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नये साल का नया सूरज

नये साल का नया सूरज   
बहुत चाह है कि 
अब के जो  सूर्य नूतन वर्ष का उगे 
तो सूरज सा उगे 
सूरजमुखी  सा न उगे 
सूरजमुखी का क्या है 
फालतू सा पालतू सा 
बिना रोपे  नहीं  उगेगा 
किसी भी हाल में  रोपना पड़ेगा 
धरा पर जबरन थोपना पड़ेगा 
झाड़ तो झाड़ हैं जीवट हैं  खुद्दार है 
झाड़ झंखाड़ों को स्वंय  उगना है 
खेत में ,बगीचे में  तलैया में ,ताल में 
दुष्कर से दुष्करतम असहय हाल में 
झाड़ झंखाड़ को स्वंय  उगना  है 
जो बीज बड़े नाम वाले नहीं होते 
जो अत्याधुनिक लैबों ने सम्भाले नहीं होते 
उनको भी तो उगना होता  ही है 
उठना होता ही है 
धरती की गोद  से धरती  के भाल तक 
गिर  कर सम्भलना होता है 
कमाल के भी कमाल तक 
उनके लिए फैलाया करती है धरा अपना दामन 
माँगा करती है समन्दर से  बादल 
बादल से अमृत 
जिलाती रहती है  पिलाती रहती है 
प्यास को आस को 
उनके लिए फैलाया करती है धरा अपना दामन 
 माँगा करती है   क्षितिज  से सूरज 
सूरज से तपस ,
तपाती रहती है उर्जाती रहती है 
 गहरे श्वास को उच्छ्वास  को 
उनके लिए फैलाया करती है धरा अपना दामन 
माँगा करती है वक्त से वक्त 
वक्त से रातें 
सपने दिखाती रहती है ,जगाती रहती है 
जागते सोते  विश्वास को
 
जी जाता है झाड़ 
जम जाता है झाड़ 
पर जब रोप दिया जाता है कोई  सूरजमुखी 
तो सारे समीकरण बदल जाते हैं 
सूरजमुखी के बहाने लगाते है  माली 
और सारा का सारा  बादल समूचा कील जाते हैं 
सूरजमुखी के बहाने  लगाते है  माली 
और सारा का सारा  सूरज समूचा  लील जाते हैं 
और फिर  लगा देते हैं   झाड़ पर सारा दोष 
स्वंय  कचहरी से बाईज्जत बरी हो जाते हैं 
सूरजमुखी  का क्या 
पालतू सा फालतू सा 
जिधर सूरज  को देखा 
उसी तरफ  फिर गए 
सूरज  उगा  तो सर उठाया 
सूरज छिपा तो  गिर गए 
सपने भी उसी से 
सरोकार भी उसी से 
कल्पना भी उसी की 
कारोबार भी उसी के 
 हमेशा इकतरफा ही होता जाता है फैसला 
झाड़ को ही  होती जाती है सज़ा 
अपील नहीं होती 
दलील नहीं होती
सज़ा होती है  झाड़ को 
उखाड़ फैंका  जाता है झाड़ को 
इसलिए 
बहुत चाह है किअब के   
जब सूर्य नूतन वर्ष का उगे 
तो सूरज सा उगे 
सूरजमुखी  सा न उगे  
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Mahendra Kumar on December 18, 2016 at 10:31am
आदरणीया अमिता जी, बढ़िया वैचारिक कविता लिखी है आपने। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
Comment by Samar kabeer on December 16, 2016 at 4:54pm
मोहतरमा अमिता तिवारी जी आदाब,नये साल से उम्मीदें वाबस्ता करती अच्छी कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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