आदरणीय सदस्यगण
79वें तरही मुशायरे का संकलन प्रस्तुत है| बेबहर शेर कटे हुए हैं और जिन मिसरों में कोई न कोई ऐब है वह इटैलिक हैं|
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Samar kabeer
रुँध गया उनका गला अब आँख तर होने को है
ख़त्म शायद ज़िन्दगी का ये सफ़र होने को है
लोग देखेंगे तमाशा दर बदर होने को है
पस्त आख़िर ख़ैर से इक रोज़ शर होने को है
लाख कर लो चश्म पोशी ये मगर होने को है
सारी दुनिया एक दिन ज़ेर-ओ-ज़बर होने को है
यूँ तसल्ली दे रहे हैं वो दिल-ए-बीमार को
अब सहर होने को है बस अब सहर होने को है
इस से बहतर और क्या अंजाम होगा ज़ीस्त का
मौत मेरी आप के हाथों अगर होने को है
चार तिनके रख दिये पंछी ने,अब तुम देखना
कोई हंगामा यक़ीनन शाख़ पर होने को है
दूसरों के दर्द को अपना समझ लेता हूँ मैं
और ये तकलीफ़ मुझको उम्र भर होने को है
मिल गया मंसब वज़ारत का ,मियाँ अब देखना
बादशाहों की तरह अपनी गुज़र होने को है
नींद से बोझल हैं पलकें ,बुझने वाले हैं चराग़
"ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है"
हो गई अपनी ग़ज़ल,अब देखना ये है "समर"
अह्ल-ए-दानिश के दिलों पर क्या असर होने को है
हो गई अपनी ग़ज़ल,अब देखना ये है "समर"
ओबीओ के पाठकों पर क्या असर होने को है ?
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गिरिराज भंडारी
रात सहमी लग रही है अब सहर होने को है
जुल्मतों पर बद दुआओं का असर होने को है
रोशनी में रंगत ए तस्वीर जो उभरी थी कल
आम नज़रों के लिये कब मुश्तहर होने को है ?
कल की अट्टाहस को थामा वक़्त ने ऐसा, कि अब
जाँ ब लब है कहकहा, जैसे जरर होने को है
कब तलक रोयें ? हँसे न क्यूँ भला हालात पर
जब कि माजी में हुआ जो, उम्र भर होने को है
जब परिंदों को हवा का साथ मिलना तय हुआ
तब यक़ीं दिल को हुआ उनको खबर होने को है
धड़कनों में इज़्तराबी और लब हैं ख़ुश्क से
क्या ख़ुदा मुझ पर परीवश की नज़र होने को है ?
आज ख़त आया कि बच्चे लौट आयेंगे यहाँ
दिल कहे, वींरा मकाँ अब फिर से घर होने को है
कल हवाओं में, फज़ाओं में यही पैगाम था
तेरी राहों से अलग उनकी डगर होने को है
थक चुके अल्फ़ाज़ भी अब, जैसे अफसाना निगार
" ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है "
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Manan Kumar singh
अपनी बातों का अभी लगता असर होने को है
मौन मन भी अब जरा-सा बेसबर होने को है।1
खौलता सागर अगन का तो पता चलता नहीं
भीत सिकता की ढ़हेगी यह कहर होने को है।2
शोखियों से पिट गया हर मोड़ पर जो मनचला
भूलकर शिकवे जियादा वह बशर होने को है।3
हर किसीका दिल यहाँ पर टूटता अबतक रहा
चोट खाकर जो मिला हो, वह बजर होने को है।4
बिलबिलाये हैं बहुत ही रोशनी की चाह में
हो भले चाहे किसीका अब सहर होने को है।5
पतझड़ों को झेलकर आँखें बिछाये है खड़ा
देख पुरवा की पहल पुष्पित शज़र होने को है।6
कामयाबी को चिढातीं सिर चढ़ीं नाकामियॉँ
ऐसा लगता है कि किस्सा मुख्तसर होने को है7।7
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अरुण कुमार निगम
माँगने हक़ चल पड़ा दिल दरबदर होने को है
खार ओ अंगार में इसकी बसर होने को है |
बात करता है गजब की ख़्वाब दिखलाता है वो
रोज कहता जिंदगी अब, कारगर होने को है |
आज ठहरा शह्र में वो, झुनझुने लेकर नए
नाच गाने का तमाशा रातभर होने को है |
छीन कर सारी मशालें पी गया वो रोशनी
फ़क्त देता है दिलासा, बस सहर होने को है |
अब हकीकत को समझने लग गए हैं सब यहाँ
मुफलिसों की आह का शायद असर होने को है |
सुगबुगाहट दिख रही है चार सूं आवाम में
ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है |
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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)
ये ख़ुशी का जश्न शायद रात भर होने को है
कोयलों की कूक से लगता सहर होने को है
वो भी अब तिरछी नज़र से देखते हैं आजकल
मुझको लगता है मोहब्बत का असर होने को है
रो रहा था कोई छुपकर फिर मुझे ऐसा लगा
मेरा दामन आंसुओं से तर-बतर होने को है
चार दिन की चांदनी है फिर अंधेरी रात में
धीरे-धीरे ज़िन्दगी अपनी बसर होने को है
उसकी सांसों पर टिकी है ज़िन्दगी की आस फिर
ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है
ज़िन्दगी गुजरी थी अपनी जिस जगह अपनों के साथ
रफ्ता रफ्ता वो हवेली भी खंडर होने को है
कल भी गुज़री थी इधर से जानलेवा दोस्तो
आज फिर वो ही क़यामत का ग़ुज़र होने को है
लग गई कल आंख बिस्तर पर तो ये आया ख्याल
जिंदगी का आख़री अपना सफर होने को है
दर्द-ए-दिल बढ़ने लगा है याद से 'गुलशन' तेरी
अब तो लगता है दुआओं का असर होने को है
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सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'
फ़रवरी में इक सियासत का समर होने को है |
इस तमाशे की मियाँ सबको खबर होने को है ||
अब बटेंगे नोट घर घर और मदिरा थोक में
रात हर इक जाम से वोटों की तर होने को है ||
चल रही है हर गली वादों की तिकड़म बाजियाँ
जानते हो, बाद में वादा सिफ़र होने को है ||
बैंक बिजली पोस्ट आफिस नल सड़क या अस्पताल
भाषणों में गाँव भी मेरा नगर होने को है ||
घोषणा में मुफ्त की सौगात इतनी दिख रही
यूॅ लगे आराम से सबकी गुज़र होने को है ||
वोट देंगे लोग बस अपनी सहूलत देखकर
जात मजहब का जियादा अब असर होने को है ||
जोड़ती है हाथ जाकर ये सियासत दर ब दर
क्योंकि इक इक वोट की खातिर ग़दर होने को है ||
दल बदल आरोप प्रत्यारोप धोखा जोड़ तोड़
ये तमाशा फिर सियासत में मुखर होने को है ||
झूठ की बुनियाद पर यह तंत्र चलता देख कर
*ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है* ||
चंद सिक्कों में बिकेंगे 'नाथ' कितनो के जमीर
स्वार्थ में ये आदमी अब जानवर होने को है ||
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मिथिलेश वामनकर
यार शादी का है मतलब एक घर होने को है
और वो घर आफतों की रहगुजर होने को है
रह गए हम तो मुहब्बत में, न शौहर बन सके
ये ख़बर आई है हम मामा मगर होने को है
फैसला लेने से पहले सोच ले वो सौ दफ़ा
इश्क़ की खातिर कोई शौहर अगर होने को है
करवटें हासिल उसे, शादी को जो बेसब्र था
रात भर बस सोचता है अब सहर होने को है
सुर्ख आँखों से अचानक बहता काजल देखकर
ताड़ लेना आज फिर कोई ग़दर होने को है
वह चने के पेड़ पर, तारीफ़ ऐसी हुस्न की
हम मुक़र्रर और उनकी बाहें पर होने को है
एक गुस्सा और घर में शामतों पर शामतें
“ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है”
सुबह की तकरार पर भी शाम को खामोशियाँ
देख लेना, राख शायद फिर शरर होने को है
जिंदगी दरिया, किनारे हम, कसम से मत कहो
आजकल तो हर नदी केवल गटर होने को है
यूँ ग़ज़ल के नाम पर जो भी लिखा ‘मिथिलेश’ ने
आज इतना हँस लिए के चश्म-ए-तर होने को है
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शिज्जु "शकूर"
अब के शायद जाँफ़िशानी का असर होने को है
बूंद कोई सीप के अंदर गुहर होने को है
कुर्सियों से उठ रहे हैं रफ़्ता-रफ्ता सामयीन
“ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है”
राख को पैहम हवा दी जा रही है आजकल
लग रहा है ज़र्रा-ज़र्रा अब शरर होने को है
बम ज़बानी दुश्मनों पर इतने गिरते हैं यहाँ
यूँ समझिये उनके दिल में पैदा डर होने को है
फ़ोन बंकर हो गया की-पैड सारे अस्लिहा
हर तरफ़ से हमला दहशतग़र्द पर होने को है
फ़ेसबुक पर यूँ उबलता है लहू सबका कि बस
जंग का मैदान अब तो सुर्खतर होने को है
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Kalipad Prasad Mandal
पूर्व में लाली दिखी है, अब सहर होने को है
राज़ जो अब तक छुपा था, वो मुखर होने को है |
राजनेता एक ही थैली के चट्टे बट्टे किन्तु
सोचती जनता कि सब अब बेहतर होने को हैं |
क्यों डरा कर आम को, ताकत दिखाते पैसे की
भय नहीं खाते कोई, जनता निडर होने को है |
हाट बाज़ारों में कीमत वस्तुओं की कम हुई
नोट बंदी का क्या उपयोगी असर होने को है |
एक रजनी में करोड़ों के धनी मुफलिस हुए
राहजन सब हाट के अब राहबर होने को है |
दल बदल का राज़ सबको अब पता होने लगा
ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है |
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Tasdiq Ahmed Khan
खूने दिल होने को है खूने जिगर होने को है |
लग रहा है उनपे उलफत का असर होने को है |
अंजुमन में ख़त्म ज़ुल्मत का सफ़र होने को है |
थाम कर दिल बैठिए वो जलवा गर होने को है |
मेरी बर्बादी का गम उनको नहीं ,किसने कहा
गौर से देखो नज़र उनकी भी तर होने को है |
बे वजह कोई किसी पर महरबाँ होता नहीं
कोई अनजाना सितम फिर प्यार पर होने को है |
भीड़ लोगों की सवेरे से न है यूँ ही लगी
आज फिर इस राह से उनका गुज़र होने को है |
क़िस्सा ख्वाँ की यक बयक आवाज़ ही गिरने लगी
एसा लगता है कि क़िस्सा मुख्तसर होने को है |
कारवाँ की बेहतरी अब आगे जाने में नहीं
राह सूनी है अंधेरा राह बर होने को है |
बोलते हैं उनके बदले बदले तेवर साफ़ यह
तुह्मते वादा खिलाफी मेरे सर होने को है |
फूँक कर अपने पड़ोसी के मकां को खुश न हो
आग का अब यह तमाशा तेरे घर होने को है |
वो नहीं मिल पाए तो क्या नक़्शे पा तो मिल गया
रह गुज़र अब मेरी मंज़िल की डगर होने को है |
ले रहे हो हाए आख़िर क्यूँ चरागों की भला
करदो तुम तस्दीक़ इनको गुल ,सहर होने को है |
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Ahmad Hasan
आफरीं इस राह से उनका गुज़र होने को है |
अपनी उनके साथ पल दो पल बसर होने को है |
थोड़ा थोड़ा लोग गंगा जल पिलाते हैं मुझे
सब समझ बैठे हैं दावत खूब तर होने को है |
मेरी बीवी रब को प्यारी हो गयी मुद्दत हुई
जाँ बलब बूढ़े कि फिर वो हम सफ़र होने को है |
कर लिया है मैने छममों से सिनेमाई विवाह
बाहमी ब्योहार अब शीरो शकर होने को है |
साल पहले मेरे घर पैदा हुआ सूरज मिरा
हफ्ते भर में मेरी छममों के क़मर होने को है |
याचिका लिव इन रिलेशन के मुखालिफ़ लग गयी
आशिक़ों की इश्क़ बाज़ी में कसर होने को है |
कहते कहते दास्ताँ आवाज़े अहमद दब गयी
एसा लगता है कि क़िस्सा मुख्तसर होने को है
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
लग रहा है यार भी अब हमअसर होने को है,
दोसतों दिल का सदर घर का सदर होने को है।
रूठना फिर मान जाना ये अदा महबूब की,
जिंदगी की अब सभी आसाँ डगर होने को है।
जो मुहब्बत थी खफ़ा उसने करम दिल पे किया,
ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है।
रोज गाएँगे तराने अब नये हम साथियों,
बेबहर जो थी ग़ज़ल अब बाबहर होने को है।
चैन ना है दिल को दिन में रात भी कटती नहीं,
जो असर हम पे था अब उन पे असर होने को है।
अब हमारी जिंदगी का एक सूनापन मिटा,
घर बदर जो हो रहे थे घर बसर होने को है।
बेकरारी की अँधेरी रात में तड़पा 'नमन',
जिंदगी में अब मुहब्बत का सहर होने को है।
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Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"
इक किरण छिटका दिया है बस सहर होने को है
मोतियाँ चमकेंगी सूरज का असर होने को है
राह में शोरिश बढ़ी है काफ़िला बन ही गया
ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है
हर ग़ज़ल का शेर हर इक उनकी खश्बू से सना
छिप न पाया इश्क़ दुनिया को खबर होने को है
हीर रांझा कैस लैला या के मीरा कृष्ण हों
गर हुई ज़िंदा मुहब्बत तो गदर होने को है
मेज़बाँ के मन में ग़र चे स्नेह कम हो क्लेश हो
फिर, अमिय पकवान को भी तो ज़हर होने को है
नेक नीयत का ये प्रवचन बन्द भी करिये गुरू
शह्र का चर्चित लुटेरा मान्यवर होने को है
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सतविन्द्र कुमार राणा
जो छुपी थी बात उसका अब असर होने को है
आज उसका ही तो चर्चा दर ब दर होने को है।
देख लेंगे जो भी होगा हाल इसके बाद में
जिंदगी का जाम देखो मय से तर होने को है।
आसरा देता रहा जो सबको अपनी छाँव में
लग रहा अब दूर उससे उसका घर होने को है।
बात हमसे वो नहीं करते सही से आज कल
*ऐसा लगता है कि किस्सा मुख्तसर होने को है।*
हौंसलों औ मिहनतों से अब अमल होता रहे
वर्ना मुश्किल जिंदगी की हर डगर होने को है।
बाँटने से बढ़ ये जाती ऐसी दौलत है सही
जोड़ कर रख ली मुहब्बत बे असर होने को है
फैसला उनको सुनाना हम पे भारी यूँ पड़ा
अब खिलाफत उनकी हमसे उम्र भर होने को है।
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अजीत शर्मा 'आकाश'
अपने गुलशन में बहारों का गुज़र होने को है ।
ज़िन्दगानी अब तो फूलों में बसर होने को है ।
घिर चले हैं काले बादल कम है सूरज की तपन
अब न घबरा हमनशीं, आसां सफ़र होने को है ।
झाँकने तक भी नहीं आता परिन्दा एक भी
और तनहा अब तो ये बूढ़ा शजर होने को है ।
आ गयी है मण्डली पूरी की पूरी, ख़ुश हैं सब
कोई नौटंकी यहाँ अब रात भर होने को है ।
रहने दे, आगे का क़िस्सा फिर सुना लेना कभी
देख तो अब दोस्त, मेरी चश्म तर होने को है ।
कर ले समझौता अभी हालात से, पागल न बन
छोड़कर तू नौकरी क्यों दर-ब-दर होने को है ।
ख़ूब काटी ज़िन्दगी दुख में कभी, सुख में कभी
[[ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है]]
छोड़ दूँ 'आकाश' क्या मैं शोलों से अब खेलना
आग की लपटों की ज़द में मेरा घर होने को है ।
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Gurpreet Singh
बंदिशों की बेड़ियों का ये असर होने को है
मेरे अंदर का बशर अब जानवर होने को है ॥
वो बढ़ाते जा रहे हैं बिन वजह छोटी सी बात
"ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है ॥"
रात को करवट ली उसने रुख़ मेरी जानिब किया
और मुझको यूँ लगा जैसे सहर होने को है ॥
कुछ तो जालिम कम करो वक्फा मुलाकातों के बीच
पिछली बारी जब मिले थे लम्हा भर होने को है ॥
फ़िर से छेड़ा है किसी ने ने जिक्र उनका शाम को
फ़िर से मेरा दिल परेशां रात भर होने को है ॥
हमसफ़र मुझ को मिला तो है मगर मैं क्या कहूँ
तब मिला है ख़त्म जब मेरा सफ़र होने को है ॥
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Dr Ashutosh Mishra
माँ तुम्हारी ही दुआओं का असर होने को है
अब तुम्हारे लाडले की भी कदर होने को है
बाप बेटे के दिलों में उस घड़ी उल्फत जगी
जिस घड़ी सोचा था सबने बस ग़दर होने को है
ट्रम्प के आते ही बगदादी पे काले घन घिरे
ऐसा लगता है ये किस्सा मुख़्तसर होने को है
आज पत्थरबाजों के हाथों में पत्थर हैं नहीं
धीरे धीरे नोटबंदी का असर होने को है
हर सियासतदार बातें कर रहा मीठी बड़ी
क्या सियासत देश की अब बेहतर होने को है
फिर फलक के चाँद तारों में बढ़ी बेचेनिया
लगता है धरती पे फिर से नव सहर होने को है
दर्द सहकर भी न बूढ़ी मा ने दी थी बद्दुआ
बस कहा बेटा न कोई भी अजर होने को है
राम के बाणों ने रावण को दिया ये ज्ञान था
है जगत नश्वर न कोई भी अमर होने को है
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munish tanha
रात काली बीतने वाली सहर होने को है
बीज बोया था कभी जो वो शज़र होने को है
लूट जनता को किया है आज तक तुमने सफर
जोश में जनता है आई बस गदर होने को है
रख के हिम्मत वो बढा है रात दिन देखो यहाँ
अब मिलेगा फल उसे अब वो गुहर होने को है
जब तलक जिन्दा है चिंता पेट की ही बस बनी
था पिसर वो देख पहले अब पिदर होने को है
कारवां लूटा गया था हश्र उसका ये हुआ
जेल में है अब सदर बस ये खबर होने को है
हार अपनी मान ले जालिम तुझे मौका दिया
शर्म तुझको गर नहीं तो फिर जफर होने को है
कल यहाँ कुछ भी नहीं था अब सजी हैं महफ़िलें
बादलों में रोशनी शायद कमर होने को है
जिंदगी अब जा रही है मौत के आगोश में
ऐसा लगता है किस्सा मुख्तसर होने को है..
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Manoj kumar Ahsaas
मेरी ख़ामोशी का शायद अब असर होने को है
मेरे क़ासिद को मेरे ग़म की ख़बर होने को है
जागना है सोचकर कि बस सहर होने को है
ये तमाशा साथ अपने उम्र भर होने को है
कतरे कतरे की तलब में डगमगाती ज़िन्दगी
दर्द की दीवानगी में खुद जहर होने को है
जा रहे हैं लोग मेरी ज़िंदगी से इस तरह
"ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है"
अपने हक़ में आ सकेगा क्या नए सूरज का रंग
लोग फिर कहने लगे हैं अब सहर होने को है
आँखे फाडे रस्सियों को देखने वालों सुनो
फिर किसी की कमनसीबी ही हुनर होने को है
रोशनी की कर हिफाज़त इल्म को मैला न कर
आसमाँ वाले की हम पर भी नज़र होने को है
मैं बड़े लंबे सफर में कह सका हूँ ये ग़ज़ल
चल रहा हूँ रात से और दोपहर होने को है
मक्ते में मैं क्या कहूँ मेरे अज़ीज़ दोस्तों
हो गया अहसास बिस्मिल दर-ब-दर होने को है
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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
चल चुका है तीर आँखों का असर होने को है
बात छोटी है मगर सबको खबर होने को है
भूलता ही जा रहा हूँ खुद-बखुद अपना वजूद
नजर की यह मयकशी अब पुरअसर होने को है
तुम जमाने से अगर टकरा सको तो जान लो
प्यार का किस्सा हमारा भी अमर होने को है
लोग अक्सर हैं भटक जाते सदा इस उम्र में
पर तुम्हारा क्या तुम्हारी दोपहर होने को है
रात में तो थी नहीं इसकी जरूरत पर अभी
पैरहन हो लाज का क्योंकि सहर होने को है
राह तो देखी बहुत पर थक चुकी अब जिन्दगी
ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है
कट गए शामो-शहर सब सिसकियों की ओट में
आह भी यह आख़िरी तेरी नजर होने को हैं
नाजुकी होती नहीं है इश्क में कम गजल से
हर समय खटका यही कि बेबहर होने को है
पी लिया प्याला जहर का एक मीरा ने अभी
बेअसर ‘गोपाल’ फिर से यह जहर होने को है
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अलका 'कृष्णांशी'
आँधियों का जोर भी अब बेअसर होने को है
रूह का प्रीतम से मिलना कारगर होने को है
.
खुल गए है नैन उनके अब सहर होने को है
दिल ने जो सजदे किये उनका असर होने को है
.
व्यर्थ है आखर का मेला बोलता है मौन जब
मैं रहूँ चुप धड़कनों में अब गदर होने को है
.
हूँ अकल्पित भी मैं सम्भव रिक्त भी सम्पन्न हूँ
मिल गया है साथ तेरा अब बसर होने को है
.
श्वास बिन यह देह मिथ्या देह बिन संसार क्या
आदि और अनन्त तक का ये सफर होने को है
.
डर नहीं अब मात का भी तम करे रोशन दिया
वक्त का दरिया मचल कर अब सिफर होने को है
.
दूसरों का हो फ़साना तो मजा लेते सभी
बात जब खुद की चली तो फिर कहर होने को है
.
वृक्ष सा तन्हा थपेड़े सह रहा हर आदमी
पत्थरों को तोड़ दे अब वो लहर होने को है
.
भूख के जुल्मो सितम ने हाथ में पत्थर दिया
दर्द का ये सिलसिला अब मुख़्तसर होने को है
.
वक्त के सांचे में ढलना ही पड़ेगा एक दिन
सिलसिला दिन रात सा यह उम्र भर होने को है
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rajesh kumari
पत्ते पत्ते को खिजाँ की अब खबर होने को है
जिन्दगी का फिर मुकम्मल इक सफ़र होने को है
खुल गया तेरा कफस अब हो गया आजाद तू
जिन्दगी की इक नई तेरी सहर होने को है
ओढ़ केसरिया चुनरिया मांग में बारूद भर
कर रही सरहद मुनादी अब समर होने को है
बज्म में छाई उदासी हो गए सब चश्मतर
मर्सिया ख़्वानी का मेरी अब असर होने को है
हसरतों की धूप में हमने लिखी थी जो ग़ज़ल
आख़िरी बरसात में वो तरबतर होने को है
दिल खुदा से जब लगाया रूह ने तब कह दिया
इस मुहब्बत का सफ़र अब पुरखतर होने को है
लौट जाओ घर को अपने कह रही है ख़ाक भी
ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है
जीस्त की जद्दोजहद में इक शजर मिट ही गया
आज हस्ती देख उसकी दरबदर होने को है
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Abhishek kumar singh
कागजी वादे जमी पे बेअसर होने को है
वोट की खातिर कोई दंगा इधर होने को है
गाँव के तेवर बदलते जा रहे हैं दिन ब दिन
शह्र बदले या न बदले वो नगर होने को है
धुंध की परछाइयों मे छुप गया क्यूँ आसमां
कोई बतलाये उसे की अब सहर होने को है
कोई भी किरदार मुझको अब नज़र आता नही
ऐसा लगता है की किस्सा मुख़्तसर होने को है
गांव की मुनिया खुशी से झूमने गाने लगी
जब सुनी वो रामलीला रातभर होने को है
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
फिर तमस पर वक्त की टेढ़ी नजर होने को है
मत व्यथित हो तेरे हिस्से भी सहर होने को हैं।1।
मुफलिसी जो घर किये है दरबदर होने को है
शानोशौकत फिर से तेरी हमसफर होने को है।2।
सान पर रख ले मुहब्बत तू न यूँ मायूस हो
बीज नफरत का जहाँ में गर शज़र होने को है।3।
फिर किसी माँ ने दुआ दी है मुझे भी लग रहा
एक खोटा सा ये सिक्का जो गुहर होने को है।4।
या तो जालिम खुद बदलजा या मिटा डालेंगे वो
हर कली अब तो गुलाबी गुलमोहर होने को है।5।
हर तरफ गफलत सी फैली हर तरफ बेचैनियाँ
‘ऐसा लगता है कि किस्सा मुख्तसर होने को है’।6।
वज्म खुशियों की सजी है दश्त भर पैगाम ये
किसलिए फिर तेरी यारा आँख तर होने को है।7।
लौट आता अब नहीं क्यों अजनवी महफिल से तू
गाँव तेरा भी ‘मुसाफिर’ जब नगर होने को है।8।
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दिनेश कुमार
शे'रगोई मेरे दिल की हम-सफ़र होने को है
दश्तो-सहरा का मकां यूँ एक घर होने को है
बाग़बाँ इक बार वापिस आ के मुझको देख लो
तुमने जो पौधा लगाया था शजर होने को है
शेर पहला क्या कहा.. पापा मुझे याद आ रहे
इक ग़ुबार उठ्ठा है दिल में.. आँख तर होने को है
रहगुज़ारे-दिल से गुज़रा शाम को उनका ख़याल
रक़्स यादों का मगर अब रात भर होने को है
मौत ही बेहतर दवा है ज़िन्दगी के ज़ख़्म की
मेरा दर्दे-दिल भी मेरा चारा-गर होने को है
बिजलियों की ज़द में आया मरकज़ी किरदार भी
''ऐसा लगता है कि क़िस्सा मुख़्तसर होने को है''
क्या पता मिट्टी को अब वो कूज़ा-गर क्या रूप दे
हाँ मगर हंगामा कोई चाक पर होने को है
रंग लाई आबला-पाई कि मंज़िल दिख रही
बूँद जो घर से चली थी अब गुहर होने को है
मुस्कुराहट क्यों ज़िया की हो रही मद्धम 'दिनेश'
क्या चराग़ों पर हवाओं का असर होने को है
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Ganga Dhar Sharma 'Hindustan'
चाँद बोला चाँदनी, चौथा पहर होने को है.
चल समेटें बिस्तरे वक्ते सहर होने को है.
चल यहाँ से दूर चलते हैं सनम माहे-जबीं.
इस जमीं पर अब न अपना तो गुजर होने को है.
है रिजर्वेशन अजल, हर सम्त जिसकी चाह है.
ऐसा लगता है कि किस्सा मुख़्तसर होने को है.
गर सियासत ने न समझा दर्द जनता का तो फिर.
हाथ में हर एक के तेगो-तबर होने को है.
जो निहायत ही मलाहत से फ़साहत जानता.
ना सराहत की उसे कोई कसर होने को है.
है शिकायत , कीजिये लेकिन हिदायत है सुनो.
जो कबाहत की किसी ने तो खतर होने को है.
पा निजामत की नियामत जो सखावत छोड़ दे.
वो मलामत ओ बगावत की नजर होने को है.
शान 'हिन्दुस्तान' की कोई मिटा सकता नहीं.
सरफ़रोशों की न जब कोई कसर होने को है.
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जिन गजलों में मतला या गिरह का शेर नहीं है उन्हें संकलन में जगह नहीं दी गई है इसके अतिरिक्त यदि किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
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जनाब राणा प्रताप सिंह साहिब, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक _79के संकलन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं I
जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,'ओबीओ लाइव तरही मुशायरा'अंक 79 के संकलन लिए बधाई स्वीकार करें ।
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