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यकीन

यही सोच कर रुठीं हूँ मना लेगा वो

गलतफहमियाँ जो हैं मिटा देगा वो

प्यार से खींचकर भींच लेगा मुझे

गलतियाँ जो की हैं भुला देगा वो |

 

     पहली गुफ्तगू

पहला जाम पी लिया खोलकर ये दिल

जाम की आरज़ू है तू रोज़ यूँ ही मिल

मझधार में भटकी सफीना दूर है साहिल

बन जा पतवार मेरी ले चल मुझे मंजिल

 

 

         बुढ़ा

वो जो एक शख्स झुका-झुका सा बैठा है

उसकी  पीठ  पर यह घर टिका  बैठा है

छातियाँ बात-बेबात गुब्बारा हुई जाती हैं

हवा के दाब सहता हुआ  फेफड़ा बैठा है

सूख कर वो आँखे अब सहरा हो चली हैं  

किसे खबर  है कि उनमें दरिया बैठा है

सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2018 at 7:14pm

आ. सोमेश जी सुंदर मुक्तक हुए हैं । हार्दिक बधाई ।

Comment by somesh kumar on February 18, 2018 at 7:27pm

rchna ko psand krne aur sneh dene k liye aap guni mitro ka shukriya

Comment by रक्षिता सिंह on February 18, 2018 at 12:48pm

आदरणीय सोमेश जी, सुन्दर रचना...बहुत बहुत बधाई।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 17, 2018 at 7:31pm

बहुत बढ़िया भावपूर्ण मुक्तक सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सोमेश कुमार जी।

Comment by Mohammed Arif on February 17, 2018 at 10:29am

आदरणीय सोमेश कुमार जी आदाब,

                            प्यार के ख़ूबसूरत अहसासों से भरपूर अच्छे मुक्तक और अंतिम रचना में बुढ़ापे को रेखांकित बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । 

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