For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

देख , रुचि - " अंश बहुत अच्छा लड़का है । घर के लोग भी कुलीन हैं और फिर बैंगलोर में ही है । शादी के बाद तुझे जॉब भी स्विच नहीं करना पड़ेगा । तेरे पिताजी ने तो पंडित जी से कुंडली भी मिलवा ली है। 
अब तू ,ना ... मत करना । इन्हें भी तेरी बहुत चिंता है । एक ही साल तो रह गया है रिटायर होने में ।। 
नहीं माँ , ... " मैं कितनी बार बोल चुकीं हूँ । अभी मुझे शादी नहीं करनी । जब करनी होगी तो बता दूँगी ।"
" क्यों नहीं करनी ... ?"
" आखिर , तेरे हाथ पीले करना हमारा फर्ज है । धीरे - धीरे समय भी गुज़रता जा रहा है । हर काम का एक समय नियत है । समय रहते काम हो , तभी अच्छा लगता है । यदि तेरे दिल में कोई और बात है तो खुल कर बोल ... न । हम तेरी हर खुशी में राजी हैं । मैं मना लूँगी तेरे पिताजी को , तू बोल तो सही ।"
नहीं ,माँ ... " ऐसी - वैसी कोई  बात नहीं है । तू मुझे गलत समझ रही है ।"
तो फिर सही क्या है ... ?
अरे ! माँ - अब तू नहीं मानती तो , ...... सुन। 
" आप लोगों ने हम दोनों बहनों को बड़े लाड़ - दुलार से पाला - पोसा । हमारी शिक्षा दीक्षा से लेकर हमारे शौक , पसंद -नापसंद में कभी कोई कमी नहीं आने दी । इसी कारण पिताजी ने अपने मकान बनाने तक के बारे में कभी नहीं सोचा । अब पिताजी के रिटायर होने पर ये क्वार्टर खाली करना ही पड़ेगा न। "
फिर श्रेया की पढ़ाई भी शेष है । अब तू ही बता ," मेरा भी कुछ फर्ज बनता है कि नहीं ?" 
माँ , मैं ने तो प्रण किया है - " जब तक हम अपने घर में नहीं पहुँच जाएँगे । तब तक मैं शादी नहीं करूँगी ।"

Views: 645

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 22, 2017 at 6:21pm
जनाब मुज़फ्फर साहिब ,अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by pratibha pande on August 22, 2017 at 8:36am

सकारात्मक सोच पर बुनी प्रभावशाली  कथा ..हार्दिक बधाई आपको आदरणीय 

Comment by Samar kabeer on August 21, 2017 at 10:33pm
जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल साहिब आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Nita Kasar on August 21, 2017 at 7:50pm
लडकी के अपने फ़र्ज़ होते है तो माता पिता की ज़िम्मेदारी होती है कि सही समय पर उनका विवाह कर दें ।इस कथ्य पर प्रकाश डालती कथा के लिये बधाई आद०मुजफ्फर इक़बाल जी ।
Comment by Mohammed Arif on August 20, 2017 at 10:04am
आदरणीय मुज़फ़्फर इक़बाल जी आदाब, यह सच है कि हर चीज़ का अपना एक वक़्त होता है । हर काम वक़्त पर हो जाए तो शोभा देता है । अगर शादी भी वक़्त पर हो जाए तो बेहतर होता है । घर लड़कियाँ भी अक्सर घरेलू समस्याओं से ग्रसित रहती है । ऐसे में वो भी पनी शादी को भी नकारने लगती है । एक लड़की की चिंता और फ़र्ज़ को बखूबी उकेरा । मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service