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2122/1122 1212 22/112
दिल ए नाकाम पर हँसी आई
तेरे इलज़ाम पर हँसी आई

जिस मुहब्बत की आरज़ू थी बहुत
उसकेे अंजाम पर हँसी आई

दास्ताँ अपनी लिखने बैठा था
अपने इस काम पर हँसी आई

जिसमें तुमने कभी रखा था मुझे
आज उस दाम पर हँसी आई

मेरे क़ातिल का तज़किरा जो हुआ
तो हर इक नाम पर हँसी आई।

दफ्अतन मेरी जाँ से लिपटे हुए
सभी आलाम पर हँसी आई

सारे असरार जब खुले मुझपर
अपने औहाम पर हँसी आई

Meaning:
दाम - जाल, तज़किरा - जिक्र,
दफ़अतन - अचानक, आलाम - दुःखों, असरार - राज़, औहाम - वहम का बहुवचन

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2017 at 10:53pm
बहुत बहुत शुक्रिया आ. महेंद्रर जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2017 at 10:51pm
बहुत.बहुत शुक्रिया मोहतरम समर कबीर साहिब,आपकी बात सही है
Comment by Mahendra Kumar on May 4, 2017 at 7:42pm

दास्ताँ अपनी लिखने बैठा था, अपने इस काम पर हँसी आई... वाह! इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी। सादर 

Comment by Samar kabeer on May 4, 2017 at 6:33pm
जनाब शिज्जु शकूर साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'जिसमे तुमने कभी रखा था मुझे
आज उस दाम पर हँसी आई'
'दाम'में रखा नहीं जाता,उलझाया जाता है,क़ैद किया जाता है,फंसाया जाता है,देखियेगा,पहले शायद ये ख़याल नहीं आया मुझे ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2017 at 12:09pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. गुरप्रीत जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2017 at 12:09pm

आ. निलेश भैया बहुत बहुत शुक्रिया आपका


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2017 at 12:08pm

हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आ. रवि भैया


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2017 at 12:07pm

आ. हेमंत कुमार जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2017 at 12:06pm

बहुत बहुत शुक्रिया आ. राम अवध विश्वकर्मा सर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2017 at 12:06pm

आ. सुशील सरना जी उत्साहवर्धक शब्दों के लिए आपका हार्दिक आभार

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