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ग़ज़ल -चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में- कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आब ; रदीफ़ : में

बहर : २२१  २१२१  १२२१  २१२

चहरा छुपा रखा है’ सनम ने नकाब में

मुहँ बंद किन्तु भौंहे’ चड़ी हैं इताब में |

इंसान जो अज़ीम है’ बेदाग़ है यहाँ  

है आग किन्तु दाग नहीं आफताब में |

जाना नहीं है को’ई भी सच और झूठ को

इंसान जी रहे हैं यहाँ’ पर सराब में  |

इंसां में’ कर्म दोष है’, जीवात्मा’ में नहीं

है दाग चाँद में, नहीं’ वो ज्योति ताब में |

मदहोश जिस्म और नशीले है’ नैन भी

मय से अधिक नशा है’ तुम्हारे शबाब में |

इक जाम जो पिलाया’ मुझे तुमने’ आँख से

वो अम्न का नशा तो’ नही इस शराब में |

जो एक बार तू ने’ पिलाया सुरा मुझे

कटता तमाम वक्त ते’रे इज़्तिराब में |

क्या हुस्न का बयान करूँ आपके सनम

ऐसा है जो कि आग लगाता है आब में |

मौलिक एवं अप्रकाशित

ज्योतिताब =चाँदनी, उष्मा  

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on January 12, 2018 at 10:39am

'ज्योति ताब' शब्द पहली बार पढ़ा है ।

वैसे आठ अशआर हैं,एक की क़ुर्बानी भी दी जा सकती है ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 12, 2018 at 9:39am

महताब के बदले " ज्योति ताब या रश्मि ताब  ' हो सकते है , मैंने ज्योति ताब कर दिया |देख लीजिये,आदाब 

Comment by Samar kabeer on January 11, 2018 at 5:24pm

'ने' के बाद 'निक़ाब' लिखने से ऐब-ए-तनाफ़ुर नहीं होता,ऐब-ए-तनाफ़ुर पर "ग़ज़ल की बातें" समूह में आलेख मौजूद है,देखियेगा ।

'है दाग़ चाँद में,नहीं वो माहताब में'

इस मिसरे में चाँद और माहताब ऐक हैं,आपने ध्यान नहीं दिया,,इस मिसरे को यूँ करें तो आपका कहा हुआ भाव किसी हद तक आ जायेगा:-

'क़ब चाँदनी में दाग़ है जो माहताब में'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 11, 2018 at 8:33am

हार्दिक बधाई।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 10, 2018 at 10:11am

आदरणीया ब्रजेश कुमार जी , आदाब ,ग़ज़ल पर शिरकत करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 10, 2018 at 10:09am

आदरणीय समर कबीर साहिब आदाब , आपने हर शेर को थोड़ा थोड़ा परिवर्तन कर उन्हें लाजवाब बना जिया |बहुत बहुत शुक्रिया |पहला शेर में मैंने 'सनम ने 'लिखा था बाद में वो किया क्योकि उसके बाद नकाब आ रहा था| ने,न ,इसका अर्थ यही हुआ मुझे ऐब -ऐ -तानाफुर की समझ सही नहीं है | या इसको अभी मानते नहीं है | कृपया प्रकाश डाले |

माहताब मैं चांदनी के लिए उपयोग किया है गलती से आफ़ताब लिखा गया |

बाकी मैं आपके सुझाव के अनुसार परिवर्तन कर लेता हूँ | तहे दिल से शुक्रिया |आदाब 

Comment by Samar kabeer on January 9, 2018 at 11:04pm

जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतला यूँ करें :-

'चहरा छुपा रखा है सनम ने निक़ाब में

मुँह बन्द किन्तु भौहें चढ़ी हैं इताब में'

दूसरा शैर यूँ कर लें :-

"इंसान जो अज़ीम है, बेदाग़ है यहाँ

है आग किन्तु दाग़ नहीं आफ़ताब में'

तीसरा शैर यूँ कर लें :-

'जाना नहीं है कोई भी सच और झूट को

इंसान जी रहे हैं यहाँ पर सराब में'

4थे शैर में ' चाँद'और 'माहताब' एक ही हैं,यानी चाँद को माहताब भी कहते हैं।

पांचवें शैर को यूँ कर लें :-

'मदहोश जिस्म और नशीले हैं नैन भी

मय से अधिक नशा है तुम्हारे शबाब में'

छटा शैर यूँ कर लें :-

'इक जाम जो पिलाया मुझे तुमने आँख से

वो अम्न का नशा तो नहीं इस शराब में'

आख़री शैर यूँ कर लें :-

'क्या हुस्न का बयान करूँ आपके सनम

ऐसा है जो कि आग लगाता है आब में'

"आफ़ताब" का अर्थ सूरज है चाँदनी नहीं ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 9, 2018 at 9:42pm

अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय..बाकी गुणीजन अपनी राय देंगे..

कृपया ध्यान दे...

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