For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

51
केवल तुम
=======
मैं बार बार मन ही मन हर्षित सा होता हॅूं,
हर ओर तुम्हारा ही तो अभिनन्दन है।

मन मिलने को आतुर फिर भी कुछ डर है सूनापन है,
हर साॅंस बनाती नव लय पर संगीत अनोखी धड़कन है,
अब तो हर द्वारे आहट पर तेरा ही अवलोकन है,
मैं इसीलिये नवगीत कंठ करता रहता हॅूं
हर शब्द में बस तेरा ही तो आवाहन है।

मन की राह बनाकर इन नैनों के सुमन बिछाये हैं,
मधुर मिलन की आस लिये ये अधर सहज मुस्काये हैं,
हर पल बढ़ते संवेदन से उपवन कुछ कुछ शरमाये हैं
मैं इसीलिये टकटकी लगा हर चित्र देखता हूँ
हर दृश्य तुम्हारा ही तो दर्शन है।

सरगम तेरी वाणी को सुनने कब से लालायित है,
वीणा के तार थिरकने को तेरे हाथों पुलकायित हैं,
मेरा हर कण हर क्षण बस अब तुम पर आधारित है
मैं इसी लिये हर तान गुनगुनाता रहता हॅूं,
हर गीत तुम्हारा ही तो गायन है।
30 मार्च 1975
"मौलिक और अप्रकाशित "

Views: 464

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2016 at 7:49pm

आदरनीय डा. सुकुल भी , बहुत खूब ! भाव पूर्ण कविता के लिये आप्को हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Dr T R Sukul on November 28, 2016 at 9:35am

रचना पर समय देकर मानवर्धन करने के लिए सादर आभार आदरणीय विजय निकोर साहब। 

Comment by Dr T R Sukul on November 28, 2016 at 9:32am

रचना पर समय देकर मान वर्धन करने के लिए सादर धन्यवाद  आदरणीय डॉ गोपालनारायणजी एवं समर कबीर साहब। आपकी आशंका को मैं आंशिक रूप से स्वीकार करता हूँ। "वीणा के तार थिरकने को तेरे हाथों , पुलकायित हैं। " इस लाइन में टंकण के समय अल्पविराम लगाया जाना था जो नहीं होने से यह भ्रम उत्पन्न होता है। इसे एडिट करने का प्रयास करता हूँ।  उदारता के लिए आभार । 

Comment by vijay nikore on November 28, 2016 at 8:10am

 सुन्दर भाव। अच्छी रचना के लिए बधाई।

Comment by Samar kabeer on November 26, 2016 at 10:58pm
जनाब डॉ.शुक्ल साहिब आदाब,अच्छी भावपूर्ण कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीक्सर करें ।
मैं जनाब गोपाल नारायण जी से सहमत हूँ ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2016 at 5:28pm

आ० सुन्दर भावों से सजी है कविता पर कही कही भाषा भाव का अनुगमन नहीं कर पाती जैसे -वीणा के तार थिरकने को तेरे हाथों पुलकायित हैं,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service