आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय सुरेन्द्र जी, आपकी इस सराहनीय टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार.
बहुत बहुत आभार आदरणीय सुनील वर्मा जी.
बहुत अच्छा व्यंग्य करती लघुकथा कही है आदरणीय गणेश जी बागी सर| अध्यक्ष जी की जुबान फिसल गयी| सादर बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|
आदरणीय चंद्रेश कुमार जी, लघुकथा आप तक पहुँच गयी इसके लिए बहुत बहुत आभार.
आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब, आपके मुहब्बतों हेतु बहुत बहुत आभार.
आदरणीया शशी बंसल जी, आप जैसी साहित्य विदुषी से सराहना पाना किसी पुरस्कार से कम नहीं है, बहुत बहुत आभार.
आदरणीया सीमा जी, लघुकथा पर आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन कर रही है, बहुत बहुत आभार.
बहुत देर कर दी मेहरबां आते आते । आदरणीय भाई गणेश बागी जी शार्ट एंड क्रिस्पी लघुकथा। शीर्षक भी एकदम सटीक । एक भी शब्द इधर उधर करने की कोई गुजांयश नहीं । सादर शुभकामनाएं ।
आदरणीय रवि भाई, क्या कहे अब, नौकरी ने घर से बेघर कर दिया है, ओ बी ओ तो अपना घर है जहाँ कम आना हो पा रहा है आजकल. लघुकथा अपनी मूल स्वरुप में आप तक पहुँच गयी यह तोशकारक है. बहुत बहुत आभार.
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