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ग़ज़ल- जितने सनम मिले सभी शादी शुदा मिले

221 2121 1221 212

ये सिलसिले भी इश्क के हमसे खफा मिले ।
अक्सर मेरे रकीब जमानत रिहा मिले ।।

किस्मत की बेवफाई जरा देखिये हुजूर ।
जितने सनम मिले सभी शादी शुदा मिले ।।

जब भी उठे नकाब हिदायत के नाम पर ।
क्यों लोग आईने में हक़ीक़त ज़ुदा मिले ।।

चर्चा , लिहाज़ उम्र का , उसको नही रहा ।
कुछ तितलियों के फेर में अक्सर फ़िदा मिले।।

अक्सर हबस के नाम पे मरता है आदमी ।
मासूम सी अदा में ढ़ले बेवफा मिले ।।

कहना पड़ा है आज उसे बार बार यह ।
वाजिब कहाँ है बात मुझे ही सजा मिले ।।

इतना तो मानता था हमारी भी बात को ।
कुछ तो जरूर था जो कई मर्तबा मिले ।।

बिकता यहां ज़मीर ये हिन्दोस्तान है ।
बिकने लगे हैं लोग कहीं कुछ नफ़ा मिले ।।

बाजार में सजे हैं नए जिस्म आजकल।
उसको खबर नही है तिजारत में क्या मिले ।।

बदला किया वो यार फ़क़त इन्तजार में ।
शायद किसी नसीब में कुछ तो लिखा मिले ।।

----नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on December 16, 2016 at 4:57pm
आ0 गिरिराज भंडारी सर सादर नमन
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 16, 2016 at 4:56pm
आ0 ब्रजेश कुमार ब्रज साहब आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 16, 2016 at 4:55pm
आ0 सुरेश कुमार कल्याण साहब तहेदिल से शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 16, 2016 at 4:54pm
आ0 राजेश कुमारी जी सादर नमन
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 16, 2016 at 4:54pm
आ0 मिथिलेश वामनकर साहब तहे दिल से शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2016 at 6:26pm

वाह्ह्ह्ह बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आद० नवीन मणि त्रिपाठी जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on November 27, 2016 at 9:07am
आदरणीय नवीन मणी जी अच्छी गजल हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।सादर।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 27, 2016 at 8:55am
वाह आदरणीय वाह बेहतरीन ग़ज़ल हुई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2016 at 10:51am

आदरणीय नवीन भाई , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ । आ. समर भाई की सलाहों पर गौर कीजियेगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2016 at 10:27pm
आदरणीय वामनकर साहब विशेष आभार ।

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