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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन । 

पिछले 77 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :


"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-78 

विषय - "वंचित"

आयोजन की अवधि- 14 अप्रैल 2017, दिन शुक्रवार से 15 अप्रैल 2017दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू

सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु,  एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.    

  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 14 अप्रैल 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें


मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

मुहतरम जनाब नादिर साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया,महरबानी

दुआ खुदा से हमेशा ये मांगता हूं मैं
रहें वो प्यार की बाजी में हार से वंचित।

आदरणीय तस्दीक अहमद जी, बेहतरीन ग़ज़ल के हार्दिक बधाई स्वीकार करें| हर पक्ति नए - नए अर्थ लिए हुए |

किया सनम ने जिसे एतबार से वंचित।
क़सम खुदा की हुआ वो ही प्यार से वंचित।

ये अपना अपना मुक़द्दर है अपना दामन है
कोई है गुल से भरा कोई खार से वंचित।

वाह प्रदत विषय पर बहुत ही दिलकश अशआर कहे हैं आपने सर ... ''कोई है गुल से भरा कोई खार से वंचित।'' सर इसमें कोई गुल से भरा सुंदर लेकिन खार से वंचित का भाव भी क्या गुल से भरे होने को शक्ति नहीं दे रहा ? कृपया मेरे संशय को अन्यथा न लेवें।

मुहतरम जनाब सुशील सरना साहिब,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया --आपने शायद शेर के भाव को सही समझा नहीं,-- यह सब नसीब की बात है कोई दामन तो गुलों से भरा है और किसी दामन के नसीब में खार भी नहीं हैं ---सादर

कहाँ परायों की अपनों की महरबानी है
हुआ यूँ ही न मैं दीदारे यार से वंचित।..बधाई स्वीकार करें साहिब

आदरणीय तस्दीक अहमद जी,विषय को सार्थक करती उम्दा गजल के लिए बहुत-बहुत बधाई

आदरणीय तस्दीक जी, शानदार ग़ज़ल कही है आपने. वंचित रदीफ़ का जवाब नहीं. दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर 

तुम्हारे वंचितत्व को प्रणाम

हे वंचित ,
मेरे प्यारे वंचित ,
मैंने तुम्हें देख लिया ,
पहचान लिया , जान लिया।
तुम जहां हो ,वहीं रहो ,
मैं तुम्हें सब दूंगा ,
सस्ता , बहुत सस्ता ,
एक रुपये ,दो रुपये ,
पांच रुपये में क्या कुछ नहीं।
जीने के लिए और क्या चाहिए।
कृपा , कृपा और कृपा।
बस अपनी वंचित की पहचान
बनाये रखना , उसे मत खोना ,
नहीं तो कृपा नहीं मिलेगी।
बस दोनों हाथ फैलाये रखना ,
वंचित होने का प्रमाण - पत्र
सदा अपने साथ रखना ,
वही तुम्हारी पहचान है ,
वही तुम्हारी शान है ,
वही तो तुम्हारा सम्मान है ,
वही तो तुम्हारा जीवन है ,
प्रणाम ! तुम्हारे वंचितत्व को ,
तुम्हारी सेवा मेरा जीवन है.

मौलिक एवं अप्रकाशित
मुहतरम विजय शंकर साहिब, प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुन्दर रचना के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब, आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय विजय शंकर जी आदाब, बहुत करारा व्यंग्य किया है आपने । सच है, आज हमारी सरकारें भी वंचित्वों का अस्तित्व बनाए रखना चाहती है ताकि वह वंचितों की दुहाई देकर सत्ता में बनी रह सके । ढेरों बधाईयाँ आपको ।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर।

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