साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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आदरणीया कल्पना भट्ट जी आपका हार्दिक आभार|
आदरणीय राणा प्रताप जी, उम्दा ग़ज़ल हुई है. हर लफ्ज़ नापा तुला, लहज़ा बिलकुल सधा हुआ. गिरह कमाल की है. आख़िरी शेर ख़ास तौर पर अच्छा लगा. हार्दिक बधाई.
आदरणीय अजय तिवारी जी सुखान् नवाजी लिए बहुत बहुत शुक्रिया|
आदरणीय राणा प्रताप सिंह साहब, सादर अभिवादन।
आपके संचालन में तरही मुशायरे का ये लोकप्रिय इवेंट 100 वें अंक की पूर्णता पा रहा है। इस हेतु असिमित बधाईयाँ भविष्य की शुुुभकामनाओं के साथ प्रेषित है। इस मील के पत्थर की स्थापना में आपका समर्पित योगदान प्रशंसनीय है, वंदनीय है। ओबीओ परिवार के सभी सदस्यों सहित आपको नमन करता हूँ। सादर।
आदरणीय गजेन्द्र श्रोत्रिय जी ..यह मंच हम सबका है और यह आयोजन भी हम सबका है...इस आयोजन कि सफलता में सभी सदस्यों का बराबर योगदान है| आपको भी ढेर सारी शुभकामनाएं|
छोड़ तन्हा चला गया है मुझे।
ये भी ताना दिया गया है मुझे।।
ख़ुद को हौव्वा न कह सकूंगा मैं
जब किआदम कहा गया है मुझे।।
मैं तो इंसान हूँ सभी के लिए ।
देवता क्यों कहा गया है मुझे ।।
उसको देखा नहीं नज़र भरके ।
जो इधर देखता गया है मुझे ।।
आप को क्यों यकीं नहीं होता।
"सब्र करना तो आ गया है मुझे"।।
कुछ दुआओं के साथ साथ फ़क़ीर।
गालियाँ भी सुना गया है मुझे।।
चैन दिल को नहीं क़रार नहीं।
फिर कोई याद आ गया है मुझे।।
बात करना न तुम हसीनोंं से।
फैसला ये दिया गया है मुझे।।
वो मेरा दोस्त है अभी "नायाब'।
जिस का दुश्मन कहा गया है मुझे।।
मौलिक अप्रकाशित
नायाब भाई, वाक़ई कईं नायाब नगीने हैं इस ग़ज़ल में।
मतला और तीसरा शेर विशेष दाद के काबिल।
मोहतरम आपका शुक्रिया
बहुत बढ़िया पेशकश। दो-चार अशआर बढ़िया बन पड़े हैं। हार्दिक बधाई आदरणीय मोह़म्मद नायब साहिब।
बहुत-बहुत शुक्रिया मातरम आपका
जनाब नायाब साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
समर कबीर साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया
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