For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 2122 2122 212

अब न चहरे की शिकन कर दे उजागर आइना ।
देखता रहता है कोई छुप छुपा कर आइना ।।

गिर गया ईमान उसका खो गये सारे उसूल ।
क्या दिखायेगा उसे अब और कमतर आइना ।।

सच बताने पर सजाए मौत की ख़ातिर यहां ।
पत्थरो से तोड़ते हैं लोग अक्सर आइना ।।

आसमां छूने लगेंगी ये अना और शोखियां ।
जब दिखाएगा तुझे चेहरे का मंजर आइना ।।

अक्स तेरा भी सलामत क्या रहेगा सोच ले ।
गर यहां तोड़ा कभी बनके सितमगर आइना ।।

आरिजे गुल पर तुम्हारे है कोई गहरा निशान ।
अब दिखायेगा ज़माना मुस्कुरा कर आइना ।।

खुद के बारे में बहुत अनजान होकर जी रहा ।
आजकल रखता कहाँ इंसान बेहतर आइना ।।

तोड़ देंगे आप भी यह हुस्न ढल जाने के बाद ।
एक दिन बेशक़ चुभेगा बन के निश्तर आइना ।।

कुछ तो उसकी बेक़रारी का तसव्वुर कीजिये ।
जो सँवरने के लिए देखा है शब भर आइना ।।

हैं लबों पर जुम्बिशें क्यूँ इश्क़ के इज़हार पर ।
जब बताता है तुझे तेरा मुक़द्दर आइना ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अ प्रकाशित

Views: 364

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2019 at 2:12pm

आदरणीय नवीन भाई ,  ग़ज़ल के बेहतर प्रयास लिए बधाई स्वीकार करें ,  आदरणीय समर भाई जी की इस्लाह के बाद और बेहतर हो गयी है .. पुनः बधाई !

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 1, 2019 at 12:47am

आ0 कबीर सर इस महत्वपूर्ण इस्लाह हेतु हार्दिक आभार और नमन ।

Comment by Samar kabeer on June 30, 2019 at 11:52am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'अब न चहरे की शिकन कर दे उजागर आइना'

इस मिसरे में "अब न" शब्द भर्ती का है,देखियेगा ।

'सच बताने पर सजाए मौत की ख़ातिर यहां ।
पत्थरो से तोड़ते हैं लोग अक्सर आइना'

इस शैर का ऊला पूरी तरह स्पष्ट नहीं,यूँ कर सकते हैं:-

'जग पे ज़ाहिर हो न जाये सच इसी डर से यहाँ'

'आसमां छूने लगेंगी ये अना और शोखियां ।
जब दिखाएगा तुझे चेहरे का मंजर आइना'

इस शैर के ऊला मिसरे में 'अना' और 'शौख़ियाँ' भर्ती के शब्द है,ग़ौर करें ।

'आरिजे गुल पर तुम्हारे है कोई गहरा निशान'

इस मिसरे में 'आरिज़-ए-गुल' का अर्थ है 'गुल के आरिज़' इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'फूल से आरिज़ पे है तेरे कोई गहरा निशाँ'


'जो सँवरने के लिए देखा है शब भरआइना'

इस मिसरे में 'देखा' को "देखे" कर लें ।

'हैं लबों पर जुम्बिशें क्यूँ इश्क़ के इज़हार पर ।
जब बताता है तुझे तेरा मुक़द्दर आइना'

इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,दूसरी बात ये कि आइना मुक़द्दर नहीं बताता,इस हिसाब से ये शैर भर्ती का है ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service