For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

122 122 122 122
ग़ज़ल
****
है दुनिया में कितनी रवानी न पूछो
महकती है कितनी कहानी न पूछो

इसे चाँद के पार जाना था मिलने
कहाँ रह गई ज़िंदगानी न पूछो

रहा दर बदर आशिक़ी का मैं मारा
गई बीत कैसे जवानी न पूछो

तेरे इश्क़ में मैंने गोता लगाया
मिली मुझको क्या क्या निशानी न पूछो

मुहब्बत की रस्में निभाते निभाते
रहा चश्म में कितना पानी न पूछो

कभी ग़म के बादल कभी सर्द आहें
पड़ीं कितनी बातें भुलानी न पूछो

-- क़मर जौनपुरी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by क़मर जौनपुरी on January 24, 2019 at 11:37pm

मोहतरम जनाब लक्ष्मण धामी साहब और मोहतरम जनाब अजय तिवारी साहब ग़ज़ल में शिरकत और हौसला आफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Ajay Tiwari on January 24, 2019 at 5:41pm

आदरणीय कमर साहब, अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2019 at 7:37pm

आ. भाई कमर जौनपुरी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by क़मर जौनपुरी on January 23, 2019 at 5:35pm

मोहतरम आसिफ जैदी साहब और मोहतरम आमोद श्रीवास्तव जी का बहुत बहुत शुक्रिया हौसला आफ़ज़ाई के लिए।

Comment by क़मर जौनपुरी on January 23, 2019 at 5:34pm

मोहतरम जनाब समर कबीर साहब बहुत बहुत मेहरबानी इस्लाह के लिए।

चश्म की जगह आंखों कर दिया हूँ।

इसे को उसे कर दिया हूँ।

बस ऐसे ही नज़रे इनायत बनाये रखें।

Comment by Asif zaidi on January 22, 2019 at 5:09am

मोहतरम जनाब  क़मर जौनपुरी साहब बहुत ख़ूब,

मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह इसमे और ख़ूबसूरती पैदा करती है, मुबारकबाद आपको बहुत बहुत.... 

Comment by Samar kabeer on January 21, 2019 at 11:41am

जनाब क़मर जौनपुरी साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

इसे चाँद के पार जाना था मिलने'

इस मिसरे में 'इसे' की जगह "उसे" कर लें ।

'रहा चश्म में कितना पानी न पूछो'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है 'चश्म' की जगह "आँख" कर लें ।

Comment by amod shrivastav (bindouri) on January 20, 2019 at 8:55am

आ बहुत खूब ..कभी गम के बादल,कभी सर्द आहें।पड़ी कितनी बातें भुलानी न पूछो ....

बहुत बढ़िया सर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
8 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service