For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जाने कितना प्रश्न करती

2122 2122 2122 2122
जाने कितना प्रश्न करती, और हरदम खिलखिलाती।
अपने मन में पीर जाने, कौन सी वो है छिपाती।।

जब मिली ज़िंदा हुआ हूँ, जब मिली मैं गुनगुनाया।
हर दफ़ा कागज़-कलम, की राह मुझको है दिखाती।।

उसके शब्दों से कोई कागज़ कभी भी जब सजाया।
खूब है हर बार ही वो तो ग़ज़ल बनकर रिझाती।

चूमती नज़रों से जब, मदहोश हो जाता हूँ मैं।
क्या कहूँ पगली वो लड़की, मुझको पागल है बनाती।।

कोई उसको बोल भी दो, ठीक ये बिल्कुल नहीं है।
प्यास सदियों की मिटा दे, रेत में आकर समाती।।

मौलिक अप्रकाशित

Views: 437

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 2, 2016 at 10:54pm
आदरणीय राहिला जी सादर शुक्रिया।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 2, 2016 at 10:54pm
आदरणीय समर कबीर सर सादर प्रणाम।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 2, 2016 at 10:53pm
आदरणीय सुशील सरन सादर आभार।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 2, 2016 at 10:53pm
आदरणीय आमोद जी सादर आभार, तारीफ सुन के अच्छा लगता है।
Comment by Rahila on April 2, 2016 at 10:47pm
बहुत बढ़िया गज़ल प्रस्तुत की आद.पंकज सर जी! इस बेहतरीन रचना के लिये बहुत बधाई ।सादर
Comment by Samar kabeer on April 1, 2016 at 3:08pm
जनाब पंकज कुमार मिश्रा जी आदाब,बढ़िया ग़ज़ल हुई,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by Sushil Sarna on April 1, 2016 at 1:54pm

आदरणीय इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by amod shrivastav (bindouri) on March 31, 2016 at 9:03am
वाह्ह आ पंकज भाई जी बेहतरीन भाव

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service