आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने प्रदत्त विषय पर एक बहुत अच्छी रचना लिखी है| कथा में बहुत कुछ समेटने की कोशिश की गयी है | इसे एक बड़ी कहानी में विकसित किया जा सकता है| एक सकारात्मक सन्देश देती कहानी के लिए साधुवाद|
लघुकथा— एक कदम
मनचले को जोरदार थप्पड़ पड़ा था. उस मनचले लड़के ने सोच लिया कि वह इस रिश्तेदार लड़की और उस की मालकिन के इस अड्डे का भण्डाफोड़ कर के रहेगा. वह मौहल्ले के 10 लोगों को बहलाफुसला कर ले आया.
'अरे ओ मैडमियाजी ! बाहर निकलो जरा ? मोहल्ले के लड़केलड़कियां को इकट्ठा कर के क्या करती हो ? लोगों को यह तो पता चले.'
' हांहाँ सावित्रीजी ! हम आप की हकीकत जानना चाहते हैं, ' तभी कमरे से बाहर आई सावित्री से बहुत दिनों पहले पीट चुका व्यक्ति ऊंची आवाज में चिल्ला कर बोला, ' आप अंदर क्या गुल खिलाती है ?'
चार लड़कियों से घिरी सावित्री ने उसी अंदाज में चिल्ला कर पूछा, ' काहे शोर मचा रहो भाई ?'
' अपनी असलियत तो बताओ ! इन्हें. तुम कौन हो ? कहाँ से आई हो ,' वह मनचला बदला लेने की नियत से उस की दुखती रग पर चोट करते हुए बोला, ' यहां आने से पहले तुम्हारे साथ चार लोगों ने क्या किया था ? और तुम वहीं गंदा काम यहां की लड़कियों से करवा रही हो ?'
उस की बात पूरी होने से पहले ही वह रिश्तेदार लड़की हरकत में आ कर चिल्लाई, ' क्या कहा रे ! कल की मार...'
उस लड़की की बात पूरी होने से पहले ही सावित्री ने उसे इशारे से रोक दिया और लोगों की ओर मुखातिब हो कर बोली, ' आप यह जानना चाहते हो ना कि मैं यहां क्या करती हूं ?''
सावित्री ने एक निगाहें मोहल्ले वालों पर डाली.
' जी हां.' एक आवाज आई, ' हम मौहल्ले में ऐसा गंदा काम नहीं होने देंगे.'
उस की बात पूरी नहीं हुई थी कि ' अबे चुप !' सावित्री चींखी,' तुम उजालों में, रिश्तेदारी की आड़ में जो गंदा काम करते हो ना, यहां अंधेरे में, मैं लड़कियों को उस से बचने के लिए प्रशिक्षण देती हूं. ताकि वह तुम्हारे जैसे रिश्तेदारों के नापाक इरादों से बच सकें.'
सावित्री के यह कहते ही मनचले का हाथ अपने गाल पर चला गया. उसे अपनी रिश्तेदार लड़की का झन्नाटेदार जूड़ोकराते वाला थप्पड़ याद आ गया और वह चुपचाप भीड़ की मार से बचने के लिए वहां से खिसक लिया.
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(मौलिक क्यू अप्रकाशित )
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी आप का हार्दिक आभार . आप ने लघुकथा पर समय दे कर उस का मुल्यांकन किया.
आदरणीय सुनील वर्मा जी आप की समीक्षा मुझे अपनी लघुकथा समझने के लिए एक नजरिया देती है. मुझे इस तरह भी अपनी लघुकथा को परखना चाहिए. आप को इस विस्तृत समीक्षा के लिए मैं तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूँ. आप इसी तरह मेरी लघुकथा में कमी बताते रहे ताकि मैं भविष्य में उन्हें दूर करता रहू.
आदरणीय सुनील वर्मा जी, मेरे एक अधिकारी थे, वे मुझे बहुत प्यारे लगते थे. कारण, वे आप ही की तरह प्यार से मेरी कमियां बता जाते थे. जिन्हेया मैं बाद में सुधार लेता था. मुझे आप में उन्ही की छवि नजर आती है.
उम्दा लघुकथा है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी. मामूली से सम्पादन के पश्चात् रचना और भी निखर कर सामने आएगी. प्रदत्त विषय से न्याय करती इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय भाई साहब / प्रणाम. आप की समीक्षा और हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया.
आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब हार्दिक आभार आप का. आप को लघुकथा अच्छी लगी.
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