई जी?”

"अबे गधे, केवल इतना पता लगा कि अब माहौल किसके पक्ष में है?” हवा अब किस पार्टी की तरफ़ बह रही है।चुनाव कौन जीत रहा है।

"अरे भाई जी, यह तो स्पष्ट रूप से दिख रहा है कि इस दंगे के बाद तो हमारी पार्टी ही जीतेगी।" 

नेता जी ने तुरंत नोटों की गड्डी जेब से निकाल कर अपने चेलों को थमाई,

जाओ ऐश करो, जश्न मनाओ

मौलिक एवं अप्रकाशित

नेताओं के लिए कोई भी कीड़े-मकोड़े से ज्यादा महत्व नहीं रखता
विकल्प मिल नहीं रहा

निदान कैसे ढूँढ़ा जाएँ

आदाब। बढ़िया चिरपरिचित तालमेल कथानक, कथ्य और तथ्य का। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी। पाँचों उँगलियाँ एक समान नहीं होतीं, लेकिन जब साथ में घी में होती हैं, तब ऐसा ही होता है।

सामयिक राजनितिक पर तंज करती रचना एक जानेपहचाने विषय और शैली के साथ। हार्दिक बधाई 

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। अच्छी कथा हुई है।हार्दिक बधाई।

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