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काम करते करते अनायास ही सुनील का ध्यान दिवार पर टँगी हुई एक तस्वीर पर पड़ी : दो पहाड़ ,उसके बीच एक बड़ा सा फासला , उस पार जाने के लिए एक व्यक्ति की छलांग ! दूसरी ओर उसने अपनी नज़र अपने ऑफ़िस की टेबल पर डाली ,पैतीस साल पुरानी इस ऑफिस में जाने कितने उतार चढ़ाव के बीच उतने ही संख्या में सावन देख चूका था सुनील ।
आज वह एक बंगले का मालिक था , नौकर चाकर थे , पर यहाँ तक पहुँचने में उसको कभी याद नहीं आता कि उसने कभी छलांग लगायी हो , उसके इर्द गिर्द जो भी उसने बसाया था उसमें उसके पसीने की महक थी । अपने सोच में मगन था वह , उसे अपने पुराने दिन भी याद आ रहे थे जब एक दस बाय दस की खोली में वह अपने परिवार के साथ रहता था । वहां वह ख्वाब देखा करता था आसमान तक पहुँचने का , लगता था जैसे एक फर्लांग की दुरी पर कामयाबी उसके कदम चूमेगी । पर .....।
तभी किसीने उसके ऑफिस के कॅबिन के दरवाज़े पर किसीने क्नॉक किया ।"आंदर आ जाओ ", सुनील ने कहा ।
सामने उसका मेनेजर खडा था ,उसने बड़ी ही विनम्रता से कहा ,"सर चलिए आपका सब इंतज़ार कर रहे हैं ।"
आज उसकी कंपनी की 35 वी वर्षगांठ थी । सेलिब्रेशन ऊपर की मन्ज़िल पर था । लिफ़्ट के होते हुए भी उसने अपने मेनेजर से कहा ," मैं सीढ़ियों से आता हूँ ।"
आज इन सीढ़ियों पर चढ़ते हुए उसने अपने पीछे उस चित्र में बनी उस खाई को पार कर लिया था ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Mahendra Kumar on October 25, 2017 at 9:09am

आ. कल्पना जी, अच्छी लघुकथा है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 24, 2017 at 3:40pm

नमस्ते आदरणीय समर भाई जी , कथा आपको पसंद आई सार्थक हुआ मेरा लिखना | सादर धन्यवाद् आपका |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 24, 2017 at 3:39pm

नमस्ते आदरणीय मोहम्मद आरिफ साहब ,सादर धन्यवाद आपको कथा पसंद आई सार्थक हुआ मेरा प्रयास |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 24, 2017 at 3:37pm

धन्यवाद  आदरणीया राजेश दी |

Comment by Samar kabeer on October 24, 2017 at 10:49am
बहना कल्पना भट्ट'रौनक़'जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on October 24, 2017 at 8:08am
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, अच्छा कथानक और बेहतरीन कथ्य का उभार । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 23, 2017 at 9:13pm

बहुत अच्छी लघु कथा है प्रिय कल्पना जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 23, 2017 at 7:26pm

सादर धन्यवाद् आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी | 

Comment by नाथ सोनांचली on October 23, 2017 at 8:36am
आद0 कल्पना भट्ट जी सादर अभिवादन। उम्दा लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई

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