For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -सुखवनर से वो पहले आदमी है - ( गिरिराज )

1222    1222     122 

सुखनवर से वो पहले आदमी है

गलत क्या है अगर नीयत बुरी है

 

किताबों से कमाई कम हुई तो   

सुना है, रूह उसने बेच दी है  

 

अचानक आइने के बर हुये हैं

इसी कारण बदन में झुरझुरी है

 

लगावट खून से, होती है अंधी

वो काला भी, हरा ही देखती है

 

चली तो है पहाड़ों से नदी पर

सियासी बांध रस्ता रोकती है

 

दिवारें लाख मज़हब की उठा लें

अगर बैठी, तो कोयल , कूकती है  

 

किसी से प्यार हो, या मुझसे नफरत

हक़ीकत है, कि कुतिया भूँकती है

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

 

Views: 698

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on February 26, 2017 at 12:15pm

चली तो है पहाड़ों से नदी पर
सियासी बांध रस्ता रोकती है

आदरणीय गिरिराज जी बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है .... हर शेर पे वाह निकलती है ... दिल से मुबारक बाद कबूल फरमाएं सर।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on February 24, 2017 at 10:31pm
आदरणीय
दीवारें लाख मजहब की उठा लें
अगर बैठी तो कोयल कूकती है
शेर में शुतुर गरबा का दोष है। क्योंकि भविष्य की बात शेर में की जा रही है इसलिये कोयल कूकेगी न कि कूकती है।
Comment by Ravi Shukla on February 24, 2017 at 4:47pm
आदरणीय गिरिराज भाई जी आपकी ग़ज़ल
मानी खेज हुई है हर शेर उम्दा है दिली दाद हाज़िर है
Comment by Mohammed Arif on February 23, 2017 at 5:33pm
आदरणीय गिरिराज जी आदाब, हर शे'र शानदार । मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by gaurav kumar pandey on February 23, 2017 at 11:55am
बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है वाह वाह
आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2017 at 10:07am

आदरणीय मित्रों ,

दिवारें लाख मज़हब की उठा लें

अगर बैठेगी कोयल , कूकती है   ....  इस शे र को कृपया  निम्न अनुसार पढें --

दिवारें लाख मज़हब की उठा लें

अगर बैठी, तो कोयल , कूकती है   ---  सादर निवेदन।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service