For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...आँसू तभी छलक पड़े बेबस किसान के

221 2121 1221 212
.
ये बेरुखी ये ज़ुल्म सितम आसमान के
आँसू तभी छलक पड़े बेबस किसान के

दिल में छुपा लिये थे सभी गम जहान के
रुख पे नुमायाँ हो गए लम्हे थकान के

वीरां है मुददतों से मगर टूटता नहीं
ये हौंसले तो देखिये जर्जर मकान के

है मजहबी अलाव, सुलगते सभी बशर
बदहाल गाँव घर हुए भारत महान के

वो अनमनी सबा, हुआ रंजूर ये चमन
निकली लवों से आह किसी बेजुबान के
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 720

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 5, 2017 at 7:55am
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह'कुशक्षत्रप' जी रचना ह्रदय से महसूस करने के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन सादर..
Comment by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 7:29am
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल, बेहतरीन अशआर से सजी, दाद हाजिर है।बधाई। सादर
Comment by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 7:29am
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल, बेहतरीन अशआर से सजी, दाद हाजिर है।बधाई। सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 2, 2017 at 8:24pm
आप बड़े हैं आदरणीय कुछ सिखाएंगे ही..आखरी शैर में रदीफ़ लवों से सम्बंधित है इसलिए पुल्लिंग ही हुआ इस हिसाब से रदीफ़ सही है आदरणीय समर कबीर जी का भी यही मानना है..सादर
Comment by Ravi Shukla on March 2, 2017 at 3:33pm

आदरणीय बृजेश जी हमारे कहे को मान देने के लिये आभार

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 28, 2017 at 8:30pm
आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपके अमूल्य समय और सार्थक समीक्षा हेतु कोटि कोटि आभार..मतले के लिए आपका सुझाव उत्तम है विशेषकर सानी...हुस्ने मतला के लक्षण शब्द को लम्हे से बदला जाये तो कैसा रहेगा?'रुख पे नुमाया हो गये लम्हे थकान के'आखरी शेर मुझे भी शुरू से ही कमजोर लग रहा..कोशिश कर रहा हूँ कुछ अच्छा बदलाव कर सकूँ..चौथे शेर में भी आपके सुझाव स्वागतयोग्य हैं..सादर
Comment by Ravi Shukla on February 28, 2017 at 10:25am

आदरणीय ब्रजेश जी इस बहर में अच्‍छी कोशिश हुई है गजल की दाद हाजिर है । हुस्‍ने मतला के सानी में लक्षण शब्‍द कुछ अलग सा लग रहा है सभी अल्‍फाज उर्दू में है और मात्र लक्षण शब्‍द ही हिंदी का लिया है इसे उचित शब्‍द से बदले तो हमारी विनम्र राय में और अच्‍छा  हो सकता है शेर ।

अ‍ाखिरी शेर के भाव तक हम भी नहीं पंहुचे साथ ही अगर वाक्‍य देखें तो निकली लबो से आह किसी बेजुबान की  होना चाहिये आह स्‍त्रीलिंग शब्‍द है आपका रदीफ बदल रहा है इस तरह से ।

ज़ुल्मो सितम को देख के इस आसमान के
छलकें न अश्‍क क्‍या करें बेबस किसान के एक त्‍वरित सुझाव मात्र है

है मजहबी अलाव, सुलगते सभी बशर
बदहाल गाँव घर हुए भारत महान के इस शेर के उला मिसरे में  हमारी सोच का नजरिया देखें

इस मजहबी अलाव ने सुलगा दिया वतन

बदहाल गावं गाँव घर हुए भारत महान के .... सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 27, 2017 at 6:56pm
आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जु 'शकूर' जी..हाँ आदरणीय आखरी शेर मुझे भी कुछ कमजोर लग रहा है..कुछ सुधार की कोशिश करता हूँ..सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 27, 2017 at 11:25am

वीरां है मुददतों से मगर टूटता नहीं
ये हौंसले तो देखिये जर्जर मकान के...... बेहतरीन आ. बृजेश कुमार बृज जी, बधाई

आखिरी शेर कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service