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गजल(लूट का धंधा.....)

2122 2122 2122 212
लूट का धंधा करें जो वे सभी रहबर हुए
जिंस कुछ जिनकी नहीं है आज सौदागर हुए।1

आशियाने जल रहे सब हो रहे बेघर यहाँ,
अब परिंदे क्या उड़ेंगे लग रहा बेपर हुए।2

मिल रही बहकी हवा कातिल बवंडर से अभी,
खरखराते पात सब हर डाल पर अजगर हुए।3

घुल रहा कैसा जहर गमगीन लगती है फिजा,
शब्द वैसे ही धरे हैं अर्थमय आखर हुए।4

है वही अपना गगन भरता गया काला धुआँ,
पूछते पंछी विकल हालात क्यूँ बदतर हुए।5

पत्थरों को फाड़ कर भगवान आते थे कभी,
क्या करेंगे आजकल तो लोग ही पत्थर हुए।6

सो गये, सोना उठाकर ले गये सब मसखरे,
कोयले की लूट में काले हमारे कर हुए।7
मौलिक व अप्रकाशित@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on October 13, 2016 at 9:39pm
आभार आपका आदरणीय
Comment by vijay nikore on October 13, 2016 at 3:21pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by Manan Kumar singh on October 13, 2016 at 6:55am
जरूरी परिमार्जन के बाद गजल! आभार!
Comment by Manan Kumar singh on October 12, 2016 at 4:25pm
आदरणीय रविजी आभार आपका,आदरणीय समर जी की सलाह ध्यान में है।
Comment by Manan Kumar singh on October 12, 2016 at 4:24pm
आदरणीय सुरेश जी,आभार आपका।
Comment by Manan Kumar singh on October 12, 2016 at 4:23pm
आभार आदरणीय समर जी,आदाब!
Comment by Ravi Shukla on October 12, 2016 at 3:35pm

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी गजल के लिये बधाई स्‍वीकार करें तीसरे और चौथे शेर के सानी में आदरणीय समर साहब के मश्‍वरे पर ध्‍यान दीजियेगा आखिरी शेर का भाव भी कुछ और स्‍प्‍ष्‍ट हो सकता है । 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 11, 2016 at 11:06am
आदरणीय श्री मनन कुमार जी बहुत ही सुन्दर रचना है । बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Samar kabeer on October 10, 2016 at 8:39pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
तीसरे और चौथे शैर के सानी मिसरे लय में नहीं हैं,देखिएगा ।

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