For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तितली और सफ़ेद गुलाब

“भाई अरविन्द ,कब तक ताड़ते रहोगे ,अब छोड़ भी दो बेचारी नाजुक कलियाँ हैं |”

“मैंsए ,नहीं तो -----“

वो ऐसे सकपकाया जैसे कोई दिलेर चोर रंगे हाथों पकड़ा जाए और सीना ठोक कर कहे –मैं चोर नहीं हूँ |

“अच्छा तो फिर रोज़ होस्टल की इसी खिड़की पर क्यों बैठते हो  ?”

“यहाँ से सारा हाट दिखता है |”

“हाट दिखता है या सामने रेलवे-क्वार्टर की वो दोनों लडकियाँ --–“

“कौन दोनों !किसकी बात कर रहे हो !देखों मैं शादी-शुदा हूँ ---और तुम मुझसे ऐसी बात कर रहे हो –“ उसने बीड़ी को झट से फैंका और पैरों के नीचे मसल के फटाफट कमरे में आकर लेट गया |

मैं जानता था कि उसके दिलों-दिमाग में वे दो तितलियाँ पल रही हैं पर उनकी कौन सी अवस्था है इसका ठीक ठीक अनुमान लगाना कठिन था |

चूँकि अरविन्द बहुत ही शर्मिला और अन्तर्मुखी था इसलिए हमने फिलाहल के लिए उसे उसकी दशा पर छोड़ना ही ठीक समझा |वो आंवला के एक गाँव से आया था और बी.टी.सी में मेरा साथी था |उसका विषय अंग्रेजी और मेरा कृषि-विज्ञान था |हॉस्टल में हमारा कमरा आमने-सामने था और फुर्सत में जब लड़कों की टोली जमती और सबकी इश्कबजियों की चर्चा होती तो वो चुपचाप बीड़ियाँ सुलगाने लगता |

“भाईसाहब आप इन लड़कों के कारनामों से खार क्यों खाते हो !आप ने तो सारे मज़े ले लिए ---“ एकदिन उसे छेड़ते हुए एक साथी ने कहा

“मज़ा नहीं सजा बोलों |इन्टर पास करते-करते पिताजी ने अपनी पसंद की लड़की गले बांध दी और अभी रोज़ी-रोटी का जुगाड़ नहीं हुआ है और दो बच्चों के बाप हो गए हैं |”उसने झल्लाते हुए कहा

उस दिन के बाद किसी ने उसकी दुखती रग को छेड़ने की कोशिश नहीं की और जब हम लड़के अपनी और हॉस्टल की प्रेम-कहानियों का जिक्र करते तो वो चुपचाप बालकनी में आकर खड़ा हो जाता और हाट को देखने लगता |

होस्टल के ठीक सामने रेलवे-लाईन गुजरती थी और वहाँ एक छोटा सा प्लेटफार्म था जहाँ मालगाड़ियाँ रुका करती थीं |शाम के वक्त हम लड़के अक्सर प्लेटफार्म पर तफ़री करने चले जाते |हम सभी प्लेटफार्म पर बोलते –बतियाते  टहलते रहते पर अरविन्द प्लेटफार्म के एक निश्चिन्त जगह पर बैठता तो प्लेटफार्म छोड़ने के वक्त ही उठता |

 

मैंने गौर किया तो पाया कि प्लेटफार्म और होस्टल की बालकनी से रेलवे-क्वार्टर का एक ही विशेष भाग दिखता है और वहाँ पर अक्सर वो दो लडकियाँ नजर आती हैं |यानि मेरा संदेह सही था |अरविन्द के दिल में तितली थी जो अपने फूलों तक पहुँचनें के लिए मचल रही थी |

रविवार की एक दोपहर उसे बालकनी में अकेला देखकर |मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा –घुटते रहोगे तो तितली मर जाएगी और फूलों को कोई और चुरा लेगा |

“मैं कर ही क्या सकता हूँ !” मैंने महसूस किया कि इस बार चोर हथियार डाल चुका है और रहम की भीख माँग रहा है |

“चाहता क्या हो ?” मैंने नर्मी से पूछा

“एकबार करीब से देखना और बतियाना----“

“जैसा कहूँगा वैसा करोगे ?”

“भाई मैं शादी-शुदा हूँ |”

“चलों रेलवे कॉलोनी हवा खाकर आते हैं |” मैंने उसे खीचते हुए कहा

“पर –वहाँ क्यों –किसी ने देख लिया फिर---यार रहने दो |”

पर मैंने उसकी एक ना सुनी और उसे घसीटते हुए रेलवे-कालोनी ले आया

“वही क्वार्टर है ना ! “ मैंने एक क्वार्टर की तरफ़ ईशारा करते हुए कहा

“रहने दो भाई,किसी को मालूम चल गया तो कितनी बदनामी होगी ,कहीं कॉलेज तक बात पहुंच गई तो ---“

“अरविन्द भाई ,मोहब्बत हो या जंग जीतने के लिए उसमें उतरना पड़ता है |”

“रहने दो भाई –“ उसने पीठ दिखाते हुए कहा

“देख लो मंजिल सामने है और तुम हो कि मुँह फेरते हो ---फिर आज से बालकनी पर खड़ा होना और प्लेटफार्म पर बैठना बंद |”

“ये कैसी शर्त हुई |” वो वापस मुड़ते हुए बोला

“तुम बस साथ चलों और देखों कैसे गोटियाँ फिट होती हैं |”

मैंने दरवाजे पर धीमे से कुण्डी बजाई तो 34-35 वर्ष की एक युवती ने दरवाज़ा खोलकर अचरज़ पर बड़े सलीके से कहा-“फरमाइये “

“आदाब !” जी हम सामने वाले हॉस्टल से आए हैं |और पास वाले कॉलेज से बी.टी.सी. कर रहे हैं और इसी सिलसिले में आपकी मदद चाहिए |”

“हम आपकी मदद ---“वो अचरज़ से बोली

“जी | हमें अपने विषय पर कुछ लेशन-प्लान बनाने और प्रस्तुत करने होते हैं इसके लिए 8 से 12 तक की किताब की जरूरत थी |बाजार और लाईबेरी में किताब मिल नहीं रही –क्या आपके यहाँ पढ़ने वाले बच्चे हैं |”

“पढ़ने वाले बच्चे तो हैं---पर आप कितने दिन में लौटा देंगे ?’

“सोमवार सुबह तक मशीन से उसकी नक़ल निकलवाकर आपकों लौटा जाएँगे |ये हमारा आई-कार्ड देखिए और अगर चाहे तो किताब की पूरी रकम जमा करा लें जब हम किताब वापिस करें तो पैसे लौटा दीजिएगा |”

“बेटा सुहैल ! जरा अपनी किताब लाना |”

“सुहैल की किताबों से एक किताब छांटकर,क्या दसवीं,बारहवीं की किताब नहीं है |” मैंने चतुर शिकारी की तरह जाल फैलाना शुरु किया

“सुहैल,मरियम और शबाना से कह जरा अपनी किताब भी लेती आएं |”

वे दोनों जब आईं तो मेरे होश फाख्ता हो गए |मरियम 15 साल की और शबनम 17 की रही होगी,पहली 9 वी और दूसरी 12 में पढ़ती थी

मैंने अरविन्द की तरफ़ देखा तो वो नजर नीचे किए था और उसका चेहरा लाल हो रहा था |

वो दोनों संगमरमर की मूर्तियों जैसी थीं |सीढ़ियों के पास ही गमलों की कतार थीं जो तरह-तरह के गुलाबों से भरी थी |वहीं एक गमले में दो सफ़ेद गुलाब मुस्कारा रहे थे |

किताब लेकर जब मैं उसके पैसे उस महिला को लौटने लगा तो वो बोलीं-“भरोसे पर दे रहे हैं |वक्त पर लौटा देना |बच्चियों को दिक्कत ना हो “

“जी |”

कम्पाउन्ड से बाहर निकलकर मैंने अरविन्द को छेड़ा –“तो मियाँ हसरत पूरी हो गई या और कुछ बाकी है –“

“पता नहीं |मेरी तो नज़र ही नहीं उठती थी |मैं तो गमले के सफ़ेद गुलाब ही देखता रह गया |” शर्म से लाल हुए चेहरे को संयत करते हुए वो बोला

“ठीक है |कल किताब वापस करने तुम जाओगे |” मैंने सपाट सी घोषणा की

“मैंss ए “ उसने हड़बड़ाते हुए कहा

“भाई तुम्हें फूलों तक पहुँचा दिया है आगे तुम जानो और तुम्हारे दिल की तितली जाने |”

उसने कोई उत्तर नहीं दिया

अगले दिन जब वो किताबे देकर लौटा तो उसका दिल बाग-बाग हुआ जा रहा था |प्यूपा फूट चुका था और एक तितली उड़ने को तैयार थी

“तो भाई कैसी रही मुलाकात ?”

“भाई आफत आ गई |उनके अब्बू मिले थे |घर बिठाया |चाय-पानी पिलाया |और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने को कहा है |”

“इसे कहते हैं छप्पर फाड़ के मिलना |कहता था ना कदम बढाओ मंजिल खुद नजदीक होती जाएगी |तो कब से जा रहे हो ?”

“आज शाम से जाना है और तुम्हें भी चलना है |उन्हें विज्ञान का ट्यूटर भी चाहिए |मैंने तुम्हारे लिए भी बात कर ली है |”

“भाई मुझे इन मसलों में मत घसीटों |ट्यूशन मुझसे नहीं होगी---मेरी तरफ़ से उनसे माफ़ी माँग लेना |”

एक हफ़्ते बाद जब मैं शाम को रेलवे-लाईन से लौटा तो देखा अरविन्द कमरे में बैठा हुआ है

“क्यों भाई !गए नहीं पढ़ाने |”

“कल शाम मना कर आया |” उसने मुस्कुराते हुए कहा

“क्या उनकी किताब की अंग्रेज़ी बहुत टफ थी ?”

“नहीं भाई |ये दिल का मामला बहुत टफ है |”

“क्या लड़कियों ने कुछ कह दिया या उनकी अम्मी को शक वगैरह !”

“नहीं भाईजान !अपनी ही हसरत नहीं है |इस वहशी दिल के अरमान बढ़ने लगे हैं |वो दोनों नाजुक कलियाँ हैं अभी उन्हें खिलना है पूरा गुलाब बनना है और फिर मेरा भी एक भरा-पूरा बगीचा है |’ उसने अपनी किताब में रखे दो सफ़ेद गुलाबों की तरफ़ देखते हुए कहा

“ये तो उस गमले के फूल हैं |” मैंने मुस्कुराते हुए कहा

“नहीं ये इस तितली के गुलाब हैं |इस मोहब्बत की कमाई हैं |” उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया

मैंने महसूस किया कि एक भटकती हुई तितली वापिस अपने बाग को लौट चली है और हवा गुलाब की भीनी गंध से भरी है |”

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

 

 

 

 

 

 

 

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर आ रे, सूरज आजमा, किसमें कितना जोर     मूरख…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी कोशिशों पर तो हम मुग्ध हैं, शिज्जू भाई ! आप नाहक ही छंदों से दूर रहा करते हैं.  किसको…"
7 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहा आधारित एक रचना: प्यास बुझाएँगे सदा सूरज दादा तुम तपो, चाहे जितना घोर, तुम चाहो तो तोड़ दो,…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, सदा की भाँति इस बार भी आपकी रचना गहन भाव और तार्किक कथ्य लिए हुए प्रस्तुत…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त चित्र को सार्थक दोहावली से आयोजन का शुभारम्भ हुआ है.  तन…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पैसा है तो पीजिए, वरना रहो अधीर||...........वाह ! वाह ! लाख टके की बात कह दी है आपने.…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय शिज्जु शकूर जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर दोहे रचे हैं आपने. सच है यदि धूप न हो…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"    आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत दोहों की सराहना के लिए आपका हृदय…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार. आपकी…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  जी ! भाई लक्ष्मण धामी जी आप जो कह रहे हैं मन के मार्फ़त या दिल के मार्फ़त उस बात को मैं समझ…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्रानुसार उत्तम छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सार्थक दोहावली के लिए| दोपहर और …"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service