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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-157 

विषय : "दीपावली / रौशनी / उजाला"

आयोजन अवधि- 11 नवम्बर 2023, दिन शनिवार से 12 नवम्बर 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 11 नवम्बर 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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स्वागतम

रोला छंदावली ः

चलो अंजनी लाल, सजायें .....राम सवारी ।
लौट रहे प्रभु काज, जीत रण लंका भारी ।।

मधुर बज रही तान, अयोध्या मंगलकारी ।
सजते स्वागत द्वार, चहुँओर है फुलवारी ।।

गाते है... गुणगान, राम का सब नर - नारी ।
सिया राम आधार, जगत का दुनिया सारी ।।

खुशियाँ है चहुँओर, अयोध्या ...दीपों सजती ।
हुई अमावस आज, रात फिर रही चमकती ।।

मुखरित मंगल गान, घर- द्वार हैं रजधानी ।
माँग रही भगवान, कालिमा घर-घर पानी ।।

जले दीप घर-द्वार, सभी के सुख का अवसर ।
भरे ..रहे ...भंडार, अन्न के ...सबके घर पर ।।

हुआ तमस का अंत, जगत में रहा उजाला ।
होता शासन सत्य, सदैव भजो प्रभु माला ।।

हनुमत प्रभु के आप, हमारे...संकटमोचक ।
सेवा कर दिन रात, तारते भक्त चकाचक ।।

मौलिक व अप्रकाशित

गीत (क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली)

हे अबोध सुन! क्या तूने भी, देखी कहीं दिवाली?
कहीं मिली तमपूर्ण निशा में, क्या तुझको उजियाली?

मैंने तो उजियालों में, उजियाले होते देखे,
विद्युत से जगमग महलों में, दीपक जलते देखे,
फुलझड़ियों के बीच छूटते, अनार अनेकों देखे,
सजी दुकानों में जगमग, करती देखी दिवाली।
हे नन्हे ! क्या तुझे दिखी, अँधियारों में खुशियाली?

कहकहों ठहाकों बीच, गरजते हुए पटाखे सुने,
मैंने मधुर आरती बीच, मंगलगीत सुरीले सुने,
और और के अपने जन के, आग्रह भोजन मध्य सुने,
बीच बधाई सन्देशों के, मैंने सुनी दिवाली।
हे भूखे ! सड़कों पर क्या तुम, गाते रहे कौव्वाली?

भरे पेट में भी मुझको तो, मिष्ठान्न अनेक मिले,
वैभव वृद्धि के नव अवसर, नये नये परिधान मिले,
मंत्री, संत्री, अफसर, चाकर, सबके ही सत्कार मिले,
डलिया भर भर उपहारों में, मुझे मिली दिवाली।
हे पतझड़ से शुष्क हृदय ! क्या तुझे मिली हरियाली?

हे अबोध सुन! क्या तूने भी, देखी कहीं दिवाली?
कहीं मिली तमपूर्ण निशा में, क्या तुझको उजियाली?

मौलिक व अप्रकाशित 

मनहरण घनाक्षरी छंदः

दीपावली.. मनाईये, सखा संगी साथी मात्र, खुशियाँ भी होंगी चेरी, सभी आनन्द पार ।

प्रकाश पर्व ये मने, अमावस कार्तिक ही, गूँजे धरा आकाश पटाखों, आती गृह बहार ।।

दीपों की माला सी जागी, किस्मत भारत... आज, सुबह उगेगा.. सूर्य, गंगा ..होते लाल ।

राम नाम फिर जय होगी, विजय पताका भाल, मंगल स्मरण घर-घर, होगा सत्य बहाल।।

समाप्त है वनवास राम, सीता लंका वास भी है, रण हारा रावण, मृत्यु मिली संग्राम ।

अयोध्या नगरी सजी, दुल्हन सी पाया उसने, जो राजकुंवर राम, सिंहासन के धाम ।।

तोरण - द्वार सजे हैं, पग - पग रजधानी, पुलकित जन - जन, लगा दुखों विराम ।

प्रसन्न अयोध्या वासी, वस्त्र सज शोभित वो , करें नृत्य अनेक हैं, लगते अभिराम ।।


मौलिक व अप्रकाशित

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